Horticulture (उद्यानिकी)

प्रमुख फसलों के विषाणु रोग – नियंत्रण

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फसलों में विषाणु रोगों के प्रकोप से काफी नुकसान होता है। विषाणु रोगों का महत्व इसलिये भी अधिक है क्योंकि इनके रोगकारक विषाणु का दायरा विस्तृत होता है तथा कई फसलों पर रोग उत्पन्न करते है। साथ ही इनका प्रसारण भी सुगमता से कीटों द्वारा, यांत्रिक विधियों व अन्य माध्यम से हो जाता है। प्रमुख फसलों के हानिकारक विषाणु रोग हैं :-
सोयाबीन, मूंग, उड़द का पीला मोजेक
यह रोग खरीफ मौसम की सोयाबीन, मूंग, उड़द, अरहर, फ्रेंचबीन व कुछ अन्य खरपतवारों जैसे-गोखरू पर भी आता है। अरहर लम्बी अवधि की होने के कारण इस रोग का मुख्य जरिया है। जिन क्षेत्रों में मूंग, गर्मियों में लगाते है, वहां इस रोग का विषाणु सोयाबीन पर आसानी से आकर रोग फैलाता है। इस रोग का संचारण सफेद मक्खी द्वारा होता है। यह सफेद पंख व पीले शरीर वाली छोटी मक्खी 1 मिली मीटर से भी छोटी होती है।
रोग के लक्षण पौधों की नई पत्तियों पर चमकीले धब्बों के रूप में शुरू होते है। पत्ती की मुख्य शिराओं के साथ पीली पट्टी सी बन जाती है, और उन पर चित्तियाँ बन जाती है, जो रस्ट (मोर्चा) रंग की होती है। पत्तियों का आकार प्रभावित नहीं होता, पत्तियों पर पीलापन बढ़ता रहता है और सिरे की कुछ पत्तियां पूरी पीली हो जाती है। रोगी पौधे देर से परिपक्व होते हैं। फलियों का आकार घटता है, बीज अपरिपक्व व छोटे सिकुड़े हुए होते हैं।
रोग नियंत्रण हेतु बीज को बोने के पहले इमिडाक्लोप्रिड 600 (गाउचो) अथवा थायोमेथोक्सेम 70 डब्ल्यू.पी. की 3 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति कि.ग्रा. बीज का उपचार कर बोयें। चूंकि यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है अत: सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु इथोफेनप्राक्स (न्यूकिल) 10 ई.सी. 1000 मि.ली. या आक्सीडीमेयन मिथाइल (मेटासिस्टॉक्स) 750 मि.ली. का छिड़काव 10 दिन के अंतर से करना चाहिये। पहला छिड़काव 10 दिन के अंतर से करना चाहिये। पहला छिड़काव बुवाई के 20 दिन बाद करना चाहिये। इसके अलावा यथासंभव रोग रोधी किस्मों यथा मूंग-के 851, पी.डी.एम. 16, पूसा 9531, एच.यू.एम.-1,पंत मूंग-1, पंत मूंग-2 इसी प्रकार उड़द-पंत-19, पंत-30, पंत-35, जवाहर-2, जवाहर-3, जवाहर-3, पी.डी.यू.-1 का प्रयोग करें।
अरहर का स्टरलिटी मोजेक
यह रोग उन क्षेत्रों में अधिक देखा गया है जहां मेड़ों पर अरहर के पौधे एक वर्ष से अधिक समय तक बने रहते है। यह रोग (एरियोफिड माइट) छोटी मकड़ी से फैलता है। रोगी पौधे स्वस्थ पौधों की अपेक्षा छोटे, झाड़ीनुमा हल्के हरे रंग की छोटी पत्तियों वाले होते हैं। रोगी पौधों की शाखायें घनी हो जाती हंै एवं पत्तियों पर चितेरी की चित्तियाँ पड़ जाती हैं। अरहर की कुछ किस्मों में पत्तियों पर रोग के कारण गोल धब्बे पड़ जाते। रोगी पौधों पर प्राय: फूल ही नहीं आते और पौधे बांझ रह जाते हैं। अगर पौधे पर रोग का आक्रमण देर से हो तो कुछ फूलों में कलियाँ बन जाती है किंतु वे नहीं के बराबर होती है। रोगी पौधे झाड़ीनुमा, हल्के हरे रंग के एवं बांझ होने के कारण खेत में दूर से अलग पहचाने जा सकते हंै।
रोग नियंत्रण हेतु रोगवाहक कीट छोटी मकड़ी के नियंत्रण के लिये आक्सी मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 0.75 ली. या इथियान 50 ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. की दवा छिड़काव करें। यह छिड़काव रोग की शुरू की अवस्था में ही (जब रोग एक दो पौधों पर ही दिखाई दे) लाभदायक रहेगा। रोगी पौधों को रोग दिखते ही निकालकर नष्ट कर दें।

मिर्च का चुर्रामुर्रा रोग
इस रोग के कारण तम्बाकू, टमाटर, मिर्च, पपीता की फसलें प्रभावित होती हैं। यह रोग सफेद मक्खी (बेमेसिया टैवेकाई) द्वारा फैलता है। यह रोग सफेद मक्खी, माइट्स आदि द्वारा पौधों का रस चूसने के दौरान विषाणु के द्वारा होता है। सफेद मक्खी द्वारा विषाणुओं का प्रकोप होने पर पत्तियाँ नीचे की ओर मुड़ती है जबकि माइट्स द्वारा विषाणुओं के प्रकोप पर पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती है।
रोग से बचाव हेतु पौध रोपण के समय पत्तियों को इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड घोल में डुबोकर रोपण करें। बीमार पौधों के शीर्ष भाग काट कर जला दें तथा सफेद मक्खी पर नियंत्रण हेतु पौध रोपण के 30 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड या एसिटामिप्रिड की 125 प्रति मि.ली. हे. या मिथाइल डिमेटान अथवा एसिफेट की 300 प्रति मि.ली. हे. छिड़काव करें। साथ ही प्रत्येक छिड़काव के समय सल्फेक्स 500 ग्राम प्रति हे. के मान से मिश्रित करें।
आलू में मोजेक रोग
आलू में कई प्रकार के मोजेक रोग लगते है जो विभिन्न प्रकार के विषाणुओं द्वारा फैलते हैं जैसे-लेटेण्ट या माइल्ड मोजेक, झुर्रीदार एवं पत्ती मोजेक एवं अति मृदु मोजेक इत्यादि। ये मुख्यत: इफिड्स, जैसिड एवं सफेद मक्खी द्वारा फैलाये जाते हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों में पत्तियों का पडऩा, पत्तियों के शिरा एवं किनारों का मुडऩा, झुर्रीदार होना, पौधों का बौना रह जाना इत्यादि लक्षण प्रकट होते हैं। बचाव के लिये हमेशा बुआई के लिए प्रमाणित एवं विषाणु रोग रहित कंदों का प्रयोग करें। बुआई पूर्व कूड़ों में थिमेट 10 जी प्रति हैक्टेयर किग्रा की दर से मिलावें। प्रभावित पौधों के दिखाई पड़ते ही कंद सहित उखाड़कर नष्ट कर दें। विषाणु रोग फैलाने वाले कीटों जैसे एफिड, जैसिड एवं सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु जनवरी से पूर्व आवश्यकतानुसार मिथाइल डिमेटान 50 ई.सी. का 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। साथ ही प्रत्येक छिड़काव के समय सल्फेक्स 500 ग्राम प्रति हे. के मान से मिश्रित करें।

कद्दूवर्गीय सब्जियों का मोजेक रोग
यह रोग मुख्यत: एफिड द्वारा फैलाया जाता हैं। मोजेक रोग में रोगी पौधे से स्वस्थ पौधे तक फैलाते हैं साथ ही विशेष प्रकार का मधुस्राव पत्तियों पर छोड़ते हैं जिस पर बाद में फफूंद लग जाने से वह स्थान काला रंग का हो जाता है। नियंत्रण हेतु प्रारंभिक अवस्था में रोगी पत्तियों को तोड़कर नष्ट करना चाहिए तथा ऑक्सी डिमेटान मिथाइल 25 ई.सी. 750 मि.ली. अथवा इमिडाक्लोप्रिड 125 प्रति मि.ली. प्रति हे. छिड़काव करना चाहिये।

पपीता का पर्ण कुंचन रोग
रोगग्रस्त पौधे की पत्तियाँ विकृत हो जाती है तथा इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाता है। जो इस रोग का सामान्य लक्षण है। प्रभावित पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ जाती है जिससे वह उल्टे प्याले के समान दिखाई पड़ती है। रोगग्रस्त पत्तियों की शिरायें नीचे से मोटी एवं गहरे रंग की हो जाती है। पत्तियां मोटी, भंगुर व ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती है। संक्रमित पौधे में पुष्पक्रम या न के बराबर आते है व फल भी कम तथा छोटे लगते हैं। रोग नियंत्रण हेतु रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दें एवं रोग वाहक कीट सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु मिथाइल डिमेटान 35 .सी. की 750 मि.ली. प्रति हेक्टेयर के मान से या एसिटामिप्रिड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के मान से छिड़काव करें।

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