जायद में हरे चारे का विस्तार
सदियों से भारतीय कृषि में पशुपालन के महत्व को कोई नहीं नकार सकता है, कृषि और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक ही तो हैं। आमतौर पर देखा गया है कि ग्रीष्मकाल में दुधारू मवेशियों से दुग्धोत्पादन में कमी आ जाती है। जिसका मुख्य कारण गर्मियों में हरे चारे का संकट आता है जो दुग्धोपान का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। आज से कुछ दशक पहले रबी की फसलों को काटने के बाद खेत खाली पड़े रहते थे, केवल आंशिक क्षेत्रों में ही कद्दूवर्गीय फसल उगाई जाती थी और हजारों- लाखों हेक्टर भूमि बेकार अनुपयोगी सी पड़ी रहती थी। शनै: -शनै: कृषि के लिये आवश्यक आदान सिंचाई जल के क्षेत्रों का विकास किया जाकर बरसात में व्यर्थ बह जाने वाले कीमती जल का संचय छोटे मध्यम तथा बड़े बांधों के द्वारा किया जाकर सिंचाई का रकबा बढ़ाया गया। एक बार सिंचाई जल हाथ में आया तो क्षेत्र विशेष के विकास में जैसे पंख लग गये विपुल उत्पादन देने वाली विभिन्न फसलों का बीज का विकास हुआ, उन विकसित बीज को भूख मिटाने के लिये भरपूर उर्वरक का इंतजाम किया गया और हमारी कृषि की फसल सघनता 100 प्रतिशत से बढ़कर 200 प्रतिशत और आंशिक क्षेत्रों में 300 प्रतिशत तक बढ़ गई और इस बढ़े रकबे में जायद की फसलों को लेकर अतिरिक्त आमदनी के प्रयास आज की तारीख में स्वप्न नहीं बल्कि साकार दिखाई दे रहे हैं। इससे हमारी खाद्यान्नों की समस्या का अंत हो गया परंतु आज भी हमारे पशुओं के लिये हरे चारे की कमी को पाटने के प्रयास पूरे नहीं हो सके हैं। खरीफ में वर्षा और वर्षा के परिणाम से रबी में तो पशुओं को हरा चारा मिल जाता है। परंतु गर्मी में हरे चारे की कमी से सीधा असर हमारे दुग्धोपान पर होता है। पूर्ण पोषक तत्वों के अभाव से पशु कमजोर हो जाते हंै। इस समस्या के समाधान के लिये डेयरी फार्म के क्षेत्रों में तथा उन किसानों के खेतों में हरा चारा लगाने का विस्तार किया जाये जहां सिंचाई के लिये पर्याप्त जल संसाधन उपलब्ध हैं ताकि दुग्धोत्पादन की समस्या पर विराम लगाया जा सके और ग्रीष्मकाल के दौरान होने वाले दूध की कमी का हल निकल जाये। हरे चारे की फसलों को आमतौर पर चार प्रकार से बांटा जा सकता है एक वर्षीय मौसमी चारा जिसमें मक्का, मकचरी, बाजरा, एम.पी. चरी, सूडान घास, दीनानाथ घास इत्यादि आते हैं। इसके अलावा दूसरे में दलहनी एक वर्षीय चारा फसल आते हैं जैसे लोबिया, मोठ, ग्वार, मूंग, उड़द इत्यादि। उल्लेखनीय है कि दलहनी चारा फसल लगाने से एक तीर से दो शिकार होते हैं। अच्छा हरा चारा पशुओं के लिये साथ में वायुमंडल से नत्रजन का जमाव भूमि में होकर आने वाली फसल को लाभ के साथ भूमि की जैविक दशा में सकारात्मक परिवर्तन जो कि आम के आम गुठलियों के दाम कहलायेगा। तीसरा बहुवर्षीय घास एवं दलहनी चारा जैसे संकर हाथी घास, गिनी घास, पैरा घास आदि इसके बाद चौथा बहुवर्षीय वृक्षों की ऐसी प्रजाति जो हरी पत्तियां देकर चारा के लिये उपयोगी होती हंै जैसे अगस्थी, सेवरी, सुबबूल, इजरायली बबूल तथा देशी बबूल। इस प्रकार यदि कृषि के ऐसे सिंचित क्षेत्रों में जायद की फसलों के साथ-साथ चारा फसलों का भी विस्तार किया जाये तो हमारे पशुओं को ग्रीष्मकाल में पर्याप्त चारा उपलब्ध हो सकेगा और दुग्ध का ग्रीष्मकाल में मंदा होता व्यापार सदैव हरा-भरा बना रहेगा। ध्यान रहे गेहूं के भूसे के साथ इन चारों को मिलाकर पशु आहार अधिक पौष्टिक तथा पाचक बनाया जा सकता है। कृषकों को चाहिये कि जायद में हरे चारे की कोई ना कोई फसल लेकर अपने पशुओं को स्वस्थ रखें और दुधारू पशुओं से पर्याप्त दूध प्राप्त करते रहें।