Editorial (संपादकीय)

जल ही जीवन है

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18 अक्टूबर 2022, भोपालजल ही जीवन है – मानसून पूरी तरह गया नहीं और रबी का मौसम आ चुका है। अनचाही वर्षा से किसान त्रस्त है। पिछले कुछ दशक से रबी की कुंडली में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है। बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिये अधिक अन्न की आवश्यकता ने पैर पसारे, जरूरत अनुसंधान की जननी होती है। नई-नई किस्मों की उत्पत्ति की गई, जिनका कद कम कंसे ज्यादा उर्वरक, खाद-पानी की मांग अधिक और उत्पादन भी ज्यादा इसके चलते देश भर में भौगोलिक संरचना को देखते हुये छोटे मध्यम बड़े बांधों का निर्माण किया गया। भरपूर जल राशि के भंडार तैयार किये गये और उपलब्ध जल को खेत-खेत पहुंचाने के लिये नहरों का, कुलावों का मकडज़ाल फैलाकर खेतों का अमृत पानी खेत को जिन्दगी प्रदान करने के उद्देश्य से पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था की गई। अच्छी जातियां, भरपूर उर्वरक, भरपूर पानी के सुखद परिणाम सामने आये। आज गेहूं की उत्पादकता दोगुनी हो गई बड़ी कोशिश के बाद दो टन प्रति हेक्टर के आंकड़े से ऊपर गेहूं की औसत उपज है। उपयुक्त समय आने के इंतजार में सिंचित अवस्था की बुवाई संभव नहीं है। नहरों से लबालब पानी चल रहा है परंतु खेतों को पलेवा देने की तैयारी कुछ-कुछ खेतों में ही देखने को मिली। पलेवा शब्द कृषि की ‘डिक्शनरी’ में सिंचित खेती के साथ ही उत्पन्न हुआ। पलेवा का मतलब होता है कृत्रिमरूप से उपलब्ध जल को खेतों में रेलकर भूमिगत आल से ऊपरी आल का मिलाप कराना केवल इतना ही पानी दिया जाये ताकि अंकुरण संतोषजनक हो सके इसका मतलब यह नहीं है कि खेत को पानी से इतना भरा जाये कि तालाब जैसी स्थिति बन जाये।

होता अक्सर यही है कि नहरों में उपलब्ध लबालब जल जिसके लिये तत्काल खर्च नहीं करना पड़ता है का उपयोग इतना कर लिया जाये जो अनावश्यक हो इससे सबसे बड़ी हानि होती है कि छोर के कृषक फावड़ा लेकर नहरों को तकते रहते हैं जल वहां तक नहीं पहुंच पाता ह,ै कहना ना होगा परंतु सत्य है गहरी काली भूमि जो कि 60-65 प्रतिशत तक है में अतिरिक्त जल जहर का काम करता है वरदान के स्थान पर अभिशाप बन जाता है। नहरों में बहते जल को देखकर और खेत की तैयारी नहीं देखकर मन में स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठा कि क्या नहरों का जल वापस खेतों में ना जाकर नालों व नदियों में बेकार बह रहा है। उबड़-खाबड़ खेत जिसमें हल्के समतलीकरण तथा नालियां काटने का कार्य होना है यदि पलेवा के पहले ही कर लिया जाये तो उपलब्ध जल की उपयोगिता स्वाभाविक रूप से बढ़ जायेगी और सिंचित क्षेत्र का विस्तार स्वत: ही हो जायेगा। खेत तैयार करके यदि पलेवा करके पटक दिया जाये तो निश्चित ही अच्छी बतर आ जायेगी और दिवाली के दीप जलाने के तुरंत बाद बुआई का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू कर दिया जा सकता है जितनी जल्दी पलेवा होगा उतनी जल्दी बतर आयेगी और उतनी ही जल्दी बोनी गेहूं को पर्याप्त ठंडे दिनों की उपलब्धि। पलेवा आल से आल मिलाने की क्रिया है ना कि धान जैसा पानी भरना खेतों को टुकड़ों के बांट कर नालियां खोदें और एक नाली से 75 प्रतिशत जल भराव के बाद दूसरी खोल दें। 25 प्रतिशत भाग जल रिसाव प्रक्रिया से पूरा किया जाये जल जीवन है।

महत्वपूर्ण खबर: कृषि को उन्नत खेती में बदलने की जरूरत- श्री तोमर

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