फसल की खेती (Crop Cultivation)समस्या – समाधान (Farming Solution)

प्राकृतिक खेती: रासायनिक जहरयुक्त खेती का एक समाधान

लेखक: शबनम मेहता, रिम्पिका, पूनम, शिल्पा एवं अरुणा मेहता, डॉ यशवंत सिंह परमार औधानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश

28 सितम्बर 2022, नई दिल्ली: प्राकृतिक खेती: रासायनिक जहरयुक्त खेती का एक समाधान – प्राकृतिक खेती, आधुनिक रासायनिक जहरयुक्त खेती के दुष्प्रभावों का एक सम्भव समाधान है I इस तरह की खेती में रसायनों का प्रयोग किये बिना सफल एवं सतत्त तरीके से किसान जहर मुक्त खेती कर सकता है I इस तरह की खेती में उत्पादन लागत बहुत ही कम या शून्य के बराबर आती है, जिससे किसान अपनी आर्थिकी को बढ़ा सकता है I साथ ही समाज के अन्नदाता के रूप में सवस्थ भोज्य पदार्थ उपलव्ध करवा कर “ सवस्थ भारत- समृद्ध परिवेश” के सपने को भी साकार करने में अपनी भूमिका अदा कर सकता है I

आधुनिक कृषि उत्पादन के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों, पीड़कनाशियों का अविवेकपूर्ण एवं अन्धाधुंध प्रयोग किया जा रहा है I जिसके अनेक दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं I इस तरह की कृषि से जल, वायु, मृदा और यहाँ तक की विभिन्न खाद्य पदार्थ भी दूषित हो रहे हैं I इससे मृदा की गुणवता मे काफी गिरावट आ रही है I रासायनिक खेती से तैयार खाध्य पदार्थों में पीड़कनाशियों एवं अन्य जहरीले रसायनों के अवशेष पाए जा रहे हैं, कई बार इन अवशेषों का स्तर खाद्य पदार्थों में अनुमत सीमा से कई गुना अधिक पाया गया है, इस तरह के खाद्य पदार्थों का लगातार उपभोग करने से मनुष्य कई प्रकार के असाध्य रोगों का शिकार हो रहा है I

प्राकृतिक खेती एक परम्परागत रासायन मुक्त खेती है I यह खेती प्रकृति में प्राकृतिक तरीके से उपलब्ध चीजों का उपयोग करके की जाती है I भारत मे प्राकृतिक खेती पदम् श्री सुभाष पालेकर द्वारा आरम्भ की गयी, रासायनिक खेती के दुशप्रभावों ने उन्हें प्रेरित किया, उन्होने खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग किये बिना शून्य लागत खेती का आरम्भ किया I उन्हे वर्ष 2016 में इसके लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पदमश्री से समानित किया गया I प्राकृतिक खेती को शून्य लागत खेती भी कहा जाता है, क्यूंकि इस तरह की खेती में किसान को रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं रहती है I भारत की वित् मंत्री निमर्ला सीतारमण ने अपने 2019 के बजट भाषण मे प्राकृतिक खेती को किसानों की आय दोगुना करने के मुख्य सत्रोत के रूप में  विशेष रूप से उल्लेख किया था I भारत में मुख्यतः कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, केरल एवं आंध्रप्रदेश जैसे राज्य प्राकृतिक खेती कर रहे हैं I

प्राकृतिक खेती के मुख्य: पांच स्तम्भ इस प्रकार से हैं :
  1. बीजामृत : देसी गाय की प्रजातियाँ हमारे देश के छोटे और सीमान्त किसानों की खेती का मुख्य हिस्सा है, बीजामृत प्राकृतिक खेत का एक प्रभावशाली घटक है I यह घटक देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र, पानी ,बुझा चूना, उर्वरा मिटटी के साथ मिला कर तैयार किया जाता है I बिजाई से पहले बीज उपचार के लिए 200 ml घोल को 1 kg बीज की दर से मिलाया जाता है I बुआई के 24 घंटे पहले शोधन करना चाहिए I बीजामृत फफूंद, बीज जनित एवं मृदा जनित संक्रमण से बचाव करता है I    
  2. जीवामृत : इसे गोबर के साथ पानी में अन्य: पदार्थ जैसे गोमूत्र, पेड़ के नीचे की उर्वरा मिटटी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर बनाया जाता है I जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ मिटटी की सरंचना सुधारने में मदद करता है , यह पोधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढाता है I
  3. आच्छादन : आच्छादन की प्रक्रिया में कवर फसलें, कृषि अवशेषों से मिटटी की उपरी सतह को कवर करना शामिल है, मल्चिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री के अपघटन से ह्यूमस बनता है, जो न केवल मिटटी में पोषण स्थिति में सुधर करता है, बल्कि मिटटी की उपरी सतह का सरंक्षण करता है तथा मिटटी मे पानी के अवधारण को बढाता है I इसकी साथ खरपतवार के विकसा को भी रोकता है I
  4. वाप्सा : पोधों की वृद्धि के लिए मिटटी में पर्याप्त वातन होना चाहिए I जीवामृत एवं आच्छादन करने से मिटटी में वातन, पौशक तत्व धारण करने की क्षमता और मिटटी की सरंचना को बढावा मिलता है I ये सभी फसल के लिए आवश्यक हैं I
  5. सह फसल: मुख्य फसल की लागत का मूल्य सह फसल के उत्पादन से निकाल लेना और मुख्य फसल से शत प्रतिशत मुनाफा लेना I  
प्राकृतिक खेती के निम्नलिखित कई लाभ हैं:
  • शून्य लागत: इस तरह की खेती में किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक इस्तेमाल नहीं किए जाते हैं, केवल प्राकृतिक तरीके से उपलब्ध चीजों का उपयोग करके ही यह कृषि की जाती है, जिससे की किसान की बाजार पर निर्भरता को कम करता है I
  • अधिक गुणवता की फसल :प्राकृतिक तरीके से की गयी खेती भूमि को उपजाऊ बनाती, जिससे उपज की गुणवता एवं किसान को वेहतर रिटर्न्स मिलते हैं I
  • वेहतर स्वास्थ्य: चूँकि प्राकृतिक खेती में किसी भी तरह के सिंथेटिक रासायनों का प्रयोग नही किया जाता है, इसलिए इस तरह की खेती से रासायनिक खेती के स्वास्थ्य सम्बंधित दुष्परिणाम कम हो जाते हैं, साथ ही खाध्य पदार्थों में उचित मात्रा में पोषक तत्व होने से उनकी गुणवता बढ़ जाती हैI जिससे वेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित होता है I
  • जल सरंक्षण: आच्छादन प्राकृतिक खेती का एक मुख्य: स्तम्भ है, आच्छादन जमीन के ऊपर एक सुरक्षा कवच के रूप मे काम करता है एवं वाष्पीकरण के माध्यम से अनावश्यक पानी के नुक्सान को रोकता है I
  • मृदा स्वास्थ्य का पुनर्जीवन: मृदा का स्वास्थ्य उसमे रहने वाले सूक्ष्म एवं अन्य जीवों पर निर्भर करता है, प्राकृतिक खेती का तत्काल प्रभाव सूक्ष्म जीवों की संख्या एवं विविधता पर पड़ता है I
  • पर्यावरण सरंक्षण: प्राकृतिक खेती बेहतर मृदा और बहुत कार्बन एवं नाइट्रोजन पदचिन्हों के साथ पानी का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करती है I
  • पशुधन स्थिरता: कृषि प्रणाली मे पशुधन एकीकरण प्राकृतिक खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और पारिस्थिक तंत्र कई पुन्च्करण में मदद करता है, क्यूंकि प्राकृतिक खेती मे इस्तेमाल किये जाने वाले जीवामृत और बीजामृत जैसे एकोफ्रेंडली बायोइनपुट गाए कई गोबर एवं गोमूत्र से तैयार किये जाते हैं I
  • मिटटी मे सरंध्रता : जैविक कार्बन, नयूनतम जुताई और पौधों में विवधता इत्यादि की मदद से मिटटी की संचना में परिवर्तन मे सहायक होती है I जैविक कार्बन मिटटी के गठन में मदद करता है , जिससे मिटटी में सरंध्रता बढती है एवं पानी का सरल प्रवेश, वायु संचारण इत्यादि पर सकारात्मक प्रभाव डालती है I

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