प्याज लगाएं लाभ कमाएं
जलवायु – इसकी खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है। प्याज की वृद्धि पर तापमान व प्रकाशकाल का सीधा प्रभाव पड़ता है। पौधों की बढ़वार के समय कम तापमान व छोटे दिन तथा गांठों के विकास के समय अधिक तापमान व लम्बे दिनों की आवश्यकता होती है।
भूमि – प्याज की खेती हर प्रकार की भूमि में आसानी से की जा सकती है। प्याज की भरपूर पैदावार के लिये हल्की दोमट या दोमट मृदा सर्वोत्तम मानी जाती है। जिसमें पानी निकास का उचित प्रबंध हो। जिसका पी.एच.मान 6.5-7.5 के मध्य होना चाहिए। भारी मृदाओं में कंदों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। अधिक क्षारीय या अम्लीय मृदा प्याज की खेती के लिये उपयुक्त नहीं मानी जाती है।
खेत की तैयारी – प्याज की खेती के लिये भूमि की तैयारी अच्छी प्रकार से करना चाहिए। साथ ही खेत को समतल भी कर लेेें। रोपाई के पूर्व खेत को उचित आकार की क्यारियों में बांट दें। रोपाई के एक दिन पूर्व कुल नत्रजन की आधी मात्रा 45-50 किलो तथा फास्फोरस 160 किलो व पोटाश 100-120 किलो की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय खेत में आधार खाद के रूप में प्रयोग करें।
उन्नतशील किस्मों का चयन भी महत्वपूर्ण – प्याज की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिये सही किस्म का चयन करना एक महत्वपूर्ण कार्य है। प्याज की अनेक उन्नतशील किस्मों का विकास किया गया है। स्थानीय व परम्परागत किस्मों की अपेक्षा इनकी पैदावार 15-20 प्रतिशत अधिक होती है। साथ ही इन किस्मों में रोगों व कीटों का भी प्रकोप कम होता है। प्याज की उन्नतशील किस्मों में एग्रीफाउंड डार्क रेड, एग्री फाउण्ड लाईट रेड, एग्री फाउण्ड व्हाईट, निफाड-53, अर्ली ग्रेनो, पूसा रेड, पूसा रतनार, निफाड-53, हिसार-2, पंजाब चयन, अर्का निकेतन, अर्का कल्याण, अर्का प्रगति, अर्का बिन्दु, अर्का पीताम्बर, एन.-2-4-1, पंजाब-48, पूसा व्हाइट फ्लैट, पूसा व्हाइट वाउण्ड, उदयपुर-102, वी.एल.-76, उदयपुर-103, कल्याणपुर रेड, नासिक-53, पंजाब सलेक्शन अर्ली ग्रेनो आदि हैं।
बुवाई का समय – रबी प्याज की खेती के लिये मैदानी भागों में बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक की जानी चाहिए।
बीज की मात्रा – बुवाई हेतु उन्नतशील प्रजातियों का स्वच्छ, शुद्ध व स्वस्थ बीज का चुनाव करें। प्याज की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए। प्रमाणित बीजों के प्रयोग से 10-12 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्याज की खेती के लिये रोपाई के लिये 8-10 किग्रा बीज पर्याप्त रहता है।
बीज का उपचार – प्याज की फसल से रोग मुक्त उत्पादन प्राप्त करने के लिये बुवाई से पूर्व बीज को फफूंदनाशक रसायनों से अवश्य उपचारित कर लें। इससे मृदाजनित व बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है। बीज को उपचारित करने के लिये थायरम कार्बोक्सिन या थायरम+बाविस्टीन (1.1) नामक फफूंदनाशक दवा का 3.01 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपयोग करें।
पौध तैयार करना – प्याज का पौध तैयार करने के लिये ऐसे स्थान का चयन कर क्यारी बनाना चाहिए जहां सिंचाई व जल निकास का अच्छा प्रबंध हो। भूमि समतल तथा उपजाऊ होनी चाहिए तथा आसपास छाया वाले वृक्ष नहीं होने चाहिए। बीज को ऊंची उठी हुई क्यारियों में बोया जाता है। नर्सरी लगाने के लिये क्यारी की चौड़ाई 60 से 70 सेमी. रखनी चाहिए, जबकि लम्बाई अपनी सुविधानुसार रखते हैं। वैसे 3 मीटर लम्बी क्यारियाँ सुविधाजनक होती है। एक हेक्टेयर खेत में प्याज की रोपाई करने के लिये लगभग बीज को 5-6 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतारों में बोयें। बीज बुवाई के बाद आधा सेन्टीमीटर तक सड़ी तथा साफ छनी हुई गोबर की खाद व मिट्टी से बीज को पूर्णतया ढक देते हैं। इसके बाद हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास से ढक देते हैं। जब बीज अच्छी तरह अंकुरित हो जाये तो घास को हटा देना चाहिए। बीज बुवाई के 5-6 सप्ताह में पौध रोपाई के लिये तैयार हो जाती है। बीच में डायथेन एम-45 (0.25 प्रतिशत) दवा का घोल बनाकर पौधों पर एक या दो बार छिड़काव करें, जिससे बीमारी का भय नहीं रहता है।
रोपाई – प्याज की पौध उखाडऩे के 4-5 दिन पूर्व नर्सरी की सिंचाई अवश्य करें। जिससे नवजात पौधे उखाड़ते समय उनकी जड़ों को किसी तरह की क्षति ना हो। पौधशाला से पौध को उखाडऩे के बाद रोपाई से पूर्वक एक ग्राम/लीटर पानी में बाविस्टीन का घोल बनाकर उसमें जड़ों वाले भाग को 5 मिनट के लिये डुबा दें। तैयार खेत में 15 सेन्टीमीटर लम्बे स्वस्थ पौधों को 15-20 सेन्टीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में रोपें। पौध से पौध की दूरी 7-10 सेन्टीमीटर रखें। रोपाई के बाद प्याज के खेत में सिंचाई करना नहीं भुलना चाहिए। रोपाई के 8-10 दिन बाद कमजोर, मुरझाए और मरे हुए पौधों के स्थान पर नए पौधे लगा देने चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधन –जब पत्तियां परिपक्व होकर गिरने लगे तो प्याज में सिंचाई बंद कर देना चाहिए। प्याज की खुदाई से 10-15 दिन पहले खेत में सिंचाई बंद कर देना चाहिए, जिससे भंडारण में होने वाली क्षति को कम किया जा सके । प्याज की रोपाई करने के चार सप्ताह बाद नत्रजन की शेष मात्रा (4-50 किलो) खड़ी फसल में प्रयोग करें।
खुदाई –रोपाई के 3-4 माह बाद कंद पककर तैयार हो जाती है। जब लगभग 70 प्रतिशत फसल के ऊपरी भाग सूखकर गिर जाए तो समझना चाहिए कि फसल खुदाई हेतु तैयार है। खुदाई के समय मृदा में नमी होना चाहिए जिससे प्याज के कंदों को आसानी से बाहर निकाला जा सके। प्याज में असामयिक फूलों को रोकने के लिए रोपाई के 75 दिन बाद 0.20-0.25 प्रतिशत मैलिक हाइड्रोजाइड रसायन का छिड़काव करना चाहिए।
प्याज को सुखाना व भंडारण – खुदाई के बाद सुखाते समय कंदों को सीधी धूप तथा वर्षा से बचाना चाहिए। सुखाने के अवधि मौसम पर निर्भर करती है। कंदों की अच्छी तरह सुखाने के लिये 3 दिन खेत में तथा एक सप्ताह छाया में सुखाने के बाद 2-2.5 सेमी. छोड़कर पत्तियों को काटने से भंडारण में हानि कम होती है।
उपज – प्याज की नवीनतम प्रजातियां व आधुनिक सस्य प्रौद्योगिकी अपनाने पर 300-350 क्विं. प्रति हेक्टेयर प्याज कन्दों की पैदावार हो जाती है।
आलू की उन्नत खेती