जानिए, रेज्ड बेड प्लान्टिग मशीन से गेहूँ की मेंड़ पर बुआई करने के फायदे
03 नवम्बर 2023, नई दिल्ली: जानिए, रेज्ड बेड प्लान्टिग मशीन से गेहूँ की मेंड़ पर बुआई करने के फायदे – देश के कई हिस्सों में खरीफ फसल की कटाई चल रही हैं। इसके बाद रबी सीजन की प्रमुख फसल गेंहू की शुरूआत हो जायेगी। गेंहू उत्तरप्रदेश के किसानों के लिए एक अहम फसल हैं। इसका कुल क्षेत्र पूरे भारत में पहले स्थान पर हैं।
अधिकतर किसान गेंहू की बुवाई सामान्य तरीके से करते हैं, लेकिन अगर इस दौरान गेंहू की बुवाई उन्नत तरीके से की जाये तो ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। अगर उत्तरप्रदेश के किसान गेंहू की मेंड़ पर बुवाई कर रहे हैं, तो वह रेज्ड बेड प्लान्टिंग मशीन से बुवाई कर सकते हैं।
रेज्ड बेड प्लान्टिंग मशीन से बुवाई
इस तकनीकी द्वारा गेहूँ की बुआई के लिए खेत पारम्परिक तरीके से तैयार किया जाता है और फिर मेड़ बनाकर गेहूँ की बुआई की जाती है। इस पद्धति में एक विशेष प्रकार की मशीन (बेड प्लान्टर) का प्रयोग नाली बनाने एवं बुआई के लिए किया जाता है। मेडों के बीच की नालियों से सिचाईं की जाती है तथा बरसात में जल निकासी का काम भी इन्ही नालियों से होता है । एक मेड़ पर 2 या 3 कतारो में गेंहूँ की बुआई होती है। इस विधि से गेहूँ की बुआई कर किसान बीज खाद एवं पानी की बचत करते हुये अच्छी पैदावार ले सकते है। इस विधि में हम गेहूँ की फसल को गन्ने की फसल के साथ अन्तः फसल के रूप में ले सकते है इस विधि से बुआई के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है तथा अच्छे जमाव के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिये। इस तकनीक की विशेषतायें एवं लाभ इस प्रकार है।
इस तकनीक से बुवाई के फायदे
इस पद्धति में लगभग 25 प्रतिशत बीज की बचत की जा सकती है। अर्थात 30-32 किलोग्राम बीज एक एकड़ के लिए प्रर्याप्त है। यह मशीन 70 सेन्टीमीटर की मेड़ बनाती है जिस पर 2 या 3 पंक्तियों में बोआई की जाती है। अच्छे अंकुरण के लिए बीज की गहराई 4 से 5 सेन्टीमीटर होनी चाहिये।मेड़ उत्तर –दक्षिण दिशा में होनी चाहिये ताकि हर एक पौधे को सूर्य का प्रकाश बराबर मिल सके।इस मशीन की कीमत लगभग 70,000 रूपये है।इस पद्धति से बोये गये गेहूँ में 25 से 40 प्रतिशत पानी की बचत होती है। यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं हो तो पहली सिचाई बोआई के 5 दिन के अन्दर कर देनी चाहिये।इस पद्धति में लगभग 25 प्रतिशत नत्रजन भी बचती है अतः 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है।
मेंड़ पर बोआई द्वारा फसल विविधीकरण
गेहूँ के तुरन्त बाद पुरानी मेंड़ो को पुनः प्रयोग करके खरीफ फसल में मूंग, मक्का, सोयाबीन, अरहर, कपास आदि की फसलें उगाई जा सकती है। इस विधि से दलहन एवं तिलहन की 15 से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है।
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