लहसुन की 4 अधिक उपज देने वाली किस्में; यमुना सफेद-4 देती है 250 क्विंटल तक पैदावार
30 नवम्बर 2023, नई दिल्ली: लहसुन की 4 अधिक उपज देने वाली किस्में; यमुना सफेद-4 देती है 250 क्विंटल तक पैदावार – लहसुन की 4 अधिक उपज देने वाली किस्में जिनके बारे में किसानों को अवश्य जानना चाहिए, नीचे दी गई हैं। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इन किस्मों को समय पर सिंचाई और उर्वरक प्रयोग की आवश्यकता होती है।
लहसुन की 4 अधिक उपज देने वाली किस्में नीचे दी गई हैं
यमुना सफेद 1 (जी-1) – इसके शल्क कन्द ठोस तथा बाह्य त्वचा चांदी की तरह सफेद, कली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिनों में तैयारी हो जाती हैै। पैदावार 150-160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है।
यमुना सफेद 2 (जी-50) – इसके शल्क कन्द ठोस, त्वचा सफेद, गुदा क्रीम रंग का होता है। फसल 165-170 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 130-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है । यह रोगों – जैसे बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है ।
यमुना सफेद 3 (जी- 282) – इसके शल्क कन्द सफेद, बड़े आकार के, क्लोव का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग की होती है। 15-16 क्लोव प्रति शल्क पाया जाता है । यह जाति 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 175-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह जाति निर्यात की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है।
यमुना सफेद 4 (जी- 323) – इसके शल्क कन्द सफेद, बड़े आकार के, क्लोव का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग का होता है। 18-23 क्लोव प्रति शल्क पाया जाता है। यह जाति 165-175 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 200-250 क्विंटल है। यह जाति निर्यात की दृष्टि से बहुत ही अच्छी है।
बीज एवं बुआई
लहसुन की बुआई हेतु स्वस्थ एवं मध्यम आकार की शल्क कंदों (कलियों) का उपयोग किया जाता है। बीज 5-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती हैं। शल्ककंद के मध्य स्थित सीधी कलियों का उपयोग बुआई के लिए नहीं करना चाहिए। बुआई पूर्व कलियों को कार्बेन्डाजिम+मेन्कोजेेब 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी के सम्मिश्रण के घोल में 3 से 5 मिनट तक डुबोकर के उपचारित करें।
लहसुन की बुआई कूंडो में या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-7 सेमी की गहराई में गाड़कर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढक दें। बोते समय कलियों के पतले हिस्से को ऊपर ही रखते है। बोते समय कतारों से कतार की दूरी 15 सेमी व कलियों से कलियों की दूरी 8 सेमी रखना उपयुक्त होता है। बड़े क्षेत्र में फसल की बोनी के लिये गार्लिक प्लान्टर का भी उपयोग किया जा सकता है। आधुनिक समय में इसकी बुवाई ब्राड बेड में मल्चिंग के साथ भी सफलता पूर्वक की जा रही है।
खाद एवं उर्वरक
खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें। सामान्यतौर पर प्रति हेक्टेयर 20-25 टन पकी गोबर या कम्पोस्ट या 5-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस एवं 50 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है।
गोबर की सम्पूर्ण खाद, आधा भाग नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि मे मिला दें। शेष नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में यूरिया के माध्यम से खडी फसल में 30-35 दिन बाद एवं 55-60 दिन की अवस्था पर दें। स्ूाक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा का उपयोग करने से उपज मे वृद्धि मिलती है। 25 किग्रा जिन्क सल्फेट प्रति हेक्टेयर 3 साल में एक बार उपयोग करें। टपक सिंचाई एवं फर्टिगेशन का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है जल घुलनशील उर्वरको का प्रयोग टपक सिंचाई के माध्यम से करें।
सिंचाई एवं जल निकास
बुआई के तत्काल बाद हल्की सिंचाई कर दें। शेष समय में वानस्पतिक वृद्धि के समय 7-8 दिन के अंतराल पर तथा फसल परिपक्वता के समय 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहें। सिंचाई हमेशा हल्की एवं खेत में पानी भरने नहीं दें। अधिक अंतराल पर सिंचाई करने से कलियां बिखर जाती हैं। खुदाई के 20-25 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें।
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