पशुओं का कार्य क्षमता एवं आहार प्रबंधन
भारत में पशुपालन कृषि का सहायक माना जाता है। खेती में यंत्रीकरण के बाद भारवाहक पशुओं पर निर्भरता काफी कम हुई है। बावजूद इसके देश के कई हिस्सों में आज भी बैल, भैसा, ऊँट, घोड़ा, खच्चर, गधा, याक आदि खेतीबाड़ी में काम करने के आलावा अन्य भारवाहन का कार्य कर रहे हैं। अत: भारवाहक पशुओं को उनके कार्य के आधार पर आहार देना जरूरी हो जाता है, जिससे उनसे पूरी क्षमता के अनुसार कार्य लिया जा सके और वह स्वस्थ भी बने रहे। काम करने वाले पशु खासकर बैल और भैंसा आज भी खेती और बोझा ढोने के विभिन्न कार्यो को सम्पन्न करने के लिए प्रयोग में लाये जा रहे हंै। कार्यकारी पशुओं को आमतौर पर कृषि के उपोत्पाद खिला कर ही रखा जाता है। इन पशुओं को काम करने की क्षमता को बढ़ाने की तरफ तथा उनकी संतुलित आहार की ओर नाममात्र का ही ध्यान दिया जाता है। साथ ही जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि, सान्द्र भोज्यों की कमी और समुचित मात्रा में चारों का उत्पादन नहीं होना भी पशुओं के लिए समुचित भोजन उपलब्ध कराने में बाधा डालते हैं। ऐसी हालत में काम करने वाले पशुओं के लिए तो पोषक तत्व उपलब्ध करा पाना ही नहीं अपितु काम के आधार पर अनुरक्षण पूर्ति भी कठिन हो जाती है। दूसरी तरफ अनुत्पादक पशुओं की संख्या में बढ़ोतरी के कारण काम करने वाले उन्नत पशुओं के लिए भोजन तथा भरपूर मात्रा में चारे की उपलब्धता में काफी कमी आ गई है। |
आज खेती में मशीनीकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। ऐसे में काम करने वाले पशुओं की संख्या में काफी गिरावट आई है। लेकिन जो काम करने वाले पशु है, उन्हें भरपूर मात्रा में समुचित और संतुलित आहार दाना-चारा नहीं मिल पा रहा है। काम करने वाले पशुओं को उनके कार्य भी दक्षता के अनुसार आहार दिया जाये तो उनके कार्य करने की क्षमता में वृद्धि कर उनका बेहतर स्वास्थ्य बनाये रखा जा सकता है।
काम करने वाले पशुओं को पोषक तत्वों की आवश्यकता पशु का भार, काम करने के घंटे एवं कार्य की प्रवृति के अनुसार होती है। हल्के, मध्यम एवं भारी कार्य के आधार पर ही काम करने वाले पशुओं का आहार निर्धारण किया जाता है। चौबीस घंटों के दौरान पशु को जो आवश्यक तत्वों की विभिन्न मात्रा खिलाई जाती है उसे आहार कहत ेहैं। संतुलित राशन बनाते समय सर्वप्रथम पशु शरीर की आवश्यकता के अनुसार सभी पोषक तत्व जैसे-कार्बोहाइड्रेट, वसा या चिकनाई , प्रोटीन, खनिज तत्व, नमक आदि का समुचित सामावेश होना चाहिए।
काम करने वाले पशुओं के आहार में अधिक ऊर्जा एवं चिकनाई वाले पदार्थो का अधिक मात्रा में सम्मलित होना आवश्यक है क्योंकि कार्य करने के दौरान, काम करने वाले पशुओं के शरीर से ऊर्जा एवं वसा का क्षरण अधिक होता है। कार्य करने वाले पशुओं को दिया जाने वाला राशन दो भागों में बांटा जाता है-जीवन निर्वाह एवं कार्य करने की क्षमता के अनुसार। यदि पशु कोई कार्य न करे तो भी जीवित रहने के लिए आवश्यक शरीर क्रियाओं जैसे श्वास लेना आदि कार्यो में भी ऊर्जा खर्च होती है। काम करने वाले पशुओं विशेषकर बैल एवं भैंसा का कार्य करने के आधार पर तीन वर्गो में बाँटा जाता है।
- साधारण कार्य
- मध्यम कार्य और
- अधिक कार्य
काम करने वाले पशुओं में साधारण कार्य का अर्थ है: चार घण्टे बैलगाड़ी या तीन घंटे हल चलाना। मध्यम कार्य अर्थात् 4 से 6 घंटे कार्य करना तथा अधिक कार्य का अर्थ 6 घंटे से ज्यादा कार्य करने वाले पशुओं से होता है। काम करने वाले पशुओं को घंटों एवं कार्य की प्रवृत्ति के अनुसार अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। अनुमानित तौर पर काम करने वाले पशु को 100 किग्रा शरीर भार पर 2.5 से 3 किग्रा शुष्क पदार्थ देना चाहिए। यह शुष्क पदार्थ सूखे चारे, हरे चारे एवं दाने से दे सकते है।
सामान्य प्रबंधन का रखें विशेष ध्यान:
काम करने वाले पशुओं को दिन में दो से तीन बार आहार दें। इस बीच में 8 से 10 घंटे का अंतर रखें, जिससे ऊर्जा की पूर्ति के साथ आहार प्रणाली को आराम मिले तथा जुगाली करने वाले पशु पर्याप्त जुगाली कर सके। पशुओं को हमेशा स्वच्छ, स्वादिष्ट, पाचक पौष्टिक तथा सस्ता आहार दें। आहार में विभिन्न प्रकार के चारे, दाने चोकर व जल आदि होने चाहिए। आहार में निश्चित रूप से 50-60 ग्राम नमक प्रति पशु अवश्य होना चाहिए। पशु को कुल आहार का 2/3 भाग मोटे चारे से तथा 1/3 भाग दाने के मिश्रण द्वारा खिलाना चाहिए।
पशुपालक को चारे-दाने में जब भी बदलाव लाना हो धीरे- धीरे लाएँ। एकदम परिवर्तन से पाचन प्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ता है। पशुओं को पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ एवं ताजा पानी दिन में तीन से चार बार पिलाना चाहिए। काम करने वाले पशुओं के पालन पोषण में भी आहार का अत्यन्त महत्व है, क्योंकि पालन पोषण का 60 – 70 प्रतिशत खर्चा आहार पर ही होता है। अत: पशुपालक काम करने वाले पशुओं का आहार प्रबंधन बेहतर कर उनसे उनकी क्षमता के अनुरूप अधिक कार्य ले पाने में सफल हो सकेंगें।