पशुओं में नस्ल सुधार जरूरी
- डॉ. राजेश शेन्डे ,डॉ. भूपेन्द्र देवांगन
- डॉ. नितेश कुमार कुम्भकार , डॉ. भूपेन्द्र कुमार
- डॉ. केवल कृष्ण
28 मई 2021, भोपाल । पशुओं में नस्ल सुधार जरूरी – उन्नत पशु प्रजनन – उन्नत नस्ल के चुने हुए उच्चकोटि के सांड से प्राप्त बछड़े-बछियों में अधिक उत्पादन क्षमता होती है। इसलिये निरंतर विकास हेतु हर समय उन्नत नस्ल के उच्चकोटि के सांड से पशुओं को प्रजनन कराना चाहिए। इसलिये उच्चकोटि के चुने हुए कीमती सांडों का क्रय, उनकी देखभाल, पालन-पोषण की जिम्मेदारी शासन एवं विभिन्न अन्य संस्थानों ने ली है और इन उच्चकोटि के सांडों द्वारा अनेक पशुओं में प्रजनन कराने के उद्देश्य से कृत्रिम गर्भाधान योजना को कार्यान्वित किया गया है।
उन्नत पशु प्रजनन हेतु कृत्रिम गर्भाधान की पद्धति को क्यों अपनाया जाता है?- कृत्रिम गर्भाधान हेतु अनेक पशुओं में गर्भाधान कराने हेतु कम सांडों की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक सांड द्वारा कृत्रिम गर्भाधान विधि से 10,000 तक मादाओं में प्रजनन संभव होता है इसलिये उच्चकोटि के सांडों का चयन करना, चुने हुए उच्चकोटि के सांडों का उपयोग मादाओं में प्रजनन हेतु कराना तथा हजारों की संख्या में उन्नत बछड़े-बछिया उत्पन्न कराना कृत्रिम गर्भाधान से ही संभव है। इसलिये कृत्रिम गर्भाधान को पशु विकास का मुख्य आधार तथा पशु विकास की कुंजी कहा जाता है। सारी दुनिया ने इस पद्धति से ही पशुपालन के क्षेत्र में विकास किया है।
क्या प्राकृतिक विधि से सांडों के उपयोग से बड़े पैमाने पर पशु विकास संभव हैं?- प्राकृतिक पद्धति से एक सांड द्वारा एक वर्ष में 60 से 100 पशुओं में ही प्रजनन संभव होता है। इसलिये कोटि के नहीं हो सकते, इसलिये इनसे उत्पन्न संतानें उच्चकोटि की नहीं होगी, परंतु उच्चकोटि का सांड चयन कर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उच्च कोटि की संतानें हजारों की संख्या में उत्पन्न की जा सकती हंै।
कार्य क्षेत्र में कृत्रिम गर्भाधान का नियोजन – पुरानी तकनीकी को छोड़कर नई तकनीकी से जुडऩे में काफी समय लग जाता है। यह कार्य सूचना का आदान-प्रदान कर, परिणाम दिखाने व निरन्तर रूप से विभिन्न वर्गों से जीवित संपर्क करके ही किया जाना संभव है। अपने कार्य क्षेत्र में कृत्रिम गर्भाधान हेतु कार्य का नियोजन निम्नानुसार किया जा सकता है।
प्रजनन योग्य पशुओं का विवरण- कृत्रिम गर्भाधान के कार्यक्रम को सुचारू रूप से प्रारंभ करने के लिये यह आवश्यक है कि कार्यक्षेत्र में 1500-2000 प्रजनन योग्य पशु हो। इसके लिये स्वयं समय-समय पर सर्वेक्षण कर इसकी जानकारी संस्था स्तर पर रखी जाना आवश्यक है। गांव में कम पशु होने की दशा में अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार 10-12 कि.मी. की दूरी तक किया जा सकता है, ताकि समय-समय पर सूचना प्राप्त हो सके एवं समय-समय पर पशु मालिकों से निरन्तर जीवित संपर्क रखा जा सके। इस हेतु मुख्य गांव के आसपास के गांवों का सर्वेक्षण कर,अपनी सुविधानुसार ज्यादा से ज्यादा प्रजनन योग्य पशु अपने कार्यक्रम में लें। सर्वेक्षण के समय देशी/संकर नस्ल/छोटे वत्स/भैंस/बिना बधिया के बैल/बधिया किये हुए सांडों की संख्या की जानकारी भी एकत्र करना आवश्यक है।
अवांछित नर पशुओं का बधियाकरण -गांव में खेती के कार्य हेतु नर पशु पाले जाते हंै, जिनसे ऋतु में आये मादा पशुओं का प्रजनन होकर निम्न गुणवत्ता की संतति पैदा होती रहती है। इस हेतु सामाजिक रूप से भी कुछ नर पशु, चरने वाले मादा पशु समूह में छोड़ दिये जाते हैं। उत्तम संतति पैदा करने में नर का विशेष महत्व है। आगामी पीढ़ी में, अपनी नीति निर्धारण के अनुसार, अच्छे नर से प्रजनन की क्रिया को सीमित कर अवांछित नर का बधियाकरण कर धीरे-धीरे इनका लुप्त प्राय: किया जाना संभव है। इस हेतु यौवनास्था प्राप्त नर का बधियाकरण करवाने हेतु दुग्ध प्रदायकों को प्रोत्साहित करना एवं बधिया न हुए सांडों को पशु मालिक के द्वारा घर पर ही बंधवाना आवश्यक है।
संस्था स्तर पर पशु बांझ शिविर का आयोजन – पशु बांझ शिविर के आयोजन में बहुत से कृषक अपने पशुओं को परीक्षण हेतु लाते हैं। इस विषय में शिविर आयोजन होने की तिथि के 4-5 दिन पूर्व से दुग्ध उत्पादकों को सूचित किया जाये। शिविर का समय इस तरह निर्धारित हो कि कृषकों के दैनिक कार्यक्रम में व्यवधान न हो। इसके लिये चरने हेतु छोड़ जाने के पूर्व का समय उचित रहता है। इस तरह के आयोजन में प्रजनन की नई तकनीकी, टीकाकरण, प्रथमोपचार आदि की विस्तृत जानकारी हेतु संपर्क किया जा सकता है।
स्वयं के तकनीकी स्तर में सुधार– नैसर्गिक रूप से प्रजनन होने पर सामान्यत: 40 प्रतिशत तक पशु गर्भित होते हैं। कृत्रिम गर्भाधान द्वारा भी यह परिणाम प्राप्त किया जाना संभव है। अपने तकनीकी स्तर के ज्ञान के माध्यम से गर्भित होने के प्रतिशत को ज्यादा से ज्यादा अच्छा रखकर ही पशु पालकों में विश्वास जगाया जा सकता है अन्यथा पशुपालकों द्वारा फिर से अपने पुराने तरीके का प्रयोग किये जाने से कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम असफल हो जाता हैं।