कृषि कर्मण अवार्ड के – 14 करोड़ का क्या हुआ ?
(अतुल सक्सेना )
भोपाल। कोई बड़ी उपलब्धि यदि सरलता से मिल जाए तो प्राय: उसकी कद्र नहीं होती। म.प्र. को लगातार 5 वर्षों से मिल रहे कृषि कर्मण अवॉर्ड संभवत: इसी कारण विभाग के लिए महत्वहीन होते जा रहे हैं। यहां तक कि 5 वर्षों से मिल रही अवॉर्ड राशि की उपयोगिता के लिये भी कृषि विभाग और सरकार का अपना कोई विजन नहीं है। इसलिए अवॉर्ड के रूप में मिली लगभग 14 करोड़ की राशि कहां जमा हो रही है और इसे कब तक जमा रखा जाएगा, इसका कोई ठोस जवाब कृषि विभाग के पास नहीं है|
अवॉर्ड राशि के लिए सरकार के पास विजन नहीं
कृषि कर्मण अवार्ड की यह भारी -भरमक राशि विगत दो संचालकों और वर्तमान प्रमुख सचिव के कार्यकाल में ही हासिल हुई है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि फाईल के पन्ने उलट कर देखना होगा कि निर्देश क्या है। भारत सरकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत यह राशि देती है कि अधोसरंचना विकास के लिए विभाग अपनी आवश्यकता अनुसार इसका उपयोग कर ले। इतनी मनचाही स्वतंत्रता के बावजूद आज तक कोई निर्णय नहीं लिया जाना आश्चर्यचकित करता है कि कृषि विभाग एवं मंत्रालय की दूरदर्शिता क्या आंकड़ों की बाजीगरी तक सीमित होकर रह गई है।
वर्ष 2012-13
म.प्र. का अन्नदाता किसान, कृषि विभाग, कृषि से जुड़े अन्य विभाग एवं क्षेत्र के लोग सभी की मिली-जुली मेहनत का परिणाम है कि प्रदेश को लगातार 5वीं बार कृषि कर्मण अवॉर्ड मिला है। वर्ष 2011-12 से शुरूआत हुई थी। इसके बाद 2012-13 एवं 2014-15 में कुल खाद्यान्न के लिए तथा 2013-14 एवं 2015-16 के लिये गेहूं उत्पादन में भारत सरकार का प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवॉर्ड प्रदेश को मिला। प्रथम तीन वर्षों में अवॉर्ड के साथ प्रशस्ति पत्र एवं 2-2 करोड़ की राशि तथा गत वर्ष 6 करोड़ की राशि एवं इस वर्ष भी प्रशस्ति पत्र के साथ 2 करोड़ की राशि मिली है। इस प्रकार कुल 14 करोड़ की पुरस्कार राशि प्रदेश सरकार एवं कृषि विभाग को प्राप्त हुई है परंतु वह राशि और उसका ब्याज तिजोरी में बंद है।
इधर प्रदेश में अधोसंरचना विकास के कई क्षेत्र आज भी दुर्दशा झेल रहे हैं। संचालनालय के उच्च अधिकारियों के पास पुराने वाहन है जो कभी भी वर्कशाप की राह पकड़ लेते हैं। विकासखंड स्तर तक तो वाहन पहुंचना सपने जैसा हो गया है इतने बड़े क्षेत्र में किसानों से जीवंत संपर्क करना आसान नहीं है। कई जिलों में कृषि कार्यालय जर्जर अवस्था में है। प्रारंभिक, बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।
वर्ष 2011-12
कृषि विभाग के पास राजधानी में ही राज्य स्तरीय कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान में काफी भूमि उपलब्ध है जहां प्रशिक्षण लेने या कृषि मेलों में आने वाले दूर-दराज के किसानों, कृषि अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए विश्राम गृह बनवाया जा सकता है। राजधानी के ही एम पी नगर क्षेत्र में स्थित कृषि मुद्रणालय परिसर के हाल तो और भी बदहाल हैं। यहां मिट्टी व बीज परीक्षण प्रयोगशालाएं बनाई गई है किंतु यहां बरसात में पहुंचना किसी बड़ी आफत से कम नहीं। बंद पड़े मुद्रणालय की दरों-दीवारें तेज हवाओं में कब गिर जाएं कहा नहीं जा सकता। इंदौर के होटल की घटना की पुनरावृत्ति कभी भी हो सकती है।
अवार्ड की राशि से वैसे तो बहुत से लाभप्रद कार्य किए जा सकते हैं। मैदानी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है उन्हें सम्मान राशि दी जा सकती है और कुछ नहीं तो संचालनालय को सुसज्जित कराने, अधिकारियों के कक्षों को व्यवस्थित करने, टॉयलेट्स का सुधार, कम्प्यूटर मैन्टेनेन्स, कर्मचारियों के लिए कर्पोरेट फंड बनाने के साथ कर्मचारियों के लिए कालोनी बनायी जा सकती है। यदि यह भी न हो तो किसानों को आत्महत्या से बचाने के लिये विभाग अपनी ओर से कोई पहल कर सकता है। बस जरूरत एक अच्छी सोच की है जिसके लिये फिलहाल किसी के पास फुर्सत नहीं है।