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द्विस्तरीय उर्वरक के लिये नया यंत्र

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भारत दुनिया में चीन के बाद उर्वरकों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यह दुनिया में पोषक तत्वों की खपत का 15.3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 14.4 प्रतिशत फास्फोरस और 19 प्रतिशत पोटाश उपयोग करता है। उत्पादन में वृद्धि के लिये कृषि योग्य भूमि को बढ़ाना होगा जिसकी बहुत कम गुंजाइश है। अत: कृषि की उत्पादकता में वृद्धि करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। कृषि में उर्वरकों का महत्व उपज में वृद्धि करने के लिये अत्यंत आवश्यक है। उर्वरक उपयोग दक्षता को बढ़ाकर सीमित कृषि भूमि से अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

उर्वरक नियोजन कुशल फसल प्रबंधन का एक अभिन्न हिस्सा है। उर्वरक मिट्टी की कृषि उत्पादकता को उत्प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राय: किसानों द्वारा उर्वरक का उपयोग बुआई पश्चात छिड़काव पद्धति द्वारा किया जाता है। भूमि सतह पर छिड़काव की इस विधि से उर्वरक का उपयोग फसल के साथ-साथ खरपतवारों द्वारा भी किया जाता है, जो कि फसल की वृद्धि को प्रभावित करते है। उर्वरक नियोजन की अन्य तकनीक में उर्वरक को बुआई के समय सीड ड्रिल द्वारा बीज के साथ डाला जाता है। अगर बीज एवं उर्वरक संपर्क में आते हैं तो यह बीज के अंकुरण को प्रभावित करता है। अत: बुआई के समय बीज एवं उर्वरक के मध्य 3 से.मी. से अधिक दूरी होना अत्यंत आवश्यक है। उर्वरक को जड़ क्षेत्र में नियोजित करने से उर्वरक उपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। जिससे पौधों की संपूर्ण वृद्धि होती है और अधिकतम उपज प्राप्त होती है। उर्वरक उपयोग दक्षता के लिये, जड़ क्षेत्र में पोषक तत्वों का समावेश पौधों की जरूरत के अनुसार आवश्यक है। अनुचित नियोजन होने से पौधों द्वारा पोषक तत्व पूरी तरह से उपयोग नहीं किये जाते हैं। उर्वरक को बीज के संपर्क में नियोजन से यह अंकुरण को प्रभावित करता है।
बुआई के समय उर्वरक को बीज के समीप दो जगह पर नियुक्त किया जाता है। जिसमें  बीज के एक तरफ 50 प्रतिशत उर्वरक को बीज से 3 से.मी. दूरी पर तथा दूसरी तरफ बचे हुए 50 प्रतिशत उर्वरक को बीज से 5 से.मी. दूरी पर 5 से.मी. गहराई में डाला जाता है। दोस्तर पर उर्वरक डालने से पौधों की जड़ क्षेत्र में उर्वरक का घनत्व बढ़ जाता है। चूंकि उर्वरक की नियुक्ति बीज के पास दो जगह पर विभिन्न गहराई में की जाती है, जो कि पौधों की प्रारंभिक अवस्था में वृद्धि के लिये सहायक होता है। साथ ही साथ जड़ों की वृद्धि होने पर उसके लिए गहराई में भी उर्वरक की उपलब्धता रहती है। जो कि पौधों की वृद्धि के लिये अंतिम स्तर में उपयोगी साबित होता है।

  •  इस यंत्र से किसान का श्रम, समय और लागत में कमी आएगी.
  •  उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी.
  • इस यंत्र की डिजाइन के आधार पर इसका व्यवसायिक निर्माण जल्द होने की संभावना है.
  • इसकी लागत 45 से 50 हजार के बीच होगी.
  • गेहूं, सोयाबीन में सफल परीक्षण.


 

                                                                            यंत्र के काम करने का तरीका

  • उर्वरक उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिये केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान भोपाल द्वारा एक ट्रैक्टर चलित द्विस्तरीय उर्वरक नियुक्ति यंत्र (टू स्टेज फर्टिलाइजर एप्लीकेटर) का निर्माण किया।
  • इस यंत्र के माध्यम से रेज्ड बेड पर बुआई की जाती है।
  • इस यंत्र को 35 अश्वशक्ति के ट्रैक्टर द्वारा 3.5 कि.मी. प्रति घंटा की गति से चलाया जा रहा है।
  • समान गहराई पर उर्वरक एवं बीज रखने (प्लेसमेंट) के लिये यंत्र के दोनों तरफ गहराई नियंत्रक व्हील लगाये गए हैं।
  • यंत्र की कार्यदक्षता 0.38 हेक्टेयर प्रति घंटा है।
  • इस यंत्र का परीक्षण केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान भोपाल में गेहूं तथा सोयाबीन की फसल पर किया गया।
  • फसल की बुवाई एप्लीकेटर यंत्र द्वारा काली मिट्टी में निर्मित 15 से.मी. ऊंचे, 120 से.मी. चौड़े बेड तथा 30 से.मी. कुंड पर की गयी थी।
  • सोयाबीन तथा गेहूं में क्रमश: 22 तथा 15 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि प्राप्त हुई। द्विस्तर नियुक्ति से प्राप्त अधिक उपज इस तकनीक के सकारात्मक प्रभाव को दर्शाती है। इस यंत्र द्वारा उर्वरक नियुक्ति की यह तकनीक दूसरी फसलों के लिये भी प्रभावकारी साबित हो सकती है।
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