योजनाओं से बढ़ती जन आकांक्षाएं
राजग सरकार द्वारा तीन वर्ष का शासनकाल पूरा करने के बाद महत्वपूर्ण योजनाओं की समीक्षा करने पर पता चलता है कि नागरिक को योजनाओं में सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। नागरिकों को यह एहसास हो जाता है कि वे राष्ट्रीय संसाधनों के सबसे बड़े दावेदार हैं और, ऐसा क्यों न हो ? भारत दो ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बन गया है और दुनिया के तेजी से बढ़ते बाजारों में सबसे आगे है, लेकिन इसके बावजूद यहां के नागरिक पिरामिड के सबसे निचले हिस्से पर खड़े हैं, जहां तक विकास का लाभ नहीं पहुंच पाया है। व्यक्ति प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की जाने वाली महत्वपूर्ण योजनाओं के जरिए शक्ति सम्पन्न हो रहा है और अब देश की सम्पदा के संरक्षक सरकार के प्रति अपने व्यवस्था दावे को मजबूत कर रहा है। वास्तव में एक नई राजनीतिक अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है, जो इस तरह काम करती है।
सरकार जनता तक पहुंचती है, वर्गों तक नहीं। इससे शासन के पिरामिड में शिखर पर और सबसे निचले स्तर पर जो लोग खड़े हैं, उनके बीच एक बंधन पैदा हो जाता है। इनके बीच प्रौद्योगिकी द्वारा इस बंधन को ताकत मिलती है। यह दो तरफा रूप से काम करती है:
इससे शासन प्रणाली को सही लक्ष्य की पहचान करने में सुविधा होती है और पंक्ति में सबसे अंत में खड़े होने वाले व्यक्तियों को शक्ति सम्पन्न बनाती है, जो वहां चुपचाप खड़ा नहीं रहना चाहता तथा आगे बढऩे के लिए बेताब है।
इस तरह ऊंचे मानकों वाली योजनाएं तैयार की जाती हैं, जो बहुत साधारण प्रतीत होती हैं और आम सरकारी कार्यक्रमों की तरह ही होती हैं। कल्याणकारी राज्य किस तरह काम करता है, यह उसकी दिशा को दोबारा तय करेंगी। वह चाहे प्रधानमंत्री की जन-धन योजना, बीमा सुरक्षा योजना, अटल पेंशन योजना हो या प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना हो, सबका उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है।
विकास को सही अर्थों में समावेशी बनाया जाए, जिसके तहत घरेलू सहायक, सिक्युरिटी गार्ड, खेत मजदूर या अकुशल भवन निर्माण मजदूर खुद को शक्ति? सम्पन्न समझे और पूरे विश्वास के साथ बैंक जा सके, अपना खाता खोल सके और तमाम तरह के अवसरों का लाभ उठा सके। जो लोग आर्थिक मुख्यधारा से बाहर रह गए थे, उनके आधार नम्बर के साथ जब बैंक खाते को जोड़ा गया तो उससे चमत्कायर हो गया। बैंक खाता और आधार नम्बर, ये दोनों अत्यंत कारगर उपाय हैं, जिनके जरिए लाभ लक्षित समूहों तक पहुंचता है और बीच में उन्हें कोई हड़प नहीं पाता। वास्तव में पेंशन, फसल बीमा, रसोई गैस सब्सिडी के लिए डीबीटी या कन्याओं के प्रोत्साहन सहित सभी योजनाओं को वित्तीय समावेशी कार्यक्रम के जरिए क्रियान्वित किया जा रहा है। इन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी कई बहुस्तरीय एजेंसियां भी मान्यता देती हैं।
जन-धन योजना के अंतर्गत 28 करोड़ खातेदार हैं, जिनके खातों में लगभग 64,000 करोड़ रुपये जमा हैं। इन्हें बार-बार बैंक शाखाओं में जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि स्मार्ट फोन और अन्य उपकरणों के जरिए वित्तीय साक्षरता बढ़ रही है। आज बैंकिंग को प्रौद्योगिकी और रूपे कार्डों जैसे वित्तीय उत्पादों के मिश्रण से सहायता मिल रही है। रूपे कार्डों को कोई भी खेत मजदूर या घरेलू सहायक, उच्च वर्गीय शिक्षित शहरी की तरह आसानी तथा आत्माविश्वास के साथ एटीएम में इस्तेमाल कर सकता है। इसके अलावा 3.75 लाख बैंक मित्र और बैंकिंग कंरसपोंडेस का दल घर-घर जाकर वित्तीय उत्पाद पहुंचा रहा है। खास लोगों का वर्ग सिमट रहा है, क्योंकि हर भारतीय में आकांक्षाएं पैदा हो रही हैं और वह आत्मविश्वास के साथ काम कर रहा है।
लैंगिक भेदभाव को दूर करने का उपदेश देना अलग बात है। महिलाओं और लड़कियों के विरूद्ध लैंगिक भेदभाव के कारण महिला-पुरुष अनुपात में कमी आई। सुकन्या समृद्धि योजना जैसी विभिन्न योजनाओं में इस विषय को हल किया गया। ग्रामीण और शहरी नागरिकों के लिए तमाम योजनाएं शुरू की गई, जिनके जरिए बीमा और पेंशन जैसी योजनाएं भी विकसित की जा रही हैं, जो उन लोगों के लिए हैं, जो अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्रों के बाहर हैं। योजनाओं में उल्लेखित सभी आयु समूहों के लोग सुरक्षा बीमा योजना, जीवन ज्योति योजना और अटल पेंशन योजना के सदस्य बन सकते हैं।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इस समय अत्यंत महत्वाकांक्षी और चुनौतीपूर्ण योजनाओं में स्वच्छ भारत योजना शामिल है, जो स्वयं अपनी निधि विकसित कर रही है। यह योजना झाड़ू और कचरे के डिब्बे की अवधारणा से ऊपर है। इसके तहत शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता के जरिए साफ-सफाई पर बल दिया गया है। इसमें शौचालयों, शहरी अपशिष्ट प्रबंधन और नदियों तथा जल स्रोतों की सफाई शामिल है। इससे देश के सभी स्त्री, पुरुष और खासतौर से बच्चे स्वस्थ होंगे। स्वच्छ भारत और एक बेहतर मानव संसाधन के रूप में इसकी कीमत वसूल हो जाएगी।
उद्यमियों के लिए ‘स्टैंड अप इंडियाÓ और ‘मेक इन इंडियाÓ जैसी योजनाओं से भी देश एक विश्व निर्माण केंद्र के रूप में विकसित होगा। इसके तहत देश आयात-आधारित न होकर निर्यात- आधारित देश बनेगा और लाखों रोजगार पैदा होंगे। हमारे मौजूदा परिदृश्यों को देखते हुए इसकी बहुत आवश्यकता है और इसे शानदार तरीके से चलाया जाना है। महत्वूपूर्ण योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उनका प्रभावशाली कार्यान्वयन जरूरी है, जो केंद्र और राज्य स्तरों पर होना चाहिए तथा जनता की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए। (पसूका)
(श्री प्रकाश चावला एक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं।)