दूध में औषधियों के अवशेष
दुग्ध व्यवसाय में ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को रोगमुक्त रखने के लिये रक्तनलिका या थन-नाल द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं को दिया जाता है। जब भी इन दवाओं का उपयोग दुधारू पशुओं में किया जाता है तो दूध में इन दवाओं के अवशेष आने का खतरा भी बढ़ जाता है। डेयरी उद्योग में किसानों पर अधिक दुग्ध उत्पादन एवं एंटीबायोटिक अवशेष दूध में कम मात्रा में आने का दबाव बढ़ रहा है। विकसित देशों में दूध विक्रय संस्था (एमएम.बी.) स्थापित है जो कि दूध में अधिकतम, एंटीबायोटिक अवशेष होने की जानकारी देते हैं। ब्रिटेन में दूध में 0.005 आईयू पेनिसिलीन के अवशेष होने से दूध को उपयोग में नहीं लिया जाता है, जिससे किसानों को भारी हानि होती है। अब भारत में भी कुछ-कुछ संस्थाएं दूध खरीदने से पहले दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों की जांच करने में लगे हैं। अत: पशुपालकों एवं पशुचिकित्सकों को पशुओं के इलाज के लिये एंटीबायोटिक का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए ताकि दूध में एंटीबायोटिक के अवशेष आने की संभावनाओं को कम किया जा सके।
जीवाणुनाशक औषधियों के दूध में अवशेष का प्रकोप
दुग्ध उत्पादन बनाने वाले उद्योगों पर प्रभाव – यदि दूध में एंटीबायोटिक अवशेष ज्यादा हैं तो दूध से बनने वाले उत्पाद जैसे कि दही, क्रीम, छाछ, पनीर आदि के निर्माण में बाधा डालते हैं, क्योंकि जीवाणुनाशक दवाएं स्टार्टर कल्चर को प्रभावित करते हैं। पेनिसीलीन ज्यादा उपयोग में आने वाला एंटीबायोटिक है।
मनुष्यों पर होने वाले दुष्प्रभाव– एंटीबायोटिक अवशेषों के दूध में आने से मानव पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। त्वचा संबंधित रोग एंटीबायोटिक जैसे कि पेनिसिलीन के कारण हो सकते हैं। इनके कारण शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है।
दूध में जीवाणुनाशक अवशेष होने के कारण
रोगों के उपचार जैसे कि थनैला में एंटीबायोटिक का उपयोग (थन के द्वारा)दूध में एंटीबायोटिक अवशेष आने का प्रमुख कारण है। जीवाणुनाशक दवाओं के दूध में आने के अन्य कारण इस प्रकार हैं:-
- जानवरों में दवाओं का शरीर से बाहर देरी से उत्सर्जित होना।
- अत्यधिक मात्रा में एंटीबायोटिक के उपयोग से।
- एंटीबायोटिक दवाओं के दूध से निकासी की अवधि की देखरेख न हो।
- एंटीबायोटिक से उपचारित जानवरों की पहचान न हो पाना।
- सामान्यत: दूध में एंटीबायोटिक अवशेषों की जांच फैक्ट्रियों द्वारा किया जाता है। जांच की लागत एवं समय को देखते हुए दूध की जांच महीने में 1 या 2 बार ही हो पाती है। एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष दूध में जांचने की कई विधियां हैं जो इस प्रकार हैं-
अंतर जांच विधि – जांच के लिये स्टेप्ट्रोमाइसस थर्मोफिलस नामक जीवाणु एवं ब्रोमोक्रिसॉल डाई का उपयोग किया जाता है। इस जीवाणु द्वारा दूध में वृद्धि के दौरान लैक्टिक अम्ल उत्पन्न किया जाता है। जिससे दूध का पीएच कम हो जाता है जिससे डाई का रंग नीला से पीला हो जाता है। परंतु यदि डाई का मूल रंग नीला ही रहता है तो यह दर्शाता है कि जीवाणु की वृद्धि दूध में एंटीबायोटिक अवशेष होने के कारण रुक गयी हैं।
डॉल्वों जांच विधि– कई यूरोपीय देशों में जांच के लिये इस विधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि में बैसिलस स्टीरोथर्मोफिलस नामक जीवाणु का उपयोग किया जाता है, जो इंटर जांच विधि में उपयोग होने वाले जीवाणु स्ट्रेप्टोमाइसिस थर्मोफिलस से ज्यादा प्रभावी है। इस विधि से सूक्ष्म मात्रा में एंटीबायोटिक अवशेष होने का भी पता लगाया जा सकता है।
दूध में जीवाणुनाशक अवशेषों के दुष्प्रभाव से बचाव के तरीके
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- डॉ. हिमांशु प्रताप सिंह
- डॉ. दिव्या तिवारी
- डॉ. आर.के. जैन
- डॉ. एम.के. मेहता
पशुपोषण विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विज्ञान महाविद्यालय, महू (म.प्र.)