Animal Husbandry (पशुपालन)

बाड़े का चारा कैसा हो

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भारतीय गौवंश के इस निम्न उत्पादन क्षमता का प्रमुख कारण हैं निम्न आनुवांशिक क्षमता तथा दूसरा महत्वपूर्ण कारण हैं निम्न मात्रा में निम्न स्तर। निम्न गुणवत्ता का चारा मिलना। अत: अगर पशुपालक भाई निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें तो निश्चित रूप से भारतीय गौवंश के अच्छी दुग्ध उत्पादक क्षमता प्राप्त मादाओं से अच्छा दुग्ध उत्पादन मिल सकता हैं, वह बरकरार रह सकता हैं तथा उसमें बढ़ोत्तरी भी हो सकती हैं।
पशु के दैनिक आहार में हरा चारा तथा सूखा चारा दोनों शामिल होने चाहिए क्योंकि अगर सिर्फ हरा चारा खिलाया तो दूध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होगी लेकिन उसमें बसा का प्रतिशत कम होगा। अगर सिर्फ सूखा चारा खिलाया तो दूध में बसा का प्रतिशत तो जरा सा बढ़ेगा लेकिन दूध उत्पादन में कमी आयेगी। अत: पशु के दैनिक आहार में 60 प्रतिशत हरा चारा तथा 40 प्रतिशत सूखा चारा होना चाहिए। ऐसा करने पर दूध उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ दूध में बसा की मात्रा भी सामान्य रहती हैं। इसके साथ ही पशु आहार में एकदल चारा जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का के अलावा दलहनी चारा जैसे बरसीम, ल्यूसर्न, लोबिया आदि होना बहुत जरूरी हैं।
चारे के माध्यम से प्रोभूजीन प्रोटीन तथा अन्य पोषक द्रव्यों की समुचित मात्रा में पूर्ति करने हेतु दलहनी चारा जैसे बरसीम, ल्यूसर्न, उड़द, मूंग, मूंगफली, लोबिया आदि के साथ मक्का, ज्वार या बाजरा का 1:3 इस अनुपात में मिश्रण करावे। केवल दलहनी चारा खिलाने से पशु को बदहजमी, पेटशूल वायु तथा दस्त आदि समस्याओं का सामना कर पड़ सकता हैं। प्रोटीन युक्त चारे से दूध उत्पादन बढ़ता हैं।

भारत में विश्व में मौजूद पशुधन का पांचवा हिस्सा है लेकिन उत्पादकता काफी कम हैं। यहां की अवर्णित गायों का औसतन दूध उत्पादन 1 से 2 लीटर प्रतिदिन, अवर्णित भैंसों का औसतन दूध उत्पादन भी 1 से 2 लीटर प्रतिदिन है। इसके विपरीत विदेशी दुधारू पशु जैसे होल्स्टीन फ्रीजीयन ब्राउन स्वीस, जर्सी तथा आयरशायर इन नस्लों की मादाओं का प्रति ब्यांत औसत दूध उत्पादन अनुक्रम से 5500 से 6000 लीटर, 9000 लीटर, 4000 लीटर तथा 4600 लीटर होता हैें।

हमारे देश में ज्यादातर परम्परागत पद्धति से पशुपालन होता हैं जिसमें 90 प्रतिशत से भी ज्यादा पशु अपने लालन-पोषण हेतु चराई पर निर्भर होते हैं। इन पशुओं के लिये 61 करोड़ टन से भी ज्यादा हरा चारा तथा 86 करोड़ टन से भी ज्यादा कड़बी। सूखे चारे की आवश्यकता हैं। जबकि इनकी उपलब्धि अनुक्रम से करीबन 21 करोड़ टन और 48 करोड़ टन हैं। हमारे देश के पशुधन के लिए 1000 करोड़ टन से भी ज्यादा चारे की आवश्यकता हैं। सारांश यह हैं कि हमारे देश में चारे की कमी हैं। अत: हमें चारे की बचत करनी चाहिए। हरे चारे और सूखे चारे से पशु के वृद्धि, पोषण, दूध उत्पादन तथा प्रजनन की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती हैं। अत: उन्हें ‘खुराकÓ खिलाना अत्यावश्यक हैं। खुराक एक मिश्रण होता हैं जिसके कुछ मुख्य घटक होते हैं जो निम्नलिखित हैं।
मोटा पिसा हुआ अनाज…..38त्न या किलो
खली (सरसों या अन्य)…..20त्न या किलो
अनाज का चोकर…………20त्न या किलो
दाल की चुरी (चुनी)………20त्न या किलो
98त्न या किलो
+1त्न सादा नमक
+ 1त्न खनिज मिश्रण
100त्न या किलो
उक्त लिखित मिश्रण में अगर खनिज, खनिज-ईट के स्वरूप में चाटने हेतु उपलब्ध करें तो खनिज मिश्रण चूर्ण यानि पाउडर के स्वरूप में डालने की जरूरत नहीं। ऐसे में मिश्रण में 2 किलो नमक मिला दें। और खनिज ईट बाडे में चाटने हेतु टांगकर रखें। इसके अलावा ध्यान रहें कि पशु के बाडे में चारे की नांद 24 घंटे हरे तथा सूखे चारे से सराबोर रहें। पशु को 24 घंटे स्वच्छ, ताजा पानी मिलने हेतु पानी की टंकी पशु के बाड़े के आंगन में रखें। पशु आहार में अचानक बदलाव ना करें। पशु को खुराक निम्नानुसार दें।
अगर पशु को प्रचुर मात्रा में हरा चारा जिसमें प्रोयूजिनयुक्त (प्रोटीनयुक्त) चारे जैसे बरसीम, ल्यूसर्न, लोबिया आदि भरपेट खिला रहे हैं तो प्रसिद्ध प्रतिदिन दूध उत्पादन देने वाली मादा को खुराक खिलाने की जरूरत नहीं होती। लेकिन इससे ज्यादा (यानी 5 लीटर/प्रतिदिन से ज्यादा) दूध उत्पादन हैं तो गाय को प्रति ढाई लीटर दूध उत्पादन पर 1 किलो खुराक तथा भैंस इसके अलावा शरीर पोषण हेतु हर पशु को रोजाना एक किलो खुराक अवश्य खिलायें। पशुओं को अगर खली या खुराक देना है तो पहले उसे थोड़ा पानी छिटककर गीला करें ताकि खाने में आसानी हो, लार-स्त्रवण ठीक-ठाक हो, जायका बढ़ें तथा पाचनीयता बढ़ें। सूखे पशु (दूध न देने वाले पशु) तथा बैलों को भी रोजाना एक किलो खुराक अवश्य खिलायें ताकि उनके शरीर का पोषण ठीक-ठाक हो। हर पशु को खिलाया जाने वाला आहार तथा उसका दैनंदिन दुग्ध उत्पादन दोनों का लेखा-जोखा रखें। इससे, अगर दूध उत्पादन में कोई बदलाव आया तो पता चलेगा। पशु आहार अपने इलाके में उपलब्ध कृषि उत्पादन तथा उपलब्ध चीजों से बनायें ताकि कम खर्च में आहार बने और पशुपोषण का खर्च कम हो सकें।
उसी प्रकार पशु की जरूरतों की पूर्ति हेतु अपने खेत पर प्रचुर मात्रा में हरी घांस, चारा आदि लगावें। क्योंकि हरा चारा खिलाने से जहां एक ओर दूध उत्पादन बढ़ता हैं वहीं दूसरी ओर खुराक का खर्च घटता हैं। पशु आहार पर कुल दूध उत्पादन का 60 से 70 प्रतिशत खर्च होता हैं जो कि काफी ज्यादा हैं। अत: इस खर्च को घटाना जरूरी हैं तभी पशुपालक को ज्यादा मुनाफा मिलेगा।

  • डॉ. सुनील नीलकंठ रोकड़े
    मो. : 7850347022

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