कृषि महाविद्यालय की जमीन का मामला भ्रम की स्थिति पैदा करने के प्रयास
इंदौर। वर्तमान कृषि महाविद्यालय इंदौर की भूमि वर्ष 1924 में तत्कालीन कलेक्टर के समक्ष निजी किसानों से अधिग्रहित की गई थी। परंतु वर्तमान में राजस्व के रिकॉर्ड में महाविद्यालय की कुछ जमीन को पड़त भूमि के रूप में दर्शाया जा रहा है। इसी को आधार बनाकर जिला प्रशासन इस भूमि पर अन्य शासकीय निर्माण का प्रयास कर रहा है। प्रशासन के इन प्रयासों का विरोध अब इंदौर के वकील भी कर रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि इस विवादित नामांतरण में हुई त्रुटि के सुधार के लिये कृषि महाविद्यालय द्वारा कई बार लिखित में आवेदन भी दिये जा रहे हैं। परंतु अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
सूत्र बताते हैं कि विगत वर्षों में राजस्व के विभिन्न आदेशों एवं परिपत्रों में स्पष्ट रूप से उक्त भूमि को कृषि महाविद्यालय की निजी स्वामित्व की भूमि के रूप में उल्लेखित किया गया है। स्व. श्री सुन्दरलाल पटवा ने भी अपने मुख्य मंत्रित्वकाल में कृषि महाविद्यालय के विकास के लिये घोषणाएं की थी। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मश्री कुट्टी मेनन ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखकर इस समस्या से अवगत कराया है।
यहां यह भी उल्लेखनीय होगा कि कृषि अनुसंधान कार्य के लिये स्थान का निर्माण मात्र बिल्डिंगों का निर्माण नहीं होता कृषि अनुसंधान केन्द्र के निर्माण के लिये वहां की मिट्टी को भी वर्ष दर वर्ष सुधार कर अनुसंधान किये जाते हैं। इसलिये कई दशकों में तैयार इस महाविद्यालय को जहां शोधार्थी छात्र वर्षों की मेहनत से कोई नई तकनीक नई बीज किस्म को तैयार करते हैं, हानि पहुंचाना कृषि विकास को समर्पित सरकार की किस सोच का परिणाम है, यह बात समझ से परे है।