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कृषि फसलों में माईट की समस्या व निवारण

माईट की पहचान –

  • इस जीव में चार जोड़ी पांव होने के कारण ये अन्य जीवों से अलग दिखाई देता है।
  • ये बहुत अधिक सूक्ष्म होने के कारण नग्न आंखों से लगभग नहीं देखा जा सकता है।
  • इसका शरीर दो भागों में विभक्त होता है।
  • इनके निम्फ अवस्था में तीन जोड़ी पांव होते हैं जबकि वयस्क अवस्था में चार जोड़ी पांव पाये जाते हैं।
  • इनके शरीर पर पंख तथा श्रृंगिकाएं नहीं होती हैं।
  • इनमें मुखांगों के स्थान पर सुई के समान एक जोड़ी चेलेसरी तथा पेडीपाल्प (चूसक) पायी जाती है।

कृषि में माईट के प्रकोप में वृद्धि के कारण-

  • क्लोरीनेटेड हाईड्रोकार्बन्स तथा पायरेथ्रोईड समूह के कीटनाशकों का अविवेकपूर्वक उपयोग करने से माईट के प्राकृतिक शत्रुओं का नाश हो जाता है जिसके कारण माईट की संख्या में बहुत ही तेजी से वृद्धि होती है।
  • माईट में कीटनाशक रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होना क्योंकि किसान भाई कीटनाशकों का सिफारिश के अनुसार प्रयोग नहीं करते है प्राय: वो कीटनाशक रसायनों की कम मात्रा का प्रयोग करते है। इसी कारण से माईट में तेजी से प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।
  • उन्नत कृषि तकनीक, अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रयोग, नत्रजन युक्त उर्वरकों का आवश्यकता से अधिक उपयोग तथा सिंचाई जल का कुप्रबंधन आदि कुछ ऐसे कारण है जिनके द्वारा माईट की संख्या में विस्फोटक तौर पर वृद्धि होती है।
  • प्राय: कीटनाशक दवाओं का सही प्रकार से छिड़काव नहीं होने से पौधे के कुछ भाग इसके प्रभाव से अछूते रह जाते है तथा यहीं से माईट की संख्या में पुन: वृद्धि होती है।
  • पूर्व में कई माईट प्रजातियां कृषि के हिसाब से बहुत कम महत्व की मानी जाती थी मगर आज की इस बदली हुई जलवायु में वो मुख्य नाशीजीव का स्थान ले चुकी है, जो कृषि के लिये बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रस्तुत लेख में कृषि के लिए नुकसानदायक माईट की पहचान, क्षति तथा उनके समन्वित नाशीजीव प्रबंधन उपायों के बारे में सविस्तार चर्चा करी जा रही जो किसान भाईयों के लिये उपयोगी सिद्ध होगी है।
खाद्यान्न फसलों की माईट- खाद्यान्न फसलों जैसे की मक्का, ज्वार, धान, गन्ना आदि में टेट्रानिकीड़ी कुल की माईट ओलीगोनिंकस ईंडजीकस से नुकसान होता है। जबकि धान में टार्सेनोमीडी कुल की शीथ माईट, स्टेनीयोंटार्सोनीमस स्पीन्की का प्रकोप देखा गया है गेहूं में ईरीयोफीडी कुल की माईट का प्रकोप देखा जाता है जो कि इसमें स्ट्रीक मोजेक वायरस को फैलाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

ज्वार की माईट- इसका वैज्ञानिक नाम (ओलीगोनिंकस ईडीकस माईट हल्के हरे रंग की होती है जिसके शरीर पर काले रंग के कुछ धब्बे पाये जाते हैं। इसके वयस्क तथा शिशु दोनों ही पत्तियों के नीचे जाले बनाकर समूह में रहकर रस चूसते हैं। इससे पत्तियों पर अनेकों पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ये छोटे-छोटे धब्बे आपस में एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं तथा बड़े गहरे लाल के दागनुमा धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे पौधों की बढ़वार अवरूद्ध हो जाती है। इस माईट का प्रकोप अगस्त से दिसम्बर माह के दौरान अधिक देखने को मिलता है।

धान की शीथ माईट- इसका वैज्ञानिक नाम स्टेनीयोंटार्सोनीमस स्पीन्की है। ये माईट बहुत ही सूक्ष्म आकार की, चार जोड़ी पैरों वाली होती है। इसे धान की आवर्तक पर्ण (शीथ लीफ) पर ढूंढा जा सकता है। यहां पर ये माईट समूह में रहती है तथा सतत पत्तियों से रस चूसती रहती है जिससे पत्तियों की कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है। इसके कारण पत्तियों को देखने पर उनके ऊपर धब्बे दिखाई देते हैं।

सब्जियों की माईट – सब्जियों जैसे कि मिर्च, बैंगन, ग्वार तथा चवला में पीली/ब्रॉड माईट (पोलीफेगाटार्सेनेमस लेटस) है ये टार्सेनोमिडी कुल की माईट है, का प्रकोप देखने को मिलता है। जबकि भिन्डी तथा बैलों वाली सब्जियों में टेट्रानिकीड़ी कुल की माईट जैसे टेट्रानिन्कस अर्टीकी का प्रकोप बहुत अधिक संख्या में देखा जाता है।

फलों को नुकसान पहुंचाने वाली माईट- फलों को नुकसान पहुंचाने वाली माईट में आम की माईट, नारियल की ईरियोफिड माईट तथा चीकू की टुकरेला माईट आर्थिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है तथा इन फलों में इनका काफी नुकसान देखने को मिलता है।

आम की माईट- टेट्रानिकीड़ी कुल की माईट जैसे ओलीगोनीकस मेंजीफेरी पत्तियों की ऊपरी सतह पर रहकर उनसे रस चूसती रहती है। इसी प्रकार से टेट्रानिकस सिनाबारीनस पत्तियों की निचली सतह पर समूह में रह करके वहां से रस चूस करके भारी मात्रा में नुकसान पहुंचाती है। इसके कारण पत्तियों पर शुरूआत में सफेद दाग बन जाते है जो बाद में बड़े हो जाते हैं तथा उपद्रवित पत्तियां धीरे-धीरे पीली पड़ कर गिर जाती है। इन दोनों माईट का प्रकोप सामान्यतया सितम्बर माह की शुरूआत में देखा जाता है मगर नवम्बर तथा मई माह में इनके प्रकोप में तेजी आ जाती है।
तिलहनी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली माईट-
तिल की माईट- पीली/ब्रॉड माईट (पोलीफेगाटार्सेनेमस लेटस) का प्रकोप तिल में देखने को मिलता है। ये माईट टार्सेनोमिडी कुल से संबंधित है। ये आकार में गोल तथा मैले सफेद रंग की होती है। इस माईट का प्रकोप खेत के ऐसे भागों से शुरू होता है जहां पर पानी लम्बे समय तक भरा रहता है। तथा नमी अधिक होती है। दो-तीन दिनों में इस माईट का प्रसार सम्पूर्ण खेत में तेजी से हो जाता है। इसके शिशु तथा वयस्क दोनों ही पत्तियों की निचली सतह पर रह करके उनका रस चूसते रहते है। माईट से प्रकोपित पत्तियां मुड़ जाती है तथा इनके किनारों की तरफ से मुड़ कर विकृत हो जाती है। ये दूर साए देखने पर काले रंग की दिखाई देती है। इसके प्रकोप के कारण पौधे में फूल नहीं लगते है तथा फलियां भी नहीं बनती है जिससे उपज का भी नुकसान होता है।

मूंगफली की माईट- मूंगफली में वर्षा तथा गर्मी के मौसम में कभी-कभी स्पाईडर माईट (टेट्रानिकस अर्टीकी) का प्रकोप देखा जाता है। ये माईट पत्तियों की निचली सतह पर जाला बनाकर समूह में रहती है तथा पत्तियों से लगातार रस चूसती रहती है। इसके कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर असंख्य सफेद रंग के धब्बे बन जाते है। तथा दूर से पौधे सफेद रंग के दिखाई देते हैं। इस माईट का प्रकोप फसल की बाद की अवस्था में जब वातावरण में अधिक गर्मी होती है, अधिक देखने को मिलता है।
दलहनी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली माईट- यहां पर तुअर की फसल में सूक्ष्म आकार की, ईरीयोफीड माईट, एसेरिया कैजेनी का प्रकोप होता है। ये माईट 0.4 मि.मी. आकार की होती है। ये माईट धागे जैसी संरचना बनाकर उससे इससे जाले बना करके इसके अंदर रह कर लगातार रस चूसती रहती है। ये माईट तुअर में बंध्यता के विषाणु (वायरस) का भी फैलाव करती है। इस प्रकार के पौधों में दो नहीं बनते हैं।

मसाला फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली माईट- प्राय: लहसुन की फसल को ईरियोफिड कुल की माईट, एसेरीया, टड्रालीपी से नुकसान उठाना पड़ाता है। इस माईट का शरीर त्रिकोणीय होता है तथा इसकी लम्बाई तकरीबन 0.20 मि.मी. होती है इसके अग्र भाग पर दो जोड़ी पैरी तथा सुई के समान मुखांग पाये जाते हैं। इसके शरीर का आगे का भाग मोटा तथा पिछले भाग पतला होता है।

ये माईट हल्के पीले सफेद की रंग की होती है। ये माईट हरे तथा संग्रह करें गये लहसुन को नुकसान करती है। इसके शिशु तथा वयस्क दोनों ही लहसुन की कली की सतह पर रहकर उनका रस चूसकर नुकसान पहुंचान पहुंचाती है। माईट ग्रस्त कलियां सिकुड़ी हुई तथा भूरे धब्बे युक्त दिखाई देती है। इसके कारण लहसुन की गांठों में सडऩ रोग भी लग जाता है। इस माईट का फैलाव लहसुन की माईटग्रस्त कलियों से अथवा कंदों से होता है। माईट ग्रसित पत्तियाँ मुड़ी हुई दिखाई देती है। तथा इसकी मुख्य शिरा बहुत पीली पड़ जाती है। पत्तियों के ऊपरी भाग टेड़े-मेड़े हो जाते हैं। इस माईट का प्रकोप शुरूआती अवस्था में छोटे खंडों में दिखाई देता है मगर बाद में ये सम्पूर्ण खेत में फैल जाती है।

कृषि से माईट समस्या का समन्वित प्रबंधन-

  • खेत के चारों तरफ के खाली स्थानों तथा बेकार जमीन की साफ-सफाई करें तथा फसल अवशेष को एकत्रित करके जला दें।
  • खेत को खरपतवारों से सदा मुक्त रखना जरूरी है इससे मुख्य फसल की अनुपस्थिति में माईट का फैलाव रोकने में मदद मिलेगी तथा इसकी संख्या भी कम करी जा सकेगी।
  • सदैव फसल-चक्र अपनाना जरूरी है।
  • माईट प्रतिरोधक फसल किस्मों का उपयोग करना जरूरी है। धान में मसूरी, भिंडी में गुजरात भिंडी -1, सलेक्शन-2 पादरा-18-6 तथा पंजाब पद्मनी, मिर्च की ज्वाला तथा पंत सौ-1, बैंगन की ए, बी एच-2, गुलाबी बैंगन तथा पर्पल लौंग, आम की वशी बादामी, सरदार तथा जमादार, चीकू की सी.ओ.1 तथा सीओ-2 इसी प्रकार से कपास की दिग्विजय, गुजरात कपास-2 तथा वारालक्ष्मी को बुवाई के लिये काम में लेना चाहिये।
  • नत्रजन यू के उर्वरकों का हमेशा सिफारिश के अनुसार ही प्रयोग करें।
  • यदि माईट के प्राकृतिक शत्रुओं की उपस्थिति देखने को मिले तो उनको कीटनाशक रसायनों से बचाना चाहिये तथा सदैव सुरक्षित कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करें। इसके लिये नीम आधारित दवाओंं का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
  • माईट का प्रकोप शुरूआत में एक-दो पौधों पर देखने को मिलता है तथा वहीं से इनका धीमे-धीमे फैलाव होता है। इस कारण से इस प्रकार केमाईट ग्रसित पौधों का तुरंत ही नाश करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिये इन पौधों पर ही रसायनिक दवाओं का छिड़काव करें।
  • इनमें से किसी भी एक सर्वागी माईटनाशी दवा जैसे कि मिथाईल-ओ-डिमेटॉन 25 ईसी 10 मि.ली. अथवा डायमिथिएट 30 ई.सी. 10 मि.ली.अथवा प्रोपरगाईट 57 ई.सी. 25 मि.ली. अथवा इथियान 50 ई.सी. अथवा फेनाजाक्विन 57.5 ई.सी. 10 मि.ली. अथवा स्पायरोमेसीफेन 240 एस.सी. 10 मि.ली. में से किसी भी एक को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माईट का प्रभावी रूप से नियंत्रण संभव होता है।
  • पायरेथ्राईड समूह के कीटनाशकों जैसे कि साईपरमेथ्रिन, डेल्टामेथ्रिन, फेनवरलेट, आदि का प्रयोग नहीं करे, क्योंकि इस समूह के कीटनाशकों का बार-बार प्रयोग करने से माईट के प्रकोप में तेजी से वृद्धि होती है।
माईट बहुत ही छोटे आकार वाला जीव है जो ऐकेरी गण के एरेकनीडा वर्ग का संधिपाद (आर्थोपोड) जीव है। माईट के 200 से भी अधिक कुल है तथा 48,200 से भी अधिक प्रजातियां हैं। इनमें से कई प्रजातियां पानी तथा मिट्टी में मुक्त रूप से निवास करती है तथा कई पौधों तथा प्राणियों पर परजीवियों के रूप में अपना जीवन निर्वाह करती हैं। कृषि में आज माईट का प्रकोप धीरे-धीरे बढ़ रहा है इनमें मुख्य रूप से टेट्रानिकीड़ी, टिनुपाल्पीडी, टार्सेनोमीडी, ईरीयोफीडी तथा टकरेलेडी कुल की माईट कृषि के लिये प्रमुख नाशी जीव (पीड़क) बन गयी है। इन कुलों की 44 के लगभग माईट कृषि फसलों को नुकसान करती है।

 

  •  डॉ. अभिषेक शुक्ला
  • गिरीश हडिया 
  • डॉ. जी.जी. रादडिय़ा कीट विज्ञान विभाग, नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी, गुजरात

 

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