किष्किंधा कांड से कलयुग तक खरपतवार
फसल के शत्रु खरपतवार की उत्पत्ति धरा पर खेती के सैकड़ों वर्ष पहले से ही हो गयी थी, यही कारण है कि प्रकृति के अतिरेक से खेती, अनुराग से, अनुकूलता से कृषि की तुलना में अधिक सम्पर्क में रहे, पले-पुसे, पीढिय़ां निकालते रहे, और यही कारण है कि वे मुख्य फसलों की तुलना में अधिक मजबूत हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार प्रतिवर्ष खेती को कीट, रोग तथा खरपतवार के कारण 90 हजार करोड़ तक की हानि होती है जिसमें से अनुमानत: 60 प्रतिशत हानि की वजह खरपतवार ही तो हैं। खरपतवार की उपस्थिति से फसल की उपज में कमी तो होती ही है। साथ में भूमि से प्रमुख तथा गौण तत्वों का अवशोषण भी बराबरी से होता है। एक कृषक जो अपनी पूर्ण क्षमता लगाकर फसल लगाता और अच्छे उत्पादन की आस लगाता है ये अनचाहे पौधे, खरपतवार उसके उद्देश्य, उसके लक्ष्य को पूरा नहीं होने देते है। क्योंकि मुख्य फसल को प्राप्त होने वाले प्रकाश, नमी, जगह तथा पोषक तत्वों का बंटवारा ये खरपतवार केवल बराबरी से नहीं बल्कि अधिक शोषण करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अपनी नई पीढ़ी का संवर्धन करते रहते हैं। परिणाम स्वरूप 5 से लेकर 60 प्रतिशत तक उत्पादन को प्रभावित करते है। कहीं-कहीं, कभी-कभी तो खरपतवार की उपस्थिति कृषक की अनदेखी से मुख्य फसल से भी अधिक देखी गई, प्रयोगों में यह भी पाया गया है कि मूंगफली की फसल में खरपतवार द्वारा 30-70 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है। सोयाबीन, धान तथा अन्य खरीफ फसलों को यदि बुआई, रोपाई के 30-35 दिनों के अंदर खरपतवारों से मुक्ति यदि नहीं दिलाई जा सकी तो 20-25 प्रतिशत हानि उत्पादन में सम्भावित हो जाती है। खरपतवारों का उल्लेख हमारे धर्मग्रन्थों में किया गया हैं। कवि श्रेष्ठ गोस्वामी तुलसीदास ने किष्किंधा कांड में किसान खेती तथा कांस का उल्लेख किया है, जिससे उनकी उपस्थिति आदिकाल में साबित होती है। कांस, नागरमोथा, बथुआ कृषि में जोंक के समान जुड़े हुये है। कांस एक जिद्दी खरपतवार है जिससे निपटने के लिये एकीकृत कांस उन्मूलन कार्यक्रम शासन द्वारा भी चलाया जा चुका है। पौध संरक्षण का सीधा सस्ता सरल नियम है कि समयबद्ध कार्यक्रम बनाकर आगे बढ़ा जाये। कीट, रोग खरपतवारों के जीवन की कमजोर कड़ी पर नजर रखनी होगी और उसी कमजोर कड़ी पर हमारा हमला होना अधिक अच्छे परिणाम दे सकता है। खरपतवार को निपटाने के लिये ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई, साफ-सुथरी मेड़ें तथा अच्छे विश्वसनीय श्रोत का बीज बुआई पूर्व तथा बाद में खरपतवारनाशी का उपयोग निंदाई/गुड़ाई यदि समय से की जाये तो इन खरपतवारों पर अंकुश रखा जाना असंभव नहीं होगा। कपास से जुड़े क्षेत्रों में खरपतवार पर अंकुश सरलता से देखा जा सकता है, इसका अनुकरण जरूरी है। 21वीं सदी के इस युग में जब एक ओर एक अरब 25 करोड़ के भोजन का सवाल है। खरपतवार का सफाया करके सरलता से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।