Uncategorized

अरहर अनुसंधान, विस्तार – सब बेकार

 

घर की मुर्गी दाल बराबर कहावत पर अरहर दाल की पिछले एक साल में बढ़ती हुई कीमतों ने दोबारा विचार करने को बाध्य कर दिया है। हर घर में रोज उपयोग होने वाली इस दाल की बढ़ती कीमतों ने इसे आम आदमी की रसोई से बाहर कर दिया है। बढ़ी हुई कीमतों का लाभ भी किसान को नहीं मिल पाया। पुन: आम आदमी को इसे उपलब्ध कराने के लिये हमें नये सिरे से सोचना होगा। यदि हम देश में पिछले 65 साल के उत्पादन पर नजर डालें तो यह पाते हैं कि जहां 1950 से 1955 में अरहर 23 लाख 65 हजार हेक्टर क्षेत्र में ली जाती थी जो सन् 2009-10 से 2013-14 में बढ़कर पिछले पांच सालों में औसतन 39 लाख 24 हजार हेक्टर में ली जाने लगी। परंतु सन् 1950-55 के बीच जो उत्पादकता 747 किलो प्रति हेक्टर थी वह घटकर पिछले पांच साल में 730 किलो प्रति हेक्टर रह गयी। अरहर के उत्पादन में पिछले 65 साल में जो भी वृद्धि हुई है वह अरहर के क्षेत्रफल बढऩे के कारण हुई है न कि आधुनिक तकनीकी के कारण इससे यह लगता है कि जो भी प्रयास पिछले कई पंचवर्षीय योजनाओं में हमने अरहर के उत्पादन बढ़ाने में अनुसंधान व उसके विस्तार के लिए किये गये वे सब व्यर्थ गये। यह एक चिंता का विषय है। इस विषय पर हमें अपनी विफलताओं के कारण पर सोच कर नये सिरे से नीति बनानी होगी। यदि हम विभिन्न राज्यों की 2012-13 की उत्पादकता पर नजर डालें तो उत्पादकता में बहुत बड़ा अंतर पाते हैं। जहां बिहार राज्य में उत्पादकता 2131 किलोग्राम प्रति हेक्टर वहीं आंध्र प्रदेश की उत्पादकता मात्र 524 किलो प्रति हेक्टर है। यह चार गुना अंतर जहां अरहर की उत्पादन क्षमता को दर्शाता है वहीं वह हमारी विफलता की ओर भी इशारा करता है। मध्यप्रदेश अरहर उत्पादन में पिछले कुछ वर्षों में देश में दूसरे स्थान से तीसरे स्थान में आ गया है। जहां देश की वर्ष 2013-14 में औसत उत्पादकता 730 किलोग्राम प्रति हेक्टर थी वहीं मध्यप्रदेश की मात्र 713 किलोग्राम थी। प्रदेश के विभिन्न जिलों में भी उत्पादकता में जमीन आसमान का अंतर देखा गया है। 30 हजार हेक्टर में अरहर लेने वाले छिंदवाड़ा जिले की उत्पादकता जहां 1425 किलोग्राम प्रति हेक्टर है। वहीं 40 हजार हेक्टर क्षेत्र में अरहर लेने वाले सतना जिले की उत्पादकता मात्र 165 किलो प्रति हेक्टर है। यदि हमें अरहर की कीमतों पर नियंत्रण रखना है। और अरहर के आयात पर रोक लगानी है तो जिलेवार कम उत्पादकता के कारणों का विस्तार से अध्ययन कर उनका निराकरण करना होगा या फिर कहावत को बदलना होगा।

 

Advertisements