State News (राज्य कृषि समाचार)

उदयपुर में प्राकृतिक कृषि पर देश भर के वैज्ञानिकों का प्रशिक्षण

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09 नवम्बर 2022, उदयपुर: उदयपुर में प्राकृतिक कृषि पर देश भर के वैज्ञानिकों का प्रशिक्षण – भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा आयोजित प्राकृतिक कृषि बदलते कृषि परिदृश्य के साक्षी दृष्टिकोण एवं संभावनाएॅ विषय पर 21 दिवसीय प्रशिक्षण, जैविक कृषि अग्रिम संकाय प्रशिक्षण केन्द्र, महाराणा प्रताप कृषि एवं विश्वविद्यालय द्वारा 9 से 29 नवम्बर 2022 के दौरान किया जा रहा है। डॉ. शान्ति कुमार शर्मा, निदेशक (जैविक खेती प्रशिक्षण) एवं अनुसंधान निदेशक, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर ने बताया कि इस प्रशिक्षण में देश के विभिन्न राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के विभिन्न संस्थानों के वैज्ञानिक तथा प्राध्यापक 21 दिवसीय प्रशिक्षण में सैदान्तिक ज्ञान के साथ प्रायोगिक एवं उद्यमिता सम्बन्धी जानकारी दी जायेगी। प्राकृतिक खेती वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में लगभग 25 लाख किसानों द्वारा किए जाने का अनुमान है। 

प्राकृतिक खेती एक रसायन रहित कृषि पद्वति है जो खेत या किसान के स्थानीय संसाधनों द्वारा कम लागत तकनीकों पर आधारित विविधिकृत कृषि है। इसके तहत  परम्परागत कृषि तकनीकों, पोषक तत्व प्रबंधन, कीट एवं रोग प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा दिया जाता हैं इससे लागत कम करने में मदद मिलती है 4-5 फसलों एवं देशज पशुधन के साथ- साथ स्थानीय संसाधनों के सामुहिक उपयोग तथा रख-रखाव पर बल दिया जाता है।

प्राकृतिक खेती का महत्वः जलवायु परिवर्तन के कारण असामयिक वर्षा तथा बद्वता तापमान, मिट्टी में घटती जीवांश की मात्रा, बढते पानी एवं पोषक तत्वों की आवश्यकता, बढ़ती खेती की लागत एवं लागत स्वस्थ एवं सुरक्षित भोजन की आवश्यकता के विभिन्न कारणों से भारत में जैविक तथा प्राकृतिक खाद्यों की मांग बढ़ रही है , परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है देश में खाद्य पदार्थों में पेस्टिसाइड के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं तथा भारी धातु प्राप्त हो रहे हैं अतः अतः पूर्ण खाद्य श्रृंखला को ठीक करने के लिए पारिस्थितिक क्षेत्र आधारित देशज ज्ञान एवं विज्ञान आधारित प्राकृतिक खेती चिन्हित क्षेत्रों में किए जाने की आवश्यकता है देश में 2025 तक कुल कृषि क्षेत्रफल के 4 प्रतिशत क्षेत्र पर जैविक एवं प्राकृतिक कृषि किए जाने का लक्ष्य है वर्तमान में लगभग 2 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में जैविक कृषि की जा रही है ।

प्राकृतिक खेती के सिद्धांतः प्राकृतिक खेती पारिस्थितिकी खेती के सिद्धांतों पर आधारित है लेकिन इसमें प्रजातांत्रिक खाद्य प्रभावी तथा खेती स्वालंबन पर मुख्य फोकस होता है। किसान की आवश्यकता अनुसार स्थानीय एवं फार्म उत्पादित साधनों का उपयोग कर लागत कम की जाती है जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की गई इसमें किसानों को क्लस्टर  मोड  में मैदानी इलाकों में 1000 हैक्टर तथा पहाड़ी इलाकों में 500 हेक्टेयर के आधार पर राजस्थान सहित देश के विभिन्न राज्यों में लागू किया जा रहा है इसके तहत 3 वर्ष के कनवर्जन समय किसानों को ₹ 50000 हैक्टर तक की सहायता दी जाती है प्राकृतिक खेती में इस योजना के तहत लगभग 35 लाख हेक्टेयर को सम्मिलित किया जा चुका है 

हाल ही में देश में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद प्राकृतिक खेती में स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्री शुरू करने हेतु पाठ्यक्रम निर्माण करवाया जा रहा है. इससे देश में प्राकृतिक खेती वैज्ञानिक अनुसंधान तथा मानव संसाधन विकास करने में मदद मिलेगी।

21 वी शताब्दी डॉ अजीत कुमार कर्नाटक कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर ने बताया कि 21वीं सदी में खेती की में टिकाऊ पर तथा पेस्टिसाइड सहित भोजन की महत्ता बढ़ने जलवायु परिवर्तन से उपज में गिरावट तथा अधिक लागत कृष्ण में कृषि से किसानों की बढ़ती समस्या के मद्देनजर प्राकृतिक कृषि का महत्व है , इस प्रशिक्षण से देश के वैज्ञानिकों एवं किसानों को फायदा होगा |

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