सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने का अभियान चलाएं
22 जुलाई 2024, भोपाल: सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने का अभियान चलाएं – कृषि क्षेत्र में उन्नत तकनीक के विकास के कारण जहां पानी की उपलब्धता है, किसान खरीफ और रबी की फसल के बाद गर्मी के दिनों में भी फसल ले रहे हैं। इस कारण सिंचाई के लिए पानी की खपत भी कई गुणा बढ़ गई है। चार-पांच दशकों से कुओं के साथ बोरवेल से सिंचाई करना शुरू किया और धीरे-धीरे भूजल स्तर कम होने से अधिकांश किसान सिंंचाई के लिए बोरवेलों पर ही निर्भर हो गए हैं। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में खरीफ के मौसम में सोयाबीन की खेती बहुतायत मात्रा में की जाती है। बरसात के दिनों में सोयाबीन के खेतों में पानी जमा नहीं होने दिया जाता। इसके अलावा कृषि भूमि की कमी के चलते किसानों के खेतों में पहले से विद्यमान जल ग्रहण क्षेत्र में खेती की जाने लगी है। इसके कारण जल ग्रहण क्षेत्र के नाम पर केवल सार्वजनिक तालाब ही बचे हैं। बारिश भी अब एक साथ कई इंच होने लगी है जिसके कारण जमीन में कम मात्रा में पानी जा पाता है। वर्षा का अधिकांश पानी बह जाता है।
भूजल का लगातार दोहन और जल ग्रहण क्षेत्रों की कमी के कारण भूजल स्तर में साल-दर-साल गिरावट हो रही है। जब बोरवेलों की शुरुआत हुई थी, उस समय अधिकतम 100 फीट गहराई पर पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो जाता था। अब कई क्षेत्रों में हजार फुट से भी नीचे भूजल स्तर चला गया है। यह बेहद खतरनाक स्थिति है। गर्मी के दिनों में यह बोरवेल दम तोड़ देते हैं। बोरवेल कराना भी काफी महंगा हो गया है लेकिन सिंचाई के लिए पानी की जरूरत के मद्देनजर बोरवेलों की संख्या भी हर साल बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में सूखे बोरवेल हैं। इन बोरवेलों में हर साल बच्चों के गिरने की भी घटनाएं हो रही हैं। बोरवेलों में बच्चों के गिरने से रोकने के लिए एकमात्र उपाय सूखे या अनुपयोगी बोरवेलों को सावधानीपूर्वक ढाक कर रखें। हालांकि बोरवेलों की खुदाई का मामला स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के अधीन आता है लेकिन केंद्र सरकार का जल संसाधन मंत्रालय भी सतही और भूजल की निगरानी रखता है। अत: केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय भी भूजल स्तर बढ़ाने की दिशा में पहल कर दिशा निर्देश जारी कर सकता है। भूजल स्तर का बढऩा प्राकृतिक क्रिया है यानी बारिश अच्छी होगी तो भूजल स्तर भी बढ़ेगा। यह काफी हद तक सही है लेकिन जल ग्रहण क्षेत्र की कमी और फसल चक्र में परिवर्तन के चलते बरसात का पानी नदियों और नालों के जरिए बह जाता है। तीन-चार दशकों से नालों और छोटी-छोटी नदियों पर स्टापडेम बनाए जाते रहे हैं और इसके सार्थक परिणाम भी आए हैं लेकिन लगातार भूजल दोहन के कारण ये नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में अब एकमात्र उपाय यही बचता है कि भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। इसके लिए सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करना एक सार्थक कदम हो सकता है।
स्थानीय जिला प्रशासन को गांववार चालू और सूखे बोरवेलों की गणना, उनकी गहराई के साथ करवानी चाहिए। इससे यह पता चल सकेगा कि किस गांव में कितने बोरवेल हैं? कितने चालू हैं और कितने सूख गए हैं? उस गांव का भूजल स्तर कितना है? इन सांख्यिकी आंकड़ों से सिंचाई और पेयजल के लिए जल की उपलब्धता के बारे में पता चल सकेगा और भविष्य की स्थिति के बारे में भी अनुमान लगाना आसान होगा। नए बोरवेल की खुदाई की जानकारी ग्राम पंचायत को देने का प्रावधान होना चाहिए। इससे गांवों में बोरवेलों के बारे अद्यतन जानकारी उपलब्ध रहेगी। किसानों को ‘कम पानी कम लागत और अधिक उत्पादनÓ के सिद्धांत पर खेती करने के नए तौर तरीकों की वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराने की दिशा में भी गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा भूजल स्तर में हो रही गिरावट ही है और इसके लिए सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करना भी एक कारगर उपाय है। जिला प्रशासन और ग्राम पंचायतों को इस दिशा में कार्य करना होगा अन्यथा पर्याप्त वर्षा होने के बाद भी सिंचाई के लिए पानी की कमी बनी रहेगी। सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने की वैज्ञानिक पद्धतियां हैं। प्रयोग के तौर पर प्रत्येक गांव में कम से कम 5 सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने की योजना शुरू करनी चाहिए। राज्य सरकार चाहे तो सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने के लिए संरचना बनाने पर होने वाला खर्च वहन कर सकती है। इससे किसान प्रेरित होंगे और बड़ी संख्या में किसान रिचार्ज करने के लिए आगे आ सकते हैं। इससे भूजल स्तर में निश्चित ही वृद्धि होगी। सूखे बोरवेलों के रिचार्ज के लिए सरकार को एक समिति बनाकर उसकी अनुशंसा के आधार पर योजना बनानी चाहिए तथा सूखे बोरवेलों को रिचार्ज करने के लिए अभियान भी चलाना चाहिए।
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