क्या किसानों के लिए बजट राहत लाएगा ?
लेखक: शशिकान्त त्रिवेदी, वरिष्ठ प्रत्रकार
20 जुलाई 2024, भोपाल: क्या किसानों के लिए बजट राहत लाएगा ? – पिछले महीने राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन ने भारत में खेती की स्थिति के अनुमानित आँकड़े जारी किए. राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, खराब खरीफ फसल और रबी फसलों की कमजोर शुरुआती बुआई के कारण वित्त वर्ष 2024 में कृषि क्षेत्र में 1.8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, जो सात साल का निचला स्तर है।
केंद्रीय बजट 2024-25 आने वाला है और इसके साथ ही भारत के किसान समुदाय में बजट से खेती में सुधारों के लिए मिलने वाले धन के लिए नई सरकार से नई उम्मीदें हैं. अपने पिछले अनुभवों के आधार पर कुछ नए निर्णय भी ले सकती है। अभी जो मौजूदा योजनाएँ हैं, उनमें सुधार की बहुत आवश्यकता है।
हालांकि, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र अच्छी गति से बढ़ रहे हैं फिर भी कुछ सुधार खेती के क्षेत्र को भी बहुत आगे बढ़ा सकते हैं। आज, किसान अपनी सीमित उपज और उससे होने वाली आय पर ही निर्भर है। पहले ऐसा माना गया था कि अन्न की मांग में अंतर के आधार पर फसलों में विविधता लाने से कृषि आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका है फिर भी सरकार कुछ प्रयोग करती रहती है. मसलन भारत में दालों, विशेष रूप से मूंग की, आपूर्ति में कमी है। और इसीलिये हाल ही में कृषि मंत्री ने घोषणा की है कि सरकार सभी मूंग दाल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदेगी।
न्यूनतम समर्थन मूल्य को न्यूनतम मजदूरी के समान संदर्भ मूल्य बनाने के लिए सरकार कोशिश कर रही है लेकिन ये भारत जैसे विशाल देश में यह सुनिश्चित करना आसान नहीं है कि यह कृषि उपज की बिक्री के लिए एक आधार रेखा मानी जावे।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वित्त वर्ष 2024-25 के बजट अनुमान में 14,600 करोड़ रुपये का आवंटन प्रतिकूल मौसम की स्थिति और अन्य जोखिमों के कारण फसल के नुकसान को बचने के लिए महत्वपूर्ण है। कई इलाकों में बारिश की कमी से सूखा पड़ने और उसे आधिकारिक रूप से घोषित करने के मुद्दे हैं, खासकर उन इलाकों में जहां फसलों को बहुत ज़्यादा नुक्सान नहीं हुआ है। इसलिए आने वाले बजट में खेती किसानी के लिए और अधिक बजट राशि की ज़रूरत है.
इसी तरह उर्वरक सब्सिडी सकल घरेलू उत्पाद का 0.50 प्रतिशत है। किसानों को नैनो उर्वरकों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने लिए भी अतिरिक्त बजट आवंटन की आवश्यकता है ताकि लगभग एक लाख करोड़ के उर्वरक जो भारत आयात किया जाता है उसमे थोड़ी कमी आ सके.हाल में चल रही योजनाएं प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), डेयरी फार्मिंग और मछली पालन किसी न किसी हद तक खेती में बढ़ती लागत से कुछ हद तक राहत दिला सकती हैं.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) का उद्देश्य भी किसानों को एक हद तक कुछ न कुछ राहत दिलाना है. आने वाले बजट में वित्तीय सहायता और ऋण लक्ष्य (MISS) योजना छोटे कर्जों के लिए किसानों की बहुत मदद कर सकती है क्योंकि ऐसी ही योजनाएं खेती के सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ा सकती हैं.
खेती में पूंजीगत व्यय और बीज में होने वाले खर्चों के लिए खेती के लिए कर्जों को और कम ब्याज पर मुहैया करवाने की ज़रूरत है. इसके लिए ब्याज अनुदान और ऋण चुकाने की गारंटी (वर्तमान में ₹22,600 करोड़) को बढ़ाने की ज़रूरत है.लगातार गिरते रूपये के जोखिम के कारण खेती सबसे पहले प्रभावित होती है. खेती में आज निर्यात लगभग साढ़े चार लाख करोड़ है। अच्छी उच्च गुणवत्ता के कृषि उत्पादों को निर्यात करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि निर्यात से जुड़े छोटे किसानों को कुछ राहत मिल सके. इसके लिए बजट राशि का इस प्रकार आवंटन हो सकता है कि यह निर्यात प्रतिबंध या कटौती से मुक्त है। फ़िलहाल किसानों के पास कर्जे लेने के आलावा कोई बहुत विकल्प नहीं हैं. इसलिए बजट में किसानों के अगर उम्मीदें ज़्यादा हैं तो सरकार के पास चुनौतियाँ भी ज़्यादा हैं, जिनसे मुकाबला बहुत आसान नहीं है.
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