रासायनिक खादों के खतरे और जैविक विकल्प
लेखक: पवन नागर
31 दिसंबर 2024, भोपाल: रासायनिक खादों के खतरे और जैविक विकल्प – बुवाई के मौसम में रासायनिक खाद की मारामारी खेती के एक सालाना कर्मकांड की तरह होने लगी है। इसके तहत कई जगहों पर मारपीट, गोदामों की लूट और प्रतिबंधात्मक धाराओं का कढ़ाई से उपयोग होता है। क्या इससे किसी तरह से बचा जा सकता है? क्या ऐसी खेती को बढ़ावा दिया जा सकता जिसमें रासायनिक खाद की जरूरत ही न पड़े?
मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में किसानों के सामने खाद की किल्लत एक गंभीर समस्या बन गई है। हर साल जब रबी सीजन की शुरुआत होती है. तब किसान अपनी फसलों के लिए जरूरी खादों की तलाश में परेशान हो जाते हैं। ‘डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी कमी और उसकी कालाबाजारी के कारण किसानों ने जगह-जगह चक्काजाम तक कर दिए हैं। कई जगहों पर लंबी-लंबी कतारें लगती है और किसान इस खाद को पाने के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, लेकिन यह समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। सरकार और किसानों के बीच संवाद की कमी और इस समस्या के समाधान के लिए ठोस कदमों की नितांत आवश्यकता है।
डीएपी खाद का महत्व- कृषि में रासायनिक खादों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। विशेष रूप से डीएपी’ खाद, जिसका उपयोग बीजों के साथ मिलाकर किया जाता है, फसलों की जड़े मजबूत करता है और पौधों को बढ़ने में मदद करता है। गेहूं, चना, मसूर जैसी रबी फसलों के लिए यह खाद अत्यधिक आवश्यक है। इस खाद की कमी के कारण किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है और अगर समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो यह खाद संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। हालांकि, सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, फिर भी पिछले 10 वर्षों में इस दिशा में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है। किसान अभी भी रासायनिक खादों के इस्तेमाल पर निर्भर हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि हमारे देश की मिट्टी दिन-ब-दिन उर्वरता खोती जा रही है। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की जलधारण क्षमता में कमी आ रही है, जिससे भूमिगत जल-स्तर में भारी गिरावट आई है। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट के कारण यह स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है।
प्राकृतिक खेती की दिशा में एक कदम- प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार को एक ठोस योजना बनानी चाहिए, जिसके तहत हर किसान से कम-से-कम एक एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती करने के लिए प्रेरित किया जाए। यह योजना न केवल खाद की किल्लत को खत्म करने में मदद करेगी, बल्कि किसानों को शुद्ध और पोषणयुक्त खाद्यान भी उपलब्ध कराएगी, जिससे उनकी सेहत में सुधार होगा और उन्हें रासायनिक खादों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
समाधान का प्रस्ताव- इस समस्या का समाधान एक साधारण योजना के माध्यम से किया जा सकता है। अगर किसान अपने एक एकड़ खेत में प्राकृतिक खेती करने के लिए राजी हो जाते हैं, तो न केवल खाद पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा में भी योगदान मिलेगा। इस प्रकार सरकार को किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उन्हें इस दिशा में सहायता देने के लिए ठोस योजना बनानी चाहिए। प्राकृतिक खेती के लिए सरकार को एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू करना चाहिए, जिसमें कुछ चयनित जिलों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग पूरी तरह से बंद कर दिया जाए। इसके अलावा किसानों को इस योजना में भाग लेने के लिए वित्तीय सहायता भी दी जा सकती है। प्राकृक्तिक खेती से जुड़े खर्चों की भरपाई के लिए सरकार किसानों को सम्मान निधि या अन्य वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है, ताकि वे इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित हो सकें।
नतीजा- इस योजना का न केवल किसानों पर सकारात्मक असर होगा, बल्कि पर्यावरण और हमारे जीवन स्तर पर भी इसके फायदे होंगे। अगर हम अब भी रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल करते रहेंगे, तो हमारा भविष्य खतरे में पड़ सकता है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए हमें सरकार और किसान दोनों की ओर से कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है I
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