बारिश का मौसम आने वाला है इसलिए किसान रखें पशुओं का ध्यान
15 मई 2025, भोपाल: बारिश का मौसम आने वाला है इसलिए किसान रखें पशुओं का ध्यान – आगामी दिनों में बारिश का मौसम आने वाला है इसलिए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से कहा है कि वे बारिश के दिनों में अपने पशुओं का ध्यान विशेष रूप से रखें. क्योंकि बारिश में पशुओं को कई तरह की बीमारियां हो जाती है और यदि उनका ध्यान नहीं रखा गया या फिर इलाज नहीं कराया गया तो हो सकता है कि पशु की जान भी चली जाए.
कृषि वैज्ञानिकों ने विशेषकर तीन तरह की बीमारियां बताई है जो बारिश में पशुओं के लिए घातक सिद्ध हो सकती है. बरसात के मौसम दुधारू पशुओं कई रोग बीमारी के चपेट में आ जाते हैं. टीकाकरण से पशुओं बचाया जा सकता है. कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका उपचार तो संभव है, लेकिन इलाज के दरमियान दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन में भारी गिरावट होती है. या दूसरे काम में आने वाले पशु की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती है. इन सबसे पशु मालिकों को आर्थिक नुकसान होता है. लेकिन इनसे बचने का उपाय अलग-अलग बीमारियों का वैक्सीनेशन है जिससे आपके पशु ऐसी बीमारियों की चपेट आएंगे ही नहीं. किन पशुओं को टीका लगवाएं? इस बात को लेकर आप में कोई भ्रम भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि सभी उम्र के पशुओं का टीकाकरण जरूरी है.
दरअसल टीकाकरण से पशुओं में उस बीमारी से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे पशु जल्दी बीमार नहीं पड़ते. इससे पशुओं में बीमारी जानलेवा साबित नहीं होती. इसमें अलग-अलग बीमारियों के, सीजन के हिसाब से 6 महीने या साल भर पर टीका लगवाना जरूरी होता है. जैसे सबसे गंभीर रोग गलघोटू की बात करें, तो ये ज्यादातर बारिश में होता है. इस बीमारी में पशुओं को संभलने तक का मौका नहीं मिलता. गले के पास सूजन होती है और गला चॉक कर जाता है. गलघोटू का टीका साल में एक बार लगता है. गलघोटू बीमारी का कोई उपचार नहीं है बल्कि टीकाकरण ही रास्ता है. इसलिए गलघोटू का टीका लगवा लेना चाहिए.
ऐसे बचाया जा सकता है बीमारियों से
वैज्ञानिकों ने किसानों को बताया है कि खुरपका-मुंहपका रोग वाइरस जनित रोग है. इस बीमारी में पशुओं के खुर पक जाते हैं, जीभ में छाले पड़ जाते हैं और मुंह पक जाता है. पशु कुछ खा नहीं पाता, बुखार और कमजोरी से धीरे-धीरे मरणासन्न हो जाता है. इसमें इलाज तो संभव है, पर पशुओं का दूध और उनके काम करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है. इसलिए वैक्सीनेशन से आप उनका बचाव कर सकते हैं. अगर दुधारू पशु यह बीमारी के लक्षण दिखाई दे तो सबसे पहले इसको दूसरे पशुओ से अलग कर दें. इसके बाद पशु को जीवाणुनाशक घोल से ज़ख्म धोएं, नरम घास-चारा पशुओं को दें.
गलघोंटू रोग अधिकतर बरसात के मौसम में गाय और भैंसों में फैलता है. इस रोग में पशु को तेज बुखार आ जाता है, गले में सूजन और सांस लेते समय घर्र-घर्र की आवाज आती है. इस रोग से पशु को बचाने के लिए एंटीबायोटिक और एंटी बैक्टीरियल टीके लगाए जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पहला टीका तीन माह की आयु में और उसके बाद हर साल टीका लगवाना चाहिए. पशुओं में गलघोटू बीमारी बैक्टीरिया से फैलता है. इसके बचाव के लिए साल में टीकाकरण करवाना चाहिए.
पशुओं की बीमारी में ‘लंगड़ी’ की गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि बैक्टीरिया से फैलने वाले इस रोग में पशु के किसी एक अंग में सूजन आती है, लेकिन वो तेजी से फैलती है, और पशुओं की जान तक ले लेती है. ये रोग गाय और भैंसों दोनों में देखा जाता है, लेकिन गो पशुओं में इसका प्रकोप अधिक होता है. पशु के पिछली और अगली टांगों के ऊपरी भाग में सूजन आ जाती है जिससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है, सूजन वाले स्थान को दबाने पर कड़-कड़ की आवाज़ आती है. इसलिए पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए, क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं के कारण शरीर में जहर फैल जाने से पशु जल्दी ही मर जाता है. इस बीमारी के रोग निरोधक टीके बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें लगाकर पशुपालक अपने पशुओं को बचा सकता है. वर्षा ऋतु से पहले ये टीका लगाया जाता है. पहला टीका पशु को 6 माह की आयु पर लगवाना चाहिए, उसके बाद हर साल टीका लगाया जाता है.
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