मूंग की फसल लगाने वाले किसानों को एमपी की सरकार ने दी ये महत्वपूर्ण सलाह
10 मई 2025, भोपाल: मूंग की फसल लगाने वाले किसानों को एमपी की सरकार ने दी ये महत्वपूर्ण सलाह – मध्यप्रदेश में किसानों ने मूंग की फसल लगाई है और फिलहाल किसान न केवल फसल की देखरेख कर रहे है वहीं खाद पानी भी देने में किसान सुबह से ही मेहनत कर रहे है. ऐसे में राज्य सरकार ने ऐसे किसानों को सलाह दी है और यह सलाह है मूंग की फसल को जल्दी पकाने में जल्दबाजी न करने के संबंध में. दरअसल होता यह है कि मूंग की फसल का जल्दी पकाने के लिए किसान खरपतवार नाशक पैराक्वाट ओर ग्लाइफोसेट का ज्यादा इस्तेमाल कर लेते है लेकिन इसका असर बुरा ही होता है। सरकार ने किसानों से यह कहा है कि वे मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए खरपतवार नाशक पैराक्वेट और ग्लाइफोसेट का ज्यादा इस्तेमाल न करें. इससे फसल जल्दी तो पक जाती है, लेकिन इसका बुरा असर वातावरण पर पड़ता है और उत्पादित मूंग को भी यह खाने लायक नहीं रहने की देती है.
इस केमिकल दवा से जल्दी पकाई गई मूंग इसे खाने वाले लोगों की सेहत पर भी गंभीर असर डालती है. इससे लोगों को कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा है, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी शामिल है. जानकारी के अनुसार, पिछले कुछ सालों में यह देखा गया है कि प्रदेश में मूंग को जल्दी पकाने के लिए इन खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है. ऐसे में इस बार सरकार के मंत्री और कृषि एक्सर्ट और विभिन्न कृषि कॉलेज के प्रोफेसर आदि किसानों को इसका इस्तेमाल न करने की समझाइश दे रहे हैं. इसी क्रम में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर और राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के ग्वालियर वाइस चांसलर रहे प्रोफेसर डॉ. विजय सिंह तोमर ने जानकारी दी कि लगातार खरपतवार नाशकों के इस्तेमाल से मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता घटती है. उन्होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन यानी जायद सीजन में मूंग की खेती में कम से कम 3-4 बार सिंचाई करनी पड़ती है. इससे भूमि का जल स्तर भी लगातार नीचे गिर रहा है. उन्होंने कहा कि किसानों को खेती के लिए ज्यादा टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल पद्धतियों को अपनाने के लिए जागरूक किया जा रहा है. साथ ही उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे ग्रीष्मकालीन मूंग में कीटनाशक और खरपतवार नाशक का इस्तेमाल न के बराबर करें, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से पक जाती है.
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