State News (राज्य कृषि समाचार)

कोल्ड स्टोरेज की बढ़ी दरों से नाराज़ किसान

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नाराज़ किसानों ने सरकार से कानून बनाने की मांग की

  • इंदौर (विशेष प्रतिनिधि ) 

7 जनवरी 2022, कोल्ड स्टोरेज की संरक्षण प्रभार दरों में वृद्धि – सभी मौसमों की तकलीफों की सहते हुए किसान जो फसल उगाता है, उसका वाज़िब दाम नहीं मिलने पर उसे कोल्ड स्टोरेज में सशुल्क रखता है ,ताकि दाम बढ़ने पर कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर बेच सकें। लेकिन कोल्ड चेन इंडस्ट्री एसोसिएशन, मप्र  ने इस साल फिर फसल संरक्षण प्रभार में वृद्धि कर दी है, जिससे किसान नाराज़ हैं। किसानों ने उक्त अनुचित दर वृद्धि वापस लेने और इन पर नियंत्रण के लिए सरकार से कानून बनाने की मांग की है। जबकि कोल्ड चेन इंडस्ट्री एसोसिएशन का कहना है कि लागतों में वृद्धि के कारण दरें बढ़ाई गई है।

इस मुद्दे पर कृषक जगत ने कुछ किसानों से चर्चा की तो उन्होंने इस विसंगति की ओर ध्यान आकृष्ट कराया कि कोल्ड स्टोरेज संचालकों पर नियंत्रण के लिए मप्र में अभी तक कोई नियम/कानून नहीं बना है। इस कारण मनमानी जारी है। किसानों का कहना है कि कोल्ड स्टोरेज की स्थापना के लिए सरकार संचालकों को अनुदान देती है, जिसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है ,जबकि किसानों के हित के नाम पर यह राशि कृषि निधि से ही जारी की जाती है।

श्री अरविन्द सिंह राठौर , मुरादपुरा  (सांवेर ) ने कृषक जगत को बताया कि कोल्ड चेन इंडस्ट्री एसोसिएशन ने पिछले साल ही दरों में वृद्धि की थी। इस साल फिर वर्ष 2022 के लिए फसल संरक्षण प्रभार की दरों में वृद्धि कर दी है जो इस प्रकार है -आलू राशन 225 रु /क्विंटल (फरवरी से अक्टूबर तक ), आलू चिप्स 235 रु /क्विंटल (फरवरी से अगस्त तक ),बीट 250 रु /क्विंटल (फरवरी से सितम्बर तक ) और गाजर 275 रु /क्विंटल (फरवरी से अगस्त तक )। यह दर वृद्धि अनुचित है , इसे वापस लिया जाना चाहिए। वहीं श्री जितेन्द्र पाटीदार, सिमरोल ने कहा कि संरक्षण दरों के प्रभार में वृद्धि मनमाने और अनुचित तरीके से की गई है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कोल्ड स्टोरेज की दरें भी अलग-अलग रहती हैं, जबकि एसोसिएशन एक है। कोल्ड स्टोरेज के निर्माण के लिए सरकार 40 % अनुदान देती है , जिसका किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता , उल्टे आवक ज़्यादा होने पर दरें बढ़ा दी जाती है। किसानों के नाम पर इन्हें अनुदान देने का कोई औचित्य नहीं है। जबकि श्री दिलीप मुकाती , खजराना ने कहा कि गत वर्ष ही दरें बढ़ाई थी। अभी कोई ऐसी परिस्थिति नहीं बनी कि दरें बढ़ाई जाए।  इस संबंध में कलेक्टर से मिलेंगे। आलू उत्पादक किसान पहले से ही घाटे में चल रहे हैं। कोल्ड स्टोरेज में रखी हमारी फसल का बीमा भी नहीं होता। कोल्ड स्टोरेज में फसल ख़राब होने पर कोई मुआवजा भी नहीं मिलता। गत दिनों झंवर स्टोरेज का मामला सामने आ चुका है। कोल्ड स्टोरेज में रखी  फसल का बीमा का प्रावधान भी होना चाहिए। इसके लिए किसान, स्टोरेज वालों को कुछ शुल्क देने को भी तैयार हैं। दूसरी बात मप्र में अभी कोल्ड स्टोरेज संचालकों पर नियंत्रण के लिए कोई नियम /कानून नहीं है, जबकि उप्र में 1976 में ही इसके लिए कानून बनाया जा चुका है।  मप्र में भी इसके लिए कानून बनाया जाना ज़रूरी है। श्री सुभाष पाटीदार (झंडेवाला ) गवली पलासिया ने कहा कि किसानों का  लागत खर्च वैसे ही बढ़ गया है ,ऐसे में संरक्षण प्रभार में वृद्धि को उचित नहीं कहा जा सकता। श्री पाटीदार ने चौंकाने वाली जानकारी दी कि अब तो कोल्ड स्टोरेज वाले अग्रिम राशि वसूलने लगे हैं। बीट के लिए 50 रु /क्विंटल और गाजर के लिए 100 रु/ क्विंटल की अग्रिम राशि मांगी जाने लगी है। किसानों को गाजर 500 रु क्विंटल तक में बेचनी पड़ी है ,जबकि खाद ,दवाई और हम्माली का खर्च उठाने के बाद बहुत नुकसान हुआ है। कोल्ड स्टोरेज वालों द्वारा फसल संरक्षण दरों में की गई वृद्धि को वापस लिया जाना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर कोल्ड चेन इंडस्ट्री एसोसिएशन, मप्र के अध्यक्ष श्री हँसमुख जैन गाँधी ने कृषक जगत को बताया कि संरक्षण प्रभार दरों में की गई वृद्धि विभिन्न लागतों के बढ़ने के कारण की गई है। सरकार बिजली की दरें भी हर साल बढ़ाती है। वास्तविक लागत को देखते हुए तो 25  % वृद्धि होनी चाहिए थी, जबकि सिर्फ 6 % ही वृद्धि की गई है। यूपी , बिहार आदि राज्यों में भाड़ा 250  रु /क्विंटल है, जबकि मप्र में 225  रु /क्विंटल है। 80 % कोल्ड स्टोरेज के मालिक तो किसान हैं। लागत बढ़ने के कारण  कुछ संचालकों ने कोल्ड स्टोरेज भाड़े पर रख दिए हैं , तो 4 को बंद करना पड़ा है। ऐसे में संरक्षण प्रभार की दरों में की गई वृद्धि न तो अनुचित है और ना ही यह किसानों पर बंधनकारी है।

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