मक्का की ओर बढ़ता रुझान सोयाबीन, कॉटन होता कम
22 मई 2025, इंदौर: मक्का की ओर बढ़ता रुझान सोयाबीन, कॉटन होता कम – मध्य प्रदेश के किसानों की पसंद में बदलाव आ रहा है, जिसमें सोयाबीन और कपास का रकबा कम होने की संभावना है, जबकि मक्का का रकबा बढ़ेगा। यह बदलाव किसानों की आर्थिक स्थिति और बाजार की मांग के अनुसार हो रहा है। किसानों का कहना है कि सोयाबीन और कपास की खेती में लागत अधिक आती है और मुनाफा कम होता है, जबकि मक्का की खेती में लागत कम और मुनाफा अधिक होता है। इसके अलावा, मक्का की मांग भी बढ़ रही है, जिससे किसानों को इसकी खेती करने में अधिक रुचि है।
इस बदलाव के परिणामस्वरूप, मध्य प्रदेश में मक्का का उत्पादन बढऩे की संभावना है, जबकि सोयाबीन और कपास का उत्पादन कम हो सकता है। यह बदलाव किसानों, बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण परिणाम ला सकता है। गेहूं की फसल बेचने के बाद निमाड़-मालवा के किसान अब खरीफ सत्र की तैयारियों में जुट गए हैं। खेतों को तैयार करने और खाद-बीज की व्यवस्था करने में लगे हुए किसानों ने आगामी खरीफ सीजन के लिए अपनी योजनाओं के बारे में कृषक जगत को बताया।
किसानों से हुई बातचीत के बाद अनुमान है कि इस वर्ष खरीफ में मक्का का रकबा 30 प्रतिशत बढऩे की संभावना है, क्योंकि इसकी मांग और कीमतें अच्छी हैं। वहीं, सोयाबीन और कपास के वाजिब दाम नहीं मिलने से इनका रकबा 20 प्रतिशत तक घटने का अनुमान है। उद्यानिकी फसलों में केला और पपीता का रकबा बढऩे की संभावना है, जबकि टमाटर और मिर्च का रकबा 30 प्रतिशत कम होने की उम्मीद है।
मालवा क्षेत्र में मक्का का रकबा और बढ़ सकता है, अगर किसानों को घोड़ारोज की समस्या से मुक्ति मिल जाए। यह समस्या किसानों के लिए एक बड़ा चुनौती है, जिसका समाधान ढूंढना आवश्यक है।
किसानों की मानें तो इस वर्ष खरीफ सीजन में उनकी रणनीति मक्का और उद्यानिकी फसलों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की है, ताकि उन्हें बेहतर मुनाफा मिल सके। लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी फसलों की सुरक्षा और बाजार में मांग को ध्यान में रखना होगा।
मालवा के किसान बदलते मौसम और बाजार के साथ बदल रहे हैं
उज्जैन जिले के विभिन्न गांवों के प्रगतिशील कृषकों से बातचीत करने पर पता चलता है कि इस बार खरीफ सीजन में उनकी रणनीति में बदलाव आ सकता है। ग्राम अजड़ावदा के प्रगतिशील कृषक योगेंद्र कौशिक ने बताया कि मालवा में अधिकांशत: सोयाबीन ही बोई जाती है, लेकिन इस बार मक्का और मूंग/उड़द का रकबा बढऩे की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘पिछले दो साल से सोयाबीन में घाटा होने से किसान पिछड़ गए हैं, इसलिए इस बार मक्का की ओर रुझान दिख रहा है। मक्का की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन अच्छा मिलने से किसानों को आकर्षित कर रहा है।’
वहीं, ग्राम पालखांदा के प्रगतिशील कृषक शैलेन्द्र सिंह झाला ने बताया कि उनके क्षेत्र में सोयाबीन ही मुख्य फसल है, लेकिन उज्जैन-आगर रोड और उन्हेल बेल्ट में मक्का लगाई जाती है। उन्होंने कहा, ‘देवास-उज्जैन रोड पर कुछ जगह धान भी लगाई जाने लगी है, जो एक अच्छा संकेत है।’
ग्राम रोहलकलां के भेरूलाल परमार ने बताया कि उनके क्षेत्र में खरीफ में करीब 95 प्रतिशत सोयाबीन ही लगाई जाती है। उन्होंने कहा, ‘मैं खुद भी इस साल दो हेक्टेयर में अच्छी किस्म की सोयाबीन लगाऊंगा, क्योंकि यह हमारे क्षेत्र की मुख्य फसल है और हमें इसकी खेती का अनुभव है।’ इन प्रगतिशील कृषकों की बातचीत से पता चलता है कि मालवा के किसान बदलते मौसम और बाजार के साथ बदल रहे हैं और अपनी फसलों की रणनीति में बदलाव ला रहे हैं।
किसानों की नई रणनीति: मक्का और उद्यानिकी फसलों की ओर बढ़ता रुझान
मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों के किसानों से बातचीत करने पर पता चलता है कि इस बार खरीफ सीजन में उनकी रणनीति में बदलाव आ सकता है। हरदा जिले के ग्राम जिनवान्या के करण पटेल ने बताया कि वे स्वयं सोयाबीन लगाएंगे, लेकिन क्षेत्र में 10-15 प्रतिशत मक्का का रकबा बढऩे की संभावना है, क्योंकि मक्का का दोनों सीजन में अच्छा उत्पादन मिल जाता है।
वहीं, नागदा (धार) के उन्नत किसान कृष्णा सांखला ने उद्यानिकी फसलों में पत्ता गोभी और वीएनआर अमरुद लगाया है और इस वर्ष भी पिकाडोर मिर्च लगाएंगे। उन्होंने कहा, ‘सोयाबीन लगाना अब घाटे का सौदा हो गया है, इसलिए मैं किसानों को मक्का लगाने की सलाह देता हूं। मक्का से बायोडीज़ल और एथेनॉल बनने लगा है, और मुर्गी आहार भी बनता है, जो किसानों के लिए लाभप्रद होगा।’
ग्राम मारोल (धार) के हरिओम पाटीदार ने बताया कि वे सोयाबीन की खेती जैविक और रासायनिक दोनों तरीके से करते हैं और इस बार भी सोयाबीन ही लगाएंगे, क्योंकि मक्का में इल्लियों का प्रकोप अधिक होता है। चिकलिया (धार) के मनोज पाटीदार भी 20 बीघा में सोयाबीन लगाएंगे, लेकिन मक्का लगाने को लेकर वे असमंजस में दिखे।
भोंडवास (इंदौर) के जीवन सिंह ने बताया कि वे 15 बीघे में सोयाबीन और 2 बीघे में मक्का लगाएंगे। उन्होंने कहा, ‘3-4 साल से मक्का भी लगा रहे हैं और 2023 में तो एक बीघे में 17 क्विंटल मक्का का उत्पादन लिया था।’ पालकांकरिया (इंदौर) के बबलू जाधव ने कहा कि सोयाबीन के दामों में लगातार गिरावट से इस साल किसानों का रुझान मक्का और मूंग/उड़द की ओर दिखाई दे रहा है।
इन किसानों की बातचीत से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के किसान बदलते बाजार और उत्पादन की स्थितियों के अनुसार अपनी फसलों की रणनीति में बदलाव ला रहे हैं
अधिक लागत और दाम कम मिलने से हैरान मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों के किसानों से बातचीत करने पर पता चलता है कि इस बार खरीफ सीजन में उनकी रणनीति में बदलाव आ सकता है। बड़वानी जिले के ग्राम कुंआ के अजय पाटीदार ने बताया कि क्षेत्र में कपास, सोयाबीन, मक्का और मिर्च की फसल ली जाती है, लेकिन इस वर्ष सोयाबीन का रकबा घटेगा और टमाटर का रकबा भी घटेगा। वे 35 बीघा में मिर्च लगाएंगे।
ठीकरी (बड़वानी) के चंद्रवीर चौहान ने अपने खेत में 15 एकड़ में कपास और 15 एकड़ में मक्का लगाने की बात कही, लेकिन इस वर्ष कपास का रकबा 40 प्रतिशत कम होने की संभावना जताई। खरगोन जिले के ग्राम बिठेर (कसरावद) के गजेंद्र पाटीदार ने बताया कि वे कपास के अलावा पपीता और मिर्च की खेती करते हैं और सोयाबीन नहीं लगाते हैं, क्योंकि औसत उत्पादन, अधिक लागत और दाम कम मिलने से घाटा होता है।
ग्राम इटावदी (महेश्वर) के दीपक पाटीदार ने बताया कि सोयाबीन और कपास में घाटा होने से इस साल नहीं लगाएंगे, लेकिन मक्का के अलावा खीरा और करेला फसल लेंगे। गत वर्ष 15 बीघा में मक्का लगाया था, जिसका 500 क्विंटल उत्पादन मिला और 1900 रु/क्विंटल की दर से स्थानीय बाजार में बेचा।
कोठा बरुड़ (गोगांवा) के दीपक कुशवाह ने बताया कि वे करीब 8-8 एकड़ में मक्का और सोयाबीन लगाएंगे, लेकिन कपास नहीं लगाते हैं क्योंकि लागत अधिक आती है और मजदूरों की समस्या होती है। ग्राम कलमा (देवास) के अनिल राजपूत ने बताया कि क्षेत्र के अधिकांश किसान सोयाबीन की फसल ही लेते हैं और इस वर्ष करीब 80 बीघा रकबे में सोयाबीन की बोनी संभावित है।
ग्राम बड़ी चुरलाई (देवास) के देवकरण पाटीदार ने बताया कि वे करीब 25 बीघा में सोयाबीन लगाएंगे, लेकिन घोड़ारोज की समस्या के कारण मक्का नहीं लगाते हैं। इन किसानों की बातचीत से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के किसान बदलते मौसम और बाजार के साथ तालमेल बिठा रहे हैं और अपनी फसलों की रणनीति में बदलाव ला रहे हैं।
कृषि आदान विक्रेताओं की राय: मक्का और कपास की ओर बढ़ता रुझान
कृषि आदान विक्रेताओं से बातचीत करने पर पता चलता है कि इस बार खरीफ सीजन में फसलों के रकबे में बदलाव आ सकता है। जयश्री एग्रो कसरावद के सुनील पाटीदार ने बताया कि इस साल कपास का रकबा कम होगा, जबकि मक्का का बढ़ेगा। उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र में उद्यानिकी फसलों में केला और पपीता का रकबा बढ़ेगा, जो एक अच्छा संकेत है।’
शिवम ट्रेडर्स करही के अरविन्द पाटीदार ने मक्का और कपास का रकबा बढऩे और सोयाबीन का कम होने की संभावना व्यक्त की है। अवनी ट्रेडर्स, सनावद के दीपक मंडलोई ने बताया कि इस साल मक्का और कपास का रकबा बढ़ेगा, जबकि सोयाबीन का उत्पादन कम होने और उचित दाम नहीं मिलने से इसका रकबा घटने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘गत वर्ष मिर्च की फसल खराब होने से इस खरीफ में इसका रकबा भी घटेगा।’
कृषि आदान विक्रेताओं की चर्चा में मक्का का रकबा 30त्न बढऩे, वहीं कपास का 20त्न और सोयाबीन का 10त्न रकबा घटने का अनुमान जताया है। इसके अलावा, मिर्च के रकबे में 30त्न की कमी के साथ टमाटर के रकबे में भी कमी की संभावना जताई गई है। इन आदान विक्रेताओं की राय से पता चलता है कि किसान इस बार मक्का और कपास की ओर अधिक आकर्षित हो रहे हैं और सोयाबीन का रकबा कम हो सकता है।
वर्ष 2024 की स्थिति | ||||||
क्रमांक | फसल | क्षेत्र (लाख हेक्टर.) | उत्पादन (लाख टन) | उत्पादकता (किलो/हेक्टे.) | एमएसपी (किलो/हेक्टे.) | लागत |
1. | कॉटन | 6.22 | 9.02 | 14.50 | 7121 | 4747 |
2. | मक्का | 19.23 | 61.34 | 3190 | 2225 | 1447 |
3. | सोयाबीन | 55.10 | 63.92 | 1160 | 4892 | 3261 |
स्रोद: म.प्र. कृषि विभाग एवं कृषि मंत्रालय भारत सरकार |
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