प्राकृतिक कृषि पद्धति पर राज्य स्तरीय कार्यशाला संपन्न
- राज्यपालद्वय, मुख्यमंत्री, केंद्रीय कृषि मंत्री और मप्र के कृषि मंत्री ने किया सम्बोधित
14 अप्रैल 2022, इंदौर: रासायनिक खाद और कीटनाशक पर आधारित कृषि की दशा और दिशा बदलने के उद्देश्य से प्राकृतिक खेती और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रकाण्ड विद्वान गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक कृषि पद्धति पर अपने विचार रखे। कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर भोपाल में हुई कार्यशाला में मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री श्री चौहान ने भी सहभागिता की। केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यशाला में दिल्ली से वर्चुअली सहभागिता की। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री तथा भोपाल के प्रभारी श्री भूपेंद्र सिंह, किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्र-गान तथा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इंदौर की छावनी कृषि उपज मंडी में आयोजित कार्यक्रम में सांसद श्री शंकर लालवानी सहित कृषि अधिकारी तथा जिले के कृषक जन उपस्थित रहे। इस अवसर पर भोपाल में आयोजित किए गए राष्ट्रीय कार्यक्रम का लाइव प्रसारण उपस्थित सदस्यों को दिखाया गया।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का समाधान प्राकृतिक खेती: राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने प्रदेश के किसानों का आह्वान किया कि “जब जागो-तभी सवेरा” के भाव से प्राकृतिक खेती के लिए संकल्पित हो। उन्होंने कहा कि वर्ष 1977 में राष्ट्रसंघ ने ग्लोबल वार्मिंग के संबंध में चेताया था। इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरंतर बढ़ती जा रही है। प्रकृति ने वर्ष में चार मौसम की व्यवस्था की है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हुए मानव जाति ने एक दिन में चार मौसम कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि आज एक ही दिन में तेज ठंड और गर्मी दोनों हो रही है। समय रहते यदि प्रयास नहीं किए गए तो भविष्य भयावह हो सकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का प्रभावी समाधान प्राकृतिक खेती है। आवश्यकता है कि यह बात हर किसान तक पहुँचाई जाए।
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श्री आचार्य देवव्रत का उद्बोधन: गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्राकृतिक खेती के एक काम से अनेक लाभ मिलेंगे। ग्लोबल वार्मिंग से रक्षा होगी। पर्यावरण, पानी, गाय, धरती और लोगों का स्वास्थ्य बचेगा। इससे सरकार और लोगों का धन भी बचेगा तथा भावी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी का आभार मानेगी। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती और जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती, धरती- पर्यावरण और जीवन जगत के लिए अधिक सुरक्षित है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती है। केवल एक से दो प्रतिशत तापमान में वृद्धि से 32 प्रतिशत उत्पादन कम होगा। अत: प्राकृतिक खेती को अपनाना आवश्यक है।
प्राकृतिक खेती है शून्य लागत की खेती: श्री आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत वाली खेती है, जिसकी खाद की फैक्ट्री देशी गाय और दिन-रात काम करने वाला मित्र केंचुआ है। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच अंतर बताया। साथ ही प्राकृतिक खेती की विधि को विज्ञान आधारित उदाहरणों और स्वयं के खेती के अनुभवों के आधार पर समझाया। उन्होंने बताया कि रासायनिक तत्वों का खेत में उपयोग, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देता है। जैविक खेती की उत्पादकता धीमी गति से बढ़ती है। साथ ही आवश्यक खाद के लिए गोबर की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए प्रति एकड़ बहुत अधिक पशुओं की जरूरत और अधिक श्रम लगता है।
रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से कैंसर के रोगी बढ़े: राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति आर्गेनिक कार्बन पर निर्भर करती है। हरित क्रांति के सूत्रपात केंद्र, पंत नगर की भूमि में वर्ष 1960 में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 2.5 प्रतिशत थी, जो आज घटकर 0.6 प्रतिशत रह गई है। इसकी मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम होने पर भूमि बंजर हो जाती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक का अंधाधुंध उपयोग फसलों को जहरीला बनाता है। इसी कारण कैंसर जैसे गंभीर रोग के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।
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जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाना जरूरी: राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने कहा कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाने के लिए गो-आधारित प्राकृतिक खेती ही सबसे प्रभावी समाधान है। गो-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए खाद और कीटनाशक देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनते हैं। इनमें दाल का बेसन, गुड़, मुट्ठी भर मिट्टी और 200 लीटर पानी मिलाना पड़ता है। किसान यह जीवामृत स्वयं तैयार कर सकते हैं। जीवामृत खेत की उर्वरा शक्ति को उसी तरह बढ़ाता है, जैसे दही की अल्प मात्रा दूध को दही बना देती है। एक एकड़ भूमि के लिए जीवामृत, देसी गाय के एक दिन के गो-मूत्र और गोबर से तैयार हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक गाय से 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। जीवामृत से उत्पन्न होने वाले जीवाणु किसान के सबसे बड़े मित्र हैं। केचुएँ की सक्रियता भूमि में गहरे तक जल रिसाव को बढ़ाती है, इससे जल संचयन क्षमता भी बढ़ती है।
प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि भी संभव: श्री आचार्य देवव्रत ने बताया कि प्राकृतिक खेती में भूमि को ढँक कर रखना (मलचिंग) भी जरूरी है। इससे तीन वर्षों में 70 प्रतिशत तक जल की बचत होती है। जीवाणुओं को बढ़ने के लिए भोजन मिलता है, आर्गेनिक कार्बन बचता और खरपतवार भी नहीं उगते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार में अनेक फसलें लेने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ती है तथा अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
प्रदेश के कृषक अपनाएँ प्राकृतिक खेती : मुख्यमंत्री श्री चौहान: मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्राकृतिक कृषि पद्धति पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला सिर्फ कर्म-कांड नहीं है, यह कृषि की दशा और दिशा बदलने का महायज्ञ है। प्रदेश में मध्यप्रदेश प्राकृतिक कृषि बोर्ड का तत्काल गठन किया जाएगा। प्राकृतिक खेती की तकनीक की जानकारी देने के लिए प्रदेश के किसानों को पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मैं स्वयं अपनी 5 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती आरंभ कर रहा हूँ। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रदेश के सभी कृषकों से अपील की कि उनके पास जितनी भी कृषि भूमि है, उसमें से कुछ क्षेत्र में वे प्राकृतिक खेती प्रारंभ करें। इससे होने वाले लाभ से अन्य कृषक प्राकृतिक खेती विस्तार के लिए प्रेरित होंगे।
धरती माँ की उर्वरा क्षमता बनाए रखने के लिए हमें होना होगा सचेत: मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश जैविक खेती में अग्रणी है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रकृति का शोषण नहीं दोहन करने का विचार दिया है। यह भविष्य के खतरे को दृष्टिगत रखते हुए दिया गया मंत्र है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग के परिणामस्वरूप धरती का स्वास्थ्य निरंतर प्रभावित हो रहा है। आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती माँ की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने के लिए हमें सचेत रहना होगा। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि यह धरती केवल मनुष्यों के लिए नहीं, अपितु कीट-पतंगों और जीव-जंतुओं के लिए भी है। हमने कीटनाशक के अंधाधुंध उपयोग से कीट मित्रों को समाप्त कर दिया है और हमारी नदियाँ भी प्रभावित हुई हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी की संकल्पना के अनुरूप जल-संरक्षण के लिए प्रदेश में जलाभिषेक अभियान शुरू किया गया है। हम जितना जल धरती से ले रहे हैं, उस अनुपात में हमें धरती माँ को जल देना भी होगा। यह आने वाली पीढ़ी को बेहतर धरोहर सौंपने का प्रयास है।
प्राकृतिक खेती ही है वैकल्पिक मार्ग: मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि यह वास्तविकता है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद की आवश्यकता थी, उत्पादन बढ़ाना जरूरी था। परंतु समय के साथ इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के अधिक उपयोग और खेती में पानी की अधिक आवश्यकता आदि से खेती की लागत बढ़ती जा रही है। उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन खर्च भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। खेती के इस दुष्चक्र का वैकल्पिक मार्ग खोजना होगा। धरती के स्वास्थ्य, कृषकों की स्थिति और निरोगी जीवन के लिए प्राकृतिक खेती ही वैकल्पिक मार्ग है।
मुख्यमंत्री श्री चौहान गरीबों और किसानों के लिए सुरक्षा कवच: केन्द्रीय मंत्री श्री तोमर – केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि रासायनिक खेती परिस्थिति जन्य समाधान था। आज की चुनौतियों को स्वीकार कर नवाचार की ओर बढ़ना होगा। इसी मंशा से सरकार ने प्राकृतिक खेती की पहल करते हुए मेरिस संस्था के साथ नॉलेज पार्टनरशिप कर 30 हजार किसानों के प्रशिक्षण की पहल की है। विश्वविद्यालयीन शिक्षा में प्राकृतिक खेती पाठ्यक्रम को शामिल कराने के लिए इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च में समिति का भी गठन किया गया है। देश के 8 राज्यों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है।
श्री तोमर ने प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए की गई पहल की सराहना करते हुए कहा कि राज्य को प्राकृतिक खेती में नंबर वन बनाने के लिए संकल्पित होना होगा। केन्द्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री चौहान किसान और गरीबों के लिए सुरक्षा कवच हैं। प्रदेश में कृषि के क्षेत्र में हो रहे सार्थक कार्यों का ही परिणाम है कि प्रदेश को सात बार से निरंतर कृषि कर्मण पुरस्कार मिल रहा है। केन्द्रीय मंत्री श्री तोमर ने केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की सराहना भी की।
प्राकृतिक खेती वाला राज्य बनायेंगे : कृषि मंत्री श्री पटेल: किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल ने कहा कि मध्यप्रदेश को हम प्राकृतिक खेती वाला राज्य बनायेंगे। उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर 5-5 किलोमीटर के क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जायेगी। जनता को भोजन के लिये शुद्ध अन्न उपलब्ध कराने से अधिक पुण्य का कोई कार्य नहीं है। श्री पटेल ने कहा कि गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में अधिक से अधिक किसानों को प्राकृतिक खेती के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
विषय-विशेषज्ञों, कृषकों तथा कम्पनियों के प्रतिनिधियों ने साझा किए अनुभव: कार्यशाला के उद्घाटन-सत्र को म.प्र. के कृषि उत्पादन आयुक्त श्री शैलेन्द्र सिंह ने संबोधित किया। कार्यशाला में प्राकृतिक कृषि की पद्धति की प्रक्रिया एवं गुणवत्ता नियंत्रण, प्राकृतिक कृषि से उत्पन्न उत्पाद की विपणन व्यवस्था, प्रमाणीकरण एवं निर्यात की संभावना पर विषय-विशेषज्ञों के सत्रों के साथ आर्गेनिक क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं, कम्पनियों तथा प्रगतिशील कृषकों के अनुभव साझा किए गए।