राज्य कृषि समाचार (State News)

एक राष्ट्र एक उर्वरक

देर से उठाया गया एक सही कदम

  • डॉ रविन्द्र पस्तोर,
    सीईओ. ई-फसल

    मो. : 9425166766

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20 सितम्बर 2022, भोपालएक राष्ट्र एक उर्वरक – विश्व बाजार में खाद के कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि हो जाने के कारण हमारे देश में खाद पर सब्सिडी रू 1.62 लाख करोड़ से बड़ कर रू 2.25 लाख करोड़ हो जाने का अनुमान है। सरकार यूरिया के ऊपर 80 प्रतिशत, डीएपी पर 65 प्रतिशत, एनपीके पर 55 प्रतिशत तथा पोटाश पर 31 प्रतिशत सब्सिडी देती है। इसके अलावा उर्वरकों की ढुलाई पर हर साल 6000 से 9000 करोड़ रुपये खर्च हो जाता है। भारत सरकार द्वारा मुख्यत: यूरिया, डीएपी, पोटेशियम का कच्चा माल आयात किया जाता है।

यूरिया की माँग का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन अब देश में ही हो रहा है लेकिन डीएपी का कच्चा माल तथा तैयार माल हमें आयात करना होता है तथा पोटेशियम का सम्पूर्ण माल आयात होता है क्योंकि हमारे देश में पोटेशियम की खदानें नहीं है। अभी देश में यूरिया के 32 बड़े कारखाने, डीएपी के 19 कारखाने तथा अमोनियम सल्फाइड बनाने के 2 कारखाने हंै। भारत सरकार द्वारा औसतन रू. 6,500 प्रति हेक्टेयर तथा रू. 7,000 प्रति किसान अनुदान खाद पर दिया जाता है। इस कारण हमारे यहाँ नाइट्रोजन खाद का सर्वाधिक उपयोग हो रहा है तथा माइक्रो न्यूट्रिएंट का कम उपयोग होने से प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम हो रहा है। इसका कारण यह है कि यूरिया का सर्वाधिक उपयोग लगभग 300 लाख मैट्रिक टन है जो कुल खाद के उपयोग का लगभग 60 प्रतिशत है।

बढ़ रहा उर्वरक उपयोग

हर साल खाद का उपयोग बढ़ रहा है जो वर्तमान में 137.150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। बिहार राज्य में सर्वाधिक 245.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खाद का उपयोग किया जाता है जबकि सबसे कम केरल तथा जम्मू कश्मीर में क्रमश: 87 तथा 36.49 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। बड़े राज्य जैसे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में राष्ट्रीय औसत से कम उपयोग किया जाता है। प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना (क्करूक्चछ्वक्क) के तहत ‘एक राष्ट्र एक उर्वरक’ पहल की शुरुआत भी की है, अक्टूबर से सब्सिडी वाले सभी उर्वरकों को ‘भारत’ ब्रांड के तहत ही बेचा जा सकेगा। एक राष्ट्र एक उर्वरक योजना के तहत अक्टूबर महीने से सब्सिडी रेट पर मिलने वाले यूरिया डीएपी, पोटाश और एनपीके सिंगल ब्रांड ‘भारत’ के नाम से बेचे जाएंगे। सरकार ने पूरे देश में ‘वन नेशन वन फर्टिलाइजर’ को लागू किया है। इस फैसले से किसानों को मदद मिलेगी और खेती के लिए यूरिया और डीएपी की कमी नहीं होगी। इससे माल ढुलाई सब्सिडी की लागत भी कम होगी।

फर्टिलाइजर कंपनियों का विरोध

लेकिन फर्टिलाइजर कम्पनियों द्वारा इस योजना का विरोध किया जा रहा है है तथा तर्क दिया जा रहा है कि कम्पनियों के ब्रांड समाप्त हो जाने से किसानों को चयन का अधिकार नहीं होगा तथा निजी कम्पनियों द्वारा ब्रांड प्रमोशन के लिए किए जाने वाले कार्यक्रम नहीं किए जायेंगे। निजी कम्पनियों की प्रतिस्पर्धा समाप्त हो जाने से बाजार में नये उत्पाद लाने का उत्साह नहीं रहेगा। यहाँ यह जानना जरूरी है कि उर्वरक निर्माण के मानक भारत सरकार द्वारा जारी किए गए हैं तथा उर्वरक कम्पनियों द्वारा उन्हीं मानको का पालन कर प्रोडक्ट उत्पादित किए जाते हैं तथा उन्हीं को अलग-अलग ब्रांडों में बेचा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में हुआ खर्च अनुदान के रूप में लिया जाता है। ब्रांडिंग का कोई लाभ किसानों को नहीं होता है, इसके विपरीत अनुदान व प्रचार से भ्रमित किसानों द्वारा नाइट्रोजन आधारित खाद का उपयोग किया जा रहा है जिससे मिट्टी की गुणवत्ता व प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम हो रहा है। सप्लाई चैन बहुत जटिल तथा खर्चीली हो गई है जिससे छोटे-छोटे दुकानदारों को नियमों के पालन करने में बहुत अधिक कठिनाई होती है तथा व्यवसाय प्रभावित हो रहा है। समय पर सभी खादों की उपलब्धता न होने से किसानों को मजबूरी में उन्हीं उर्वरकों का उपयोग करने के लिए बाध्य होना पड़ता है जो तत्समय उपलब्ध होते हैं। खाद की कमी से काला बाजारीकरण को प्रोत्साहन मिलता है। सरकार यदि पर्यावरण की रक्षा करना चाहती है तथा मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के प्रयास को सफल बनाना चाहती है तो परोक्ष अनुदान बंद कर सीधे किसानों के खातों में संतुलित खाद के लिए भुगतान शुरू किया जाना चाहिए। कुछ राजनीतिक दलों को इस योजना के नाम को लेकर आपत्ति है क्योंकि इसे संक्षिप्त में पीएम बीजेपी नाम से पुकारा जाना है। नाम से किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं होता है तथा कृषि लागत कम हो जाती है तो हमेशा से हमारे देश में सरकारी योजनाओं के नाम राजनेताओं के नाम पर ही रखे जाते रहे हंै तो यह कोई मुद्दा नहीं है।

पुराने नियम कानून भी बदले सरकार

कृषि आदानों के व्यवसाय के कानून आज की उपलब्ध व उपयोग में आ रही तकनीकी के अनुरूप नहीं है जिससे इस व्यवसाय की जटिलताएँ बहुत बड़ी संख्या में व्यवसाय के आधुनिकीकरण में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। यदि सरकार कृषि लागत को कम करना चाहती है तो ईज ऑफ डूंईग बिजनेस की पॉलिसी के तहत पुराने कानूनों, नियमों तथा प्रशासनिक आदेशों में तत्काल बदलाव करने की आवश्यकता है। इससे जहां एक ओर नये लोगों को अपने व्यवसाय शुरू करने में मदद मिलेगी वहीं दूसरी ओर सप्लाई चैन मैनेजमेंट में आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर समय, श्रम तथा पैसे को बचा कर कृषि लागत को कम किया जा सकता है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकलचर मैनेजमेंट के अनुसार हमारे देश में 25.6 मिलियन टन खाद का उपयोग किया जाता है जिसमें 17 मिलियन टन नाइट्रोजन आधारित खाद है, 6 मिलियन टन फॉस्फोरस तथा 2.5 मिलियन टन पोटेशियम आधारित खाद है। हमारे देश में वर्तमान में एनपीके का अनुपात 6.7:2.4:1 है जबकि संतुलित खाद अनुपात 4:2:1 होना चाहिए।

(लेखक- कृषि मामलों के जानकार)

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