राज्य कृषि समाचार (State News)

बहुउपयोगी एलोवेरा भरपूर आमदनी का स्रोत

लेखक: संदीप कुमार शर्मा, डॉ. संजय सिंह द्य डॉ. अजय कुमार पाण्डेय, कृषि विज्ञान केन्द्र, रीवा, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर

12 जून 2025, भोपाल: बहुउपयोगी एलोवेरा भरपूर आमदनी का स्रोत – घृतकुमारी जिसे ग्वारपाठा या अंग्रेजी भाषा में एलोवेरा कहते हैं, एक औषधीय पौधा है। यह साल भर हरा-भरा रहने वाला पौधा है। घृतकुमारी की उत्पति दक्षिणी यूरोप एशिया या अफ्रीका के सूखे क्षेत्रों में मानी जाती है। भारत में घृतकुमारी का व्यावसायिक उत्पादन सौन्दर्य प्रसाधन के साथ दवा निर्माण के लिए किया जाता है। घृतकुमारी की पत्तियां ही व्यावसायिक इस्तेमाल में की जाती हैं। वर्तमान समय में इसका इस्तेमाल औषधीय निर्माण, सौंदर्य प्रसाधन, सब्जी और आचार के लिए किया जाता है।

जलवायु

घृतकुमारी की व्यावसायिक खेती शुष्क क्षेत्रों से लेकर सिंचित मैदानी क्षेत्रों में की जा सकती है। आज यह देश के सभी भागों में उगाया जा रहा है। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इसका व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बहुत ही कम पानी तथा अद्र्ध शुष्क क्षेत्र में भी आसानी से उगाया जा सकता है। घृतकुमारी फसल के विकास के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 20-22 डिग्री सेंटीग्रेट होता है परंतु यह पौधा किसी भी तापमान पर अपने को बचाए रख सकता है।

मिट्टी

घृतकुमारी फसल बलुई मिट्टी, बलुई दोमट तथा पहाड़ी मिट्टी से लेकर किसी भी प्रकार की मिट्टी में सफलतापूर्वक उगायी जा सकती है। यह पाया गया है कि हल्की काली उपजाऊ मिट्टी में इसका विकास अधिक होता है। अत: इसका व्यावसायिक उत्पादन काली मिट्टी वाले क्षेत्र में ज्यादा हो रहा है। अच्छी जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 8.5 तक हो इसके लिए उपयुक्त पायी जाती है।

खेत की तैयारी

घृतकुमारी के पौधे 20-30 सें. मी. की गहराई तक ही अपनी जड़ों का विकास करते हैं। अत: खेत की सतही जुताई ही फायदेमंद है। जलवायु और मिट्टी की दशा को ध्यान में रखते है हुए एक से दो जुताई करके पाटा चला दें। खेतों को 15 मीटर ङ्ग 3 मीटर के आकार में बाँटकर अलग- अलग क्यारी बनायें ताकि जल उपलब्धता के आधार पर इसकी सिंचाई की जा सके।

रोपाई का समय

इसकी रोपाई का सबसे उपयुक्त समय जुलाई- अगस्त है । इस मौसम में रोपाई करने से पौधे पूरी तरह जीवित रहते हैं और उनका विकास तेजी से होता है। सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में किसी भी समय इसकी रोपाई कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखें कि अगर शीत ऋतु में कड़ाके की ठंड पड़ रही हो तब इसकी रोपाई नहीं करें।

अच्छी पौध का चयन

व्यावासायिक उत्पादन के लिए घृतकुमारी की 4-5 पत्ती वाली लगभग चार महीने पुराने, 20-25 सें. मी. लम्बाई के पौधे का चयन करते हैं। घृतकुमारी के पौधे की यह खासियत होती है कि इसे उखाडऩे के महीनों बाद भी लगया जा सकता है।

लगाने की दूरी

घृतकुमारी के पौधे को 60ङ्ग60 सें. मी. की दूरी पर लगायें। मतलब लाईन से लाईन की दूरी 60 सें. मी. रखते हैं। पौधे की दूरी किस्मों के अनुसार कम या ज्यादा हो सकती है। घृतकुमारी का पौधा लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधे को लगाने के बाद मिट्टी अच्छी तरह से दबी हो। एक एकड़ में औसतन 11000 पौधे लगते हैं।

खाद/उर्वरक

साधारणतया घृतकुमारी को कम उपजाऊ जमीनों में लगाते हैं और कम खाद और उर्वरक के भी इससे अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अच्छी उपज के लिए खेत को तैयार करते समय 10-15 टन केंचुआ खाद या गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें इससे उत्पादन में गुणात्मक रूप से वृद्धि होती है। जैविक की खाद का इस्तेमाल करने से पौधे की बढ़वार तेजी से होती है और किसान एक वर्ष में एक से अधिक कटाई कर सकता है।

सिंचाई

घृतकुमारी शुष्क क्षेत्र के लिए उपयुक्त फसल मानी जाती है और यह पानी की कमी को आसानी से सहन कर लेती है। अधिक उत्पादन के लिए उसकी क्रांतिक अवस्था में सिंचाई करना काफी लाभप्रद होता है। पहली सिंचाई पौध लगाने के बाद तथा दूसरी और तीसरी सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। वर्ष में 2-3 जीवन रक्षक सिंचाई करने से भी अच्छी पैदा हो सकती है। प्रत्येक कटाई के बाद एक सिंचाई देना लाभदायक होता है।

खरपतवार नियंत्रण

फसल को खरपतवार से मुक्त रखें। प्राय: कम उपजाऊ जमीन में खरपतवार का प्रकोप कम होता है फिर भी खेत में यदि खरपतवार की समस्या हो तो उसे भौतिक/यांत्रिक विधि से नष्ट कर देें। खरपतवार निकलते वक्त घृतकुमारी के सूखे पत्तों और रोगग्रसित पौधों को भी निकालते रहें।

कीट एवं रोग नियंत्रण

घृतकुमारी में कीट एवं रोग का प्रकोप नहीं के बराबर होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप हो सकता है जिसका नियंत्रण क्लोरोपाईरीफास की 5 मिली दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करके किया जा सकता है।

कटाई और उपज

घृतकुमारी को पत्ती जब पूरी तरह से विकसित हो जाए, तब उसकी तुड़ाई करें। पत्तियों को तोड़ते समय यह ध्यान रखें कि पौधे के बीच की कम से कम नवीनतम पत्तियाँ पौधे में लगी हों, अन्यथा पौधे का विकास रूक जाएगा। औसतन प्रति हेक्टेयर 15-20 टन ताज़ी पत्तियों का उत्पादन होता है। अच्छी देखभाल वाली फसल से 25-35 टन प्रति हेक्टेयर तक ताज़ी पत्तियां प्राप्त की जा सकती हैं।

एलोवेरा जूस कई स्वास्थ्य लाभों से भरपूर है, जिसमें पाचन में सुधार, वजन घटाने में मदद, और त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद होना शामिल है। यह शरीर को डिटॉक्स करने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी मदद करता है।

किस्में

भारत में घृतकुमारी की बहुत सारी किस्में विकसित नहीं हुई हैं फिर भी आई. सी. – 111271, आई.सी. – 111280, आई. सी. – 111269, आई. सी.- 111273 और यूएएल-2 का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन किया जा सकता है। इन किस्मों में पाई जाने वाली एलोडीन की मात्रा 20 से 23 प्रतिशत तक होती है।

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