राज्य कृषि समाचार (State News)संपादकीय (Editorial)

साइलेज बनाने की विधि एवं उपयोगिता

पता: भा.कृ.अनु.प.-भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी (उ.प्र.), फोन- 0510-2730666

14 जनवरी 2025, भोपाल: साइलेज बनाने की विधि एवं उपयोगिता – साइलेज हरा चारा संरक्षण की एक प्रमुख विधि है। आमतौर पर जुलाई से लेकर अक्टूबर तक आवश्यकता से अधिक चारा उपलब्ध रहता है। इसी प्रकार मध्य दिसम्बर से मार्च तक जई, बरसीम तथा रिजका इत्यादि हरे चारे की उपलब्धता रहती है। इसके अलावा बरसात के दिनों में मानसून के पश्चात् चरागाहों में भी प्रचुर मात्रा में घास उपलब्ध रहती है। कई बार आवश्यकता से अधिक मात्रा में चारे का उत्पादन हो जाता है जो की खराब हो जाता है। इसके विपरीत अक्टूबर से मध्य दिसम्बर एवं अप्रैल से जून के बीच एकाएक चारे की कमी हो जाती है। इस समय हरे चारे का उत्पादन बहुत कम या नहीं के बराबर होता है। यदि आवश्यकता से अधिक उपलब्ध अतिरिक्त पैदा हुए चारे को भली-भांति संरक्षित कर लिया जाये तो कमी और अभाव के दिनों में पशुओं को समुचित पौष्टिक आहार प्रदान किया जा सकता है।

साइलेज बनाने हेतु उपयुक्त चारा: चारे की फसल जैसे- मक्का, बाजरा, ज्वार, जई, नेपियर, गिनी घास इत्यादि साइलेज के लिए उपयुक्त है।

साइलेज बनाने हेतु उपयुक्त साइलो:

बंकर साइलो

इस प्रकार के साइलो में फर्श पक्का होता है तथा दीवारें ईट की बनी हुई स्थायी होती हैं। यह चौड़ाई में खुला हुआ तथा भूमि की सतह पर निर्मित होता है। यह उन स्थानों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है जहाँ भूमिगत जल का स्तर काफी ऊँचा होता है।

पिट साइलो

यह वर्गाकार गड्ढे के आकार का निर्मित साइलो होता है। इसके लिए गड्ढे को ऐसे स्थान पर खोदा जाता है जो अपेक्षाकृत ऊँचा होता हो और जहाँ वर्षा का जल भरने की आशंका नहीं होती। पिट साइलो बहुत वर्षा वाले क्षेत्रों जहाँ भूमिगत जल स्तर अधिक ऊँचा होता है, उन स्थानों के लिए उपयुक्त नहीं होता है।

साइलेज बनाने की विधि

आमतौर पर 1.0&1.0&1.0 मीटर के गड्ढे में लगभग 4-5 क्विंटल साइलेज बनाया जा सकता है। गड्ढे को पक्का करना ठीक रहता है। लघु स्तर पर साइलेज प्लास्टिक बैग में भी बनाया जा सकता है।

साइलेज की भराई

सुखाने व चारे की कुट्टी बनाने के बाद साइलजे में चारे की भराई एक महत्वपूर्ण कार्य है। सग्रंह स्थान में चारे की परत दर परत रखकर पैरों से अथवा यांत्रिक विधि से भली-भांति दबा दें ताकि किसी भी कोष्ठ अथवा कोनों में हवा न रह जाये। साइलो को उस समय तक भरना चाहिए जब तक की चारे की ऊंचाई साइलो की ऊपरी सतह से थोड़ा ऊपर न हो जाए, भरे हएु गड्ढे की ऊपरी सतह को पॉलीथिन से अच्छी तरह ढंक कर उसके ऊपर मिट्टी की15-20 सेमी. मोटी तह बिछाकर एवं सूखी घास, पुआल इत्यादि डालकर मिट्टी एवं गोबर का लेप लगाकर अच्छी तरह सील कर दें। इस प्रकार से सुरक्षित किया गया हरा चारा लगभग डढ़े से दो माह की अवधि में साइलेज के रूप मेें परिवर्तित हो जाता है। इस पकार तैयार साइलेज को उपयोग में लाने के लिए साइलो को सावधानीपूर्वक इस प्रकार खोलना चाहिए, कि उसमें से साइलेज की आवश्यक मात्रा सावधानीपूर्वक निकाली जा सके तथा उसके बाद साइलो को इस प्रकार पुन: ढंका जा सके, जिससे उसके अदंर वायु रहित वातवारण बना रहे और साइलेज खराब न हो।

चारे को सुखाना और कुट्टी काटना

साइलेज बनाने के लिए हरे चारे की उचित अवस्था (50 प्रतिशत फूल आने पर) में कटाई के बाद उसे 60-65 प्रतिशत नमी तक सुखाते हैं। इसके बाद चारा काटने की मशीन पर उसे 3-5 से.मी. के छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है ताकि कम स्थान में एवं वायु रहित वातावरण में भंडारित की जा सके।

अच्छी साइलेज के गुण

  • साइलेज की महक अम्लीय होनी चाहिए।
  • दुर्गन्ध युक्त एवं तीखी गंध वाली साइलेज खराब होती है।
  • साइलेज चिपचिपी, गीली व फफूंद लगी नहीं होनी चाहिए।

ध्यान रखने योग्य बातें :

  • चारे का अधिक गीला या शुष्क होना साइलेज के लिए हानिकारक होता है।
  • साइलो में भरने के बाद इसे भली प्रकार दबाना चाहिए ताकि किसी भी कोष्ठ अथवा कोने में हवा न रह जाये। हवा एवं नमी में साइलेज खराब बनेगा एवं सड़ जायेगा।
  • किसी भी संग्रह स्थान पर बाहर से पानी इत्यादि का रिसाव नहीं होना चाहिए।

पशुओं को खिलाना: डेढ़ से दो माह बाद गड्ढे को एक तरफ से खोलना चाहिए तथा खिलाने हेतु साइलेज निकालने के बाद तुरंत बंद कर दें। हरे चारे की 35 से 50 प्रतिशत मात्रा साइलेज के रुप में खिलाई जा सकती है।

साइलेज के लाभ :

  • साइलेज पौष्टिक तथा सुपाच्य होता है।
  • चारे की अधिकता होने पर उसे संरक्षित करके चारे की कमी के समय उपयोग में लाया जा सकता है।
  • पशु को हरे चारे की कमी नहीं होती है तथा पशु इसे चाव से खाता है।
  • साइलेज मे 80 से 90 प्रतिशत तक हरे चारे के बराबर पोषक तत्व संरक्षित रहते है।
  • हरे चारे के अभाव में साइलेज खिलाकर पशुओं का दुग्ध उत्पादन आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

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