मूंग के प्रमुख कीट एवं प्रबंधन
- संजय एम. बंदी , सचिन दुबे, रेवनसिद्दा,
बन्सा सिंह, भा.कृ.अनु.प.- भारतीय दहलन अनुसंधान संस्थान, कानपुर
30 अप्रैल 2023, मूंग के प्रमुख कीट एवं प्रबंधन – भारत में मूंग कम समय के पकने वाली एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। मूंग का उत्पादन खरीफ, रबी और जायद में भी लिया जाता है। मूंग की फसल में विभिन्न अवस्थाओं में अनेक प्रकार के कीट लगने की सम्भावना रहती है। यदि इन कीटों का सही पहचान करके उचित समय पर नियंत्रण कर लिया जाए तो उपज का काफी भाग नष्ट होने से बचाया जा सकता है।
बीन थ्रिप्स या रसचूसक कीट
बीन थ्रिप्स बहुत छोटे गहरे भूरे रंग के होते हैं। इस कीट के अपरिपक्व व वयस्क अवस्थाएं मूंग के फूलों को पर्याक्रमित करते हैं। इसके प्रकोप से पौधे गहरे हरे रंग के और कमजोर हो जाते हैं। भारी प्रकोप होने पर पत्तियां मुड़ जाती है और फूल गिर जाते है। इसका प्रकोप शुष्क अवस्था में, विशेष रूप से ग्रीष्म काल में ज्यादा होता है।
प्रबंधन
नियमित रूप से सिंचाई करें। नीम तेल (3000 पीपीएम) तथा नीम बीज सार (5त्न) से छिडक़ाव करें। बुवाई से पहले बीज का थायोमेथॉक्साम 70 2ह्य (2 मि. ली. प्रति कि. ग्रा. बीज) से उपचार करें । तथा थायोमेथॉक्साम 25 ङ्खत्र को 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करने से इस कीट को नियंत्रित कर सकते हैं।
सफेद मक्खी
सफेद मक्खी के शरीर और दोनों पंखों पर सफेद से पीले रंग का मोमी स्राव रहता है। वे अक्सर पत्तियों की निचली सतह पर दिखती है। ये गरम और सूखी परिस्थितियों में पनपती है। पत्तियों की निचली सतह पर अंडे दिए जाते हैं। नवजात पीले से सफेद रंग के, सपाट, अंडाकार और हल्के-पीले होते हंै। इस कीट की अपरिपक्व व वयस्क अवस्थाएं पत्तियों की निचली सतह से रस चूसती है। यह कीट पत्तों पर हनीड्यू उत्सर्जित करते हैं। इस हनीड्यू पर काली फफूंद उगने लगती है जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया बाधित होती है। जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है। सफेद मक्खी पीले मोज़ेक वायरस को भी फैलाती है।
प्रबंधन
मक्का या ज्वार की फसल मूंग के चारों ओर लगाने से इस कीट का पर्याक्रमन कम होता है। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL (3 मि.ली. प्रति कि. ग्रा. बीज) से बीजोपचार तथा फसल पर 0.2 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करें।
चेपा (माहू)
माहू छोटे, नरम शरीर के कीड़े है। प्रजातियों के आधार पर उनके शरीर का रंग पीला, भूरा या काला होता है। इस कीट के शिशु और प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूल-फलियों पर समूह में एकत्रित होकर रस चूसकर उसे कमजोर बना देते हैं। कोमल पत्तिया इनके प्रभाव से सिकुड़ी हुई दिखाई देती है। गंभीर संक्रमण से पत्तियां और टहनियाँ मुड़ सकती हैं और पीली पड़ सकती है। साथ ही पौधे के विकास को नुकसान हो सकता है।
प्रबंधन
नीम तेल (3000 पीपीएम) तथा नीम बीज सार (5 प्रतिशत) से छिडक़ाव करने से चेपा का प्रबंधन किया जा सकता है।
फली बग: फली बग की वयस्क एवं अपरिपक्व दोनों ही अवस्थाएं हानिकारक होती है। प्रौढ़ बग कुछ हरे भूरे रंग के होते है। वयस्क मादा फलियों पर एक समूह में 5-25 अण्डे देती है। यह कीट समूह में पत्तियों, कलियों तथा फलियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करते है। प्रकोपित फलियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और फलियों के अंदर के दाने सिकुड़े तथा छोटे आकार के हो जाते हैं।
टोबैको कैटरपिलर
इस कीट की वयस्क पतंगा मटमैले भूरे रंग की होती है, जिसके ऊपरी पंखों पर सफेद रंग की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं होती है। निचले पंख सफेद होते है। वयस्क मादा अण्डे 200-250 के समूहों में पत्ती की निचली सतह पर देती है। एक वयस्क मादा लगभग 1200-2000 अण्डे देती है। इस कीट की छोटी इलियाँ मटमैले हरे रंग की होती है और प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों पर समूह में रहकर हरे भाग को खुरच-खुरच कर खाती है। परिणामस्वरूप ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है। पूर्ण विकसित इलियाँ हरे, भूरे या कत्थई रंग की होती है। शरीर के प्रत्येक खण्ड के दोनों और काले तिकोने धब्बे इसकी विशेष पहचान है। बड़ी इलियाँ पूरे खेत में फैल जाती है एवं पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है।
प्रबंधन
इस कीट के नवजात इलियों को इक_ा करके उन्हे नष्ट कर देते है। प्रबंधन के लिए क्लोरानट्रानिलिप्रोल 18.5 SC का 100 मिली. प्रति हेक्टर की दर से छिडक़ाव कर सकते हैं।
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