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खाद्य सुरक्षा से परे मृदा स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की राय

20 नवंबर 2024, नई दिल्ली: खाद्य सुरक्षा से परे मृदा स्वास्थ्य पर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की राय – केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने पूसा, नई दिल्ली में आयोजित वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। यह सम्मेलन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी, और इटली की कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से आयोजित किया गया। इसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के महत्व पर चर्चा करना और इसे जलवायु परिवर्तन शमन व पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के साथ जोड़ना है।

चार दिवसीय सम्मेलन की थीम है: खाद्य सुरक्षा से परे मिट्टी की देखभाल: जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ।” इस आयोजन में वैज्ञानिक, नीति निर्माता, और विशेषज्ञ मृदा प्रबंधन में सुधार और टिकाऊ कृषि के लिए नीतिगत व तकनीकी समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री ने मृदा प्रबंधन पर दिया जोर

अपने संबोधन में श्री चौहान ने मृदा स्वास्थ्य को जलवायु नीतियों का अभिन्न हिस्सा बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मिट्टी न केवल खाद्य सुरक्षा के लिए बल्कि जलवायु परिवर्तन को कम करने और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं से किसान-केंद्रित समाधान विकसित करने की अपील की, जो मिट्टी की उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाने में मदद कर सकें। उन्होंने मिट्टी के क्षरण और पोषक तत्वों की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए नई तकनीकों और शोध पर बल दिया।

नीति आयोग के सदस्य का व्यावहारिक दृष्टिकोण

नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद ने मिट्टी की गिरती सेहत को “मूक संकट” करार देते हुए इसके आर्थिक और सामाजिक प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि खराब मृदा स्वास्थ्य न केवल कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है बल्कि किसानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
डॉ. चंद ने मिट्टी के संरक्षण और बहाली में निवेश को प्राथमिकता देने और इसे नीतिगत ढांचे का हिस्सा बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि “भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नवाचार और समन्वित नीतियों की आवश्यकता है।”

वैज्ञानिकों के विचार और योगदान

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने मृदा अनुसंधान में पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक तकनीकों के मिश्रण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह संयोजन मृदा क्षरण को रोकने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
आईसीएआर के वर्तमान महानिदेशक और ISSS के अध्यक्ष डॉ. हिमांशु पाठक ने मृदा अनुसंधान को सतत विकास लक्ष्यों से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने किसानों और वैज्ञानिकों के बीच समन्वय बढ़ाने और मृदा स्वास्थ्य पर जागरूकता फैलाने की अपील की।
आईयूएसएस (IUSS) के अध्यक्ष डॉ. एडोआर्डो कॉस्टेंटिनी ने मृदा प्रबंधन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारत के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह सम्मेलन टिकाऊ मृदा प्रबंधन के लिए वैश्विक साझेदारी को मजबूत करेगा।

सम्मेलन में प्रकाशित हुए शोध और दिए गए पुरस्कार

आयोजन के दौरान विभिन्न प्रकाशनों का विमोचन किया गया और मृदा अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
समारोह की शुरुआत भाकृअनुप के उप-महानिदेशक डॉ. एस.के. चौधरी के संबोधन से हुई, जिन्होंने सम्मेलन की थीम के महत्व पर चर्चा की। कार्यक्रम का समापन डॉ. रंजन भट्टाचार्य के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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