सामूहिक खेती ने सदस्य किसानों को बनाया समृद्ध
13 जुलाई 2025, (दिलीप दसौंधी, मंडलेश्वर): सामूहिक खेती ने सदस्य किसानों को बनाया समृद्ध – कहते हैं एकता में ताकत होती है। सामूहिक रूप से सहकारिता की सच्ची भावना से यदि कोई कार्य किया जाए , तो वह न केवल आसान हो जाता है, बल्कि उसमें सफलता मिलने से समृद्धि के द्वार भी खुल जाते हैं। ऐसी ही एक मिसाल खरगोन जिले की कसरावद तहसील के ग्राम मुलठान के कुछ युवकों ने सामूहिक खेती करके पेश की है। इस सामूहिक खेती ने उनकी आर्थिक दशा को बदल दिया है।
मुलठान के श्री सचिन माली ने कृषक जगत को बताया कि आर्थिक परेशानियों के कारण 10 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ खेती करनी पड़ी , लेकिन परम्परागत खेती से जीवनयापन मुश्किल हो रहा था। 2020 के लॉक डाउन ने तो और हालत ख़राब कर दी। ऐसे में मित्र श्री जितेंद्र भावसार ने मित्रों के साथ मिलकर सामूहिक खेती कर अपनी फसल को ऊंचे भाव पर बेचने का सुझाव दिया। मित्रों सर्व श्री जितेंद्र माली, प्रवीण माली ,विकास राजपूत, अनिल माली ,विनीत मोरी ,मुकेश यादव, अर्जुन मालाकार ,संजय माली , पवन माली आदि ने अपने -अपने परिवार के वरिष्ठों के समक्ष अपना विचार रख सहमति मांगी। जो हमें मिल गई। मार्गदर्शक श्री गणेश माली की सलाह पर पहले साल 8 -10 साथियों ने कुल 16 एकड़ में एक साथ तरबूज लगाया । जिसका अच्छा उत्पादन और दाम भी मिला तो उत्साह बढ़ा। 15 -20 टन सामूहिक फसल को एक साथ खेत से ही व्यापारियों को बेचा ,तो परिवहन लागत की बचत हुई और बाज़ार से 1 -2 रु किलो अधिक का दाम भी मिला। हमारी सफलता देख दूसरे वर्ष 15 -20 किसान और जुड़ गए तो सभी ने टमाटर , बैंगन और खरबूजा लगाया। साथियों के जुड़ते रहने से अब यह रकबा करीब 40 एकड़ का हो गया है। इस साल भी 5 -6 नए किसान हमारे समूह में शामिल हुए हैं।
श्री सचिन ने कहा कि इस सामूहिक खेती से जहां हमें एक साथ माल बेचने में सुविधा हुई , वहीं दिल्ली , मुंबई के एजेंटों को एक जैसी गुणवत्ता वाली फसल मिलने से उनको भी फायदा होता है । किसान और व्यापारियों के बीच विश्वास भी कायम हुआ है। धीरे – धीरे सभी साथियों की आर्थिक स्थिति भी सुधर गई। अब कई साथी अन्य कार्य के अलावा यह सामूहिक खेती करते हैं। मैंने स्वयं किसान कृषि सेवा केंद्र के नाम से मुलठान में दुकान खोल ली है। यह सब सामूहिक खेती से ही संभव हो पाया है। कोई नया सदस्य समूह में शामिल होता है ,तो ज़रूरत पड़ने पर उसे समूह द्वारा आर्थिक मदद भी उपलब्ध कराई जाती है , जिसे फसल आने पर वसूल कर लिया जाता है। इससे संबंधित व्यक्ति साहूकार के ब्याज से बच जाता है और उसे वास्तविक रूप से सहकारिता देखने /सीखने को मिलती है। हमारी सफलता से अन्य किसान भी इस अवधारणा पर कार्य करने को प्रेरित हो रहे हैं।
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