जलवायु के बदलाव से घट रहा कृषि उत्पादन
लेखक: आकाश जोशी, आदेश गुर्जर, अजय पटेल, विशाल शर्मा, छात्र-: कृषि विभाग, सेज विश्वविद्यालय इंदौर (म.प्र.)
16 सितम्बर 2024, भोपाल: जलवायु के बदलाव से घट रहा कृषि उत्पादन – भारत की आबादी तकरीबन डेढ़ अरब है। अब यह दुनिया की सब से बड़ी आबादी वाला देश हो चुका है. इस से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का दबाव भी बढ़ रहा है. बढ़ी हुई आबादी ने देश में खाद्यान्न की मांग में भी बढ़ोतरी की है।
चूंकि भारत प्राकृतिक विविधताओं वाला देश है। ऐसे में हम अब भी ऐसे हालात में हैं कि देश के डेढ़ अरब लोगों के पेट भरने के लिए भरपूर मात्रा में खाद्यान्न कर पाने में सक्षम हैं, लेकिन बीते 2-3 दशकों में मौसमचक्र में तेजी से बदलाव आने से अब खेती पर खतरा मंडराने लगा है।
देश के जिन हिस्सों में जून महीने में मानसून सक्रिय हो जाता था, उन हिस्सों में अब मानसून के देरी से दस्तक देने के चलते वर्षा आधारित फसलों के उत्पादन में तेजी से कमी आई है। इस के चलते जहां वर्षा में कमी आई है, वहीं शरद ऋतु में कम ठंड ने रबी सीजन की फसलों के उत्पादन में कमी लाने का काम किया है। जलवायु परिवर्तन का खतरा सिर्फ देश के मैदानी इलाके ही नहीं झेल रहे हैं, बल्कि इस का सीधा असर पहाड़ी और ठंडे प्रदेशों पर भी दिखाई पड़ने लगा है। जलवायु परिवर्तन का सीधा उदाहरण हम हिमाचल प्रदेश से ले सकते हैं. साल 2023 में हिमाचल प्रदेश में भीषण बारिश ने यहां के कई जिलों को पूरी तरह से तबाह कर के रख दिया।देश की तकरीबन 70 फीसदी आबादी आज भी खेती पर निर्भर है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की चुनौती, रोजमर्रा की आजीविका के संघर्ष एवं व्यस्त दिनचर्या के चलते लोगों के लिए यह गंभीरता का विषय नहीं बन पाई है। समुद्री जलस्तर वढ़ने से प्रभावित होते तटीय या द्वीपीय क्षेत्रों के लोग हों या असामान्य मानसून अथवा जल संकट से परेशान किसान. विनाशकारी समुद्री तूफान का कहर झेलते तटवासी हों अथवा सूखे एवं बाढ़ के विकट हालात से जूझते लोग। असामान्य मौसमजनित अजीबोगरीब बीमारियों से परेशान लोग हों या विनाशकारी बाढ़ में अपना आवास और सबकुछ खो बैठे और दूसरे क्षेत्रों को पलायन करते लोग. दरअसल, ये तमाम लोग जलवायु में बदलाव की मार झेल रहे
मिट्टी की उत्पादकता पर संकट
तापमान में बढ़ोतरी के चलते मिट्टी में नमी और जल धारण की क्षमता कम हो रही है.इस वजह से मिट्टी में लवणता में बढ़ोतरी और जैव विविधता में कमी देखी जा सकती है । सूखा, बाढ़, भूस्खलन, बादल फटने आदि के कारण मिट्टी के नुकसान और बंजर क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की जा रही है।
कीट व बीमारियों में बढ़ोतरी
जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी ने फसलों में कीट और बीमारियों का प्रकोप बढ़ा दिया है. जलवायु के गरम होने से फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटपतंगों की प्रजनन क्षमता तेजी से बढ़ रही है और बढ़ रहे कीटपतंगों की रोकथाम के लिए बहुत ज्यादा कीटनाशकों के इस्तेमाल से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है।
सिंचाई के लिए जल संकट
जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी के चलते जल आपूर्ति की समस्या के साथ ही बाढ़ और सूखे में बढ़ोतरी हुई है. शुष्क मौसम में लंबे समय तक वर्षा, वर्षा की अनिश्चितता ने भी फसल उत्पादन पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया है। जलवायु परिवर्तन ने जल संसाधनों के दोहन से भूगर्भ जल में कमी लाने का काम किया है।
पृथ्वी पर इस समय 140 करोड़ घनमीटर जल है। इस का 97 फीसदी भाग खारा पानी है, जो समुद्र में है. इनसान के हिस्से में कुल 136 हजार घनमीटर जल ही बचता है।पानी 3 रूपों में पाया जाता है- तरल, जो समुद्र, नदियों, तालाबों और भूमिगत जल में पाया जाता है, ठोस- जो बर्फ के रूप में पाया जाता है और गैस वाष्पीकरण द्वारा, जो पानी वातावरण में गैस के रूप में मौजूद होता है।
जलवायु परिवर्तन ने न केवल फसल उत्पादन को प्रभावित किया है, बल्कि इस ने पशुओं पर विपरीत असर डालना शुरू कर दिया है। तापमान बढ़ने से जानवरों के दूध देने वप्रजनन क्षमता पर भी सीधा असर पड़ रहा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर तापमान में बढ़ोतरी इसी तरह जारी रही, तो दूध उत्पादन में वर्ष 2020 तक 1.6 करोड़ टन और वर्ष 2050 तक 15 करोड़ टन तक गिरावट आ सकती है। इस के अलावा सब से अधिक गिरावट संकर नस्ल की गायों में (0.63 फीसदी), भैंसों में (0.50 फीसदी) और देशी नस्लों में (0.40 फीसदी) होगी, क्योंकि संकर नस्ल की प्रजातियां गरमी के प्रति कम सहनशील होती हैं, इसलिए उन की प्रजनन क्षमता से ले कर दुग्ध क्षमता ज्यादा प्रभावित होगी। जबकि देसी नस्ल के पशुओं में जलवायु परिवर्तन का असर कुछ कम दिखेगा।
जलवायु परिवर्तन के बुरे असर
जलवायु परिवर्तन में कमी लाने के पहले उस के बुरे असर में भी कटौती करने के उपायों की तरफ सोचना होगा। इस के लिए खेतों में जल प्रबंधन, जैविक, प्राकृतिक और समेकित खेती को बढ़ावा, फसल उत्पादन की टिकाऊ और नई तकनीकी का विकास, फसल संयोजन में परिवर्तन, खेती की पारंपरिक विधियों को बढ़ावा इत्यादि कर के जलवायु परिवर्तन के बुरे असर को कम किया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसमचक्र में आ रहे बदलाव को रोकने के लिए सतत कृषि और भूमि उपयोग के प्रबंधन की तरफ ध्यान देना होगा, कृषि प्रथाओं में परिवर्तन- जैसे कि मांस की खपत को कम करना, पुनर्योजी कृषि को अपनाना और आर्द्र भूमि और घास के मैदानों की रक्षा करना। कम ऊर्जा खपत वाले सामान के उपयोग पर फोकस करना I
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: