कृषकों के लिए सलाह
12 जनवरी 2023, भोपाल । कृषकों के लिए सलाह –
- गेहूँ के लिए सामान्यतया नत्रजन, स्फुर व पोटाश-4:2:1 के अनुपात में दें। सीमित सिंचाई में 80:40:20, सिंचित खेती में 40:70:35 तथा देर से बुवाई में 00:50:25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक दें।
- पूर्ण सिंचित समय से बुवाई में 20-20 दिन के अंतराल पर 4 सिंचाई करें।
- आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर फसल गिर सकती है, दानों में दूधिया धब्बे आ जाते हैं तथा उपज कम हो जाती है।
- बालियाँ निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, दानों का मुँह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुआ व्याधि के प्रकोप का डर रहता है।
- पाले की संभावना हो तो इससे बचाव के लिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें अथवा 0.7 प्रतिशत व्यापारिक सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का अम्ल) का छिडक़ाव करें।
- गेहूँ फसल में मुख्यत: दो तरह के खरपतवार होते हंै। चौड़ी पत्ती: बथुवा, चौलाई, सेंजी, दूधी, कासनी जगंली पालक, जगंली मटर, कृष्ण नील, हिरनखुरी तथा संकरी पत्ती : गुल्ली-डन्डा, मोथा, जंगली जई, कांस आदि।
- चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2,4-डी की 0.65 किलोग्राम या मैटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम/ हेक्टेयर की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद, जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हों, छिडक़ाव करें।
- संकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्विनालोफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम/हेक्टेयर की दर से 25-35 दिन की फसल में जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हों, छिडक़ाव करें।
सैनिक कीट (आर्मी वर्म)
इसके लारवा (सुन्डी) भूमि की सतह से पौधे के तने को काटता है। ये प्राय: दिन में छुपे रहते हैं तथा रात होने पर निकलते हैं तथा पौधे की जडं़े काट देते हैं। फलस्वरूप फसल सूखना प्रारम्भ हो जाती है। इसकी रोकथाम हेतु 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस 375 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर सुबह या शाम के समय प्रयोग करें और बाद में सिंचाई करें।
- माहू का प्रकोप गेहूं में ऊपरी भाग (तना व पत्तों) पर होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
- जड़ माहू (रूट एफिड) गेहूं के पौधे को जड़ से रस चूसकर पौधों को सुखा देते हैं। जड़ माहू के नियंत्रण के लिए बीज उपचार गाऊचो रसायन से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 7.8 एस एल की 250 मिली या थाइमेथोक्सम की 200 ग्राम/हे. की दर से 300-400 ली. पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
गेरूआ
शरबती-चन्दौसी गेहूं के साथ मालवी गेहूं की खेती करने से गेरुआ रोग की सम्भावना कम हो जाती है। सामान्यत: चन्दौसी किस्में भूरा गेरूआ तथा मालवी गेहूँ में काला गेरूआ आता है। गेरूआ रोग से जल्दी ग्रस्त होने वाली पुरानी जातियों की खेती न करें तथा विश्वसनीय स्थानों से ही शुद्ध बीज का चयन करें। गेरूआ रोग से प्रतिरोधी नई प्राजातियों की खेती करें। अधिक प्राकोप होने पर प्रोपीकोनाजोल (0.7. प्रतिशत) मिली/ली. या टेबुकोनेजोल (0.7 प्रतिशत) मिली/ली. दवा का छिडक़ाव करें।
- कंडवा रोग (लूज स्मट): यह बीज जनित फफूँदी जनित रोग है। इस रोग में बालियों में बीज के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है। तथा पुरानी प्रजातियों में भारत के सभी हिस्सों में देखा जा सकता है। इसके उपचार हेतु रोग प्रभावित पौधों को उखाडक़र सावधानीपूर्वक थैलियों में बंद कर मिट्टी में दबायें अथवा जला दें, क्योंकि यह रोग हवा से फैलता है। इसके लिए बीज को ट्राइकोडरमा विरीडी 4 ग्रा./कि. बीज या कार्बोक्सिन (वीटावैक्स 75 डब्ल्यू. पी.) 1.25 ग्रा./ क्विं. बीज या टेबुकोनाजोल (रैक्सिल 2 डी. एस.) 1.0 ग्रा./कि. बीज के हिसाब से बीज को उपचारित करके ही उपयोग करें।
- चूहों के नियंत्रण के लिए 3-4 ग्राम जिंक फॉस्फाईड को एक किलोग्राम आटा, थोड़ा सा गुड़ व तेल मिलाकर छोटी-छोटी गोली बना लें तथा उनको चूहों के बिलों के पास रखें।
- खेत में गेहूं, के पौधे के सूखने अथवा पीले पडऩे पर जो कि किसी कीट, बीमारी अथवा पोषक तत्व की कमी से हो सकता है, तुरन्त विशेषज्ञ की सलाह लेकर उसका शीघ्र उपचार करें।
- वैज्ञानिक :-
- डॉ. ए.के. सिंह – कृषि प्रसार, मो. 8319369491, डॉ. के.सी. शर्मा – सस्य विज्ञान, मो. 9200239785,
- डॉ. डी.के. वर्मा – पादप प्रजनन, मो. 9419033482, डॉ. जे.बी. सिंह – पादप प्रजनन, मो. 9752159512,
- डॉ. प्रकाश टी. एल. – पादप रोग विज्ञान, मो. 8817605807, डॉ. राहुल गजघाटे – पादप प्रजनन, मो. 8317036658.
- डॉ. उपेन्द्र सिंह – सस्य विज्ञान, मो. 7987353704
महत्वपूर्ण खबर:उर्वरक अमानक घोषित, क्रय- विक्रय प्रतिबंधित