State News (राज्य कृषि समाचार)

नैनो यूरिया के इस्तेमाल से गेहूं की पैदावार में 20 प्रतिशत की कमी: पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी

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05 जनवरी 2024, नई दिल्ली: नैनो यूरिया के इस्तेमाल से गेहूं की पैदावार में 20 प्रतिशत की कमी: पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी – पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विशेषज्ञों ने नैनो-यूरिया की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया है। पीएयू में मृदा विज्ञान विभाग के प्रमुख रसायन विशेषज्ञ डॉ. राजीव सिक्का और नैनोटेक्नोलॉजी की डॉ. अनु कालिया सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने धान और गेहूं की उपज पर नैनो-यूरिया के प्रभावों की जांच के लिए दो साल तक खेतों में परिक्षण किया।  इस परीक्षण में उन परिणामों पर प्रकाश डाला गया हैं जो खाद्य सुरक्षा के निर्माण में किसानों के सभी प्रयासों के लिए हानिकारक हैं।

यह परीक्षण गेहूं और धान पर नैनो यूरिया के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया गया था। परीक्षण के नतीजों ने फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव, प्रोटीन सामग्री में उल्लेखनीय गिरावट और खेती के खर्च में समग्र वृद्धि को उजागर किया। निष्कर्ष इफको नैनो यूरिया के दावों को खारिज करते हैं जिसमें कहा गया है कि यह फसल की पैदावार बढ़ाने, भोजन की बेहतर गुणवत्ता और किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है।

पीएयू की रिसर्च ने इफको के नैनो यूरिया उपयोग प्रोटोकॉल का पालन किया जिसके कारण पारंपरिक नाइट्रोजन-उर्वरक के अनुप्रयोग की तुलना में धान और गेहूं की पैदावार में कमी आई हैं।

उपज एवं पोषण में कमी

श्री सिक्का ने कहा “अध्ययन के अनुसार नैनो-यूरिया के उपयोग से गेहूं की उपज में 21.6% की और धान की उपज में 13% की गिरावट देखी है। प्रयोग से यह भी पता चला कि नैनो-यूरिया के इस्तेमाल से जमीन के ऊपर टिलर बायोमास और जड़ की घनत्वता में भी कमी देखी गई है।”

इसके अलावा अनाज में नाइट्रोजन की मात्रा में कमी, जो प्रोटीन के संश्लेषण के लिए आवश्यक है। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा नैनो-यूरिया का खर्च है, जो पारंपरिक दानेदार यूरिया की तुलना में लगभग दस गुना अधिक महंगा है।

किसान यूरिया को प्रतिस्थापित करने के बजाय इसे टॉप-अप के रूप में उपयोग करेंगे, जिससे कृषि की लागत बढ़ जाएगी। बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं ने वैज्ञानिकों को अधिक कुशल उर्वरक विकसित करने के लिए प्रेरित किया है जिससे नैनो यूरिया का निर्माण हुआ है। इफको द्वारा जून 2021 में नैनो यूरिया लॉन्च किया गया था जिसमें 4% नैनो-एन घोल या 40 ग्राम एन प्रति लीटर होता है। इफको द्वारा इसे 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया/125 लीटर पानी/एकड़ पर दो बार पर्ण स्प्रे के रूप में लगाने की सिफारिश की गई है। 

रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि नैनो यूरिया का फसल में उपयग करने के लिए सही डोज व सही समय अनुकूलित करने में कम से कम 5 से 7 वर्ष लगेंगे। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि चूंकि परिणाम उत्साहजनक नहीं हैं, इसलिए गेहूं और धान पर नैनो यूरिया के उपयोग की सिफारिश नहीं की जा सकती है।

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