नरवाई-पराली जलाना किसानों की मजबूरी है
बरेली क्षेत्र ही नहीं देश में कचरे और पराली (धान का चिल्ला) कृषि अपशिष्ट जलाना किसानों और नगर पंचायतों की मजबूरी है। आग लगाकर कचरा नष्ट करना और कम समय में खेतों से पराली हटाना मजबूरी है क्योंकि आगामी फसल जो बोना है। सभी जानते हैं वायु प्रदूषण और सौर मण्डल के बढ़ता तापमान से, जो बड़े शहरों में आम नागरिकों को घुटन और बीमारियों से बदहाल जीवन जीने मजबूर हो रहे हैं, अब तो ग्रामीण क्षेत्र भी प्रदूषण की विकरालता की ओर जा रहे हैं। साथ ही जमीन की जैव उर्वरता खत्म हो रही है। कभी-कभी खेतों की आग से जन धन हानि, पशु धन हानि और बड़े-बड़े अग्नि कांड का विकराल रौद्र रुप भी सामने आ रहे ह़ैं। सरकारें योजना बद्ध तरीकों से ये ही करोड़ों रुपये पराली कचरों को औद्योगिक ईधन, विद्युत उत्पादन और पेपर मिलों में कच्चे माल के रूप में उपयोग करने की योजना का लक्ष बना ले तो आम के आम और गुठलियों के दाम की कहावत चरितार्थ होगी। पेट्रोलियम प्रोडक्ट, कोयला की बचत के साथ पशु धन की मृत्यु दर नगण्य हो जायेगी, जैविक खेती में विस्तार होगा और प्रदूषण से अकाल मौतों से बचेंगे लाखों परिवार। पर्यावरण को संतुलित करने वाले पशु-पक्षी कीट पतँगे बचेंगे। लेकिन यह सब किसानों पर प्रकरण दर्ज करने, मुवावजा वसूलने से नहीं होगा। किसानों पर अर्थदण्ड मतलब सिर मुड़ाते ही ओलावृष्टि , किसानों की पराली जलाना मजबूरी है। सरकारों द्वारा देरी से लिए गये निर्णयों से ही किसान कर रहे हंै मजबूरी में आत्महत्याएं, प्रदूषण बढऩे से और रोकने राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध स्तर आम नागरिकों से सुझाव जन अभियान चलाकर और शिक्षण संस्थाओं में निबंध, एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित कर श्रेष्ठ प्रतिभागियों को पुरस्कृत कर सम्माननित करें। समय आ गया है, तत्काल ठोस निर्णयों का, नहीं तो प्रकृति अपना तांडव दिखायेगी ही, ग्लोबल वार्मिंग, बर्फीले ध्रुवों का पिघलना, ज्वार भाटा भूकम्प और वायु मण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड का बढऩे के साथ अहम भूमिका रहेगी। हम दोषी हैं हमें ही सुधारना होगा व्यवस्था को।
– भगवान दास राठी, बरेली
मो.: 9425654271