प्राकृतिक खेती में हैं पूरकता का संदेश: केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री तोमर
प्राकृतिक खेती पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला
07 दिसम्बर 2022, ग्वालियर: प्राकृतिक खेती में हैं पूरकता का संदेश: केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री तोमर – राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर में प्राकृतिक खेती पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि प्राकृतिक खेती को बल देने के लिए हम सभी को विचार विमर्श करना चाहिए। हमारे देश में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है, कृषि केवल आजीविका ही नहीं है बल्कि मनुष्य को आजीविका के साधन जुटाने में भी सहयोग करती है। आज अन्य देश भी भारत से अपेक्षा करते है कि खाद्यान्न में प्रतिकूलता आने पर भारत हमारी सहायता करेगा। हमारे देश का सैनिक को आय प्राप्त होती है परंतु जब वह बॉर्डर पर होता है तब उसके मस्तिष्क में न धर्म, न जाति और न परिवार होता है वह केवल आपके दायित्व का निर्वाह करने पर ध्यान केन्द्रित करता है। इसी प्रकार हमारा किसान केवल अपने लिए नहीं पूरे समाज व देश के लिए पसीना बहाता है।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि एक समय हमने रासायनिक खेती के माध्यम से हरित क्रांति कर अपनी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा किया पर अब इसके कारण होने वाले दूरगामी दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए हमें प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ना ही होगा
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश के उद्यानिकी एवं नर्मदा घाटी विकास राज्य मंत्री श्री भारत सिंह कुशवाहा ने की ।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक विस्तार श्री चहल ने कहा कि भारत सरकार ने कृषि विज्ञान केंद्रों को प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने की जो जिम्मेदारी सौंपी है उसे सफल बनाने के लिए देश के सभी 425 कृषि विज्ञान केंद्र काम करेंगे
राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय के दत्तोपंत ठेंगडी सभागार में आयोजित इस कार्यशाला में देश के विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों के 425 वैज्ञानिक, कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान के नोडल अधिकारी एवं लगभग 300 कृषक भाग ले रहे है।
कार्यशाला के प्रथम सत्र में अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. शुक्ला ने सभी कृषि शिक्षा दिवस की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा भारत कृषि प्रधान देश है, यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। आज कृषि में रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के असंतुलित प्रयोग से मृदा की गुणवत्ता हास के कारण फसल की उत्पादकता एवं गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश दलहन एवं तिलहन उत्पादन में भी देश अग्रणी राज्य है। आज गेहंू व धान की खेती के साथ-साथ दलहन व तिलहन की ओर फसल विविधीकरण समय की मांग है। उन्होंने कहा रा.वि.सिं.कृ.वि.वि., ग्वालियर द्वारा कृषकों की आय को दुगुनी कर देश को प्राकृतिक खेती की उन्नत तकनीकों को विकसित कर आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।
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