‘मेक इन इंडिया’ स्लोगन बनकर रह गया? देसी उर्वरक कंपनियों की हालत खराब
‘एक राष्ट्र, एक लाइसेंस’ की मांग फिर तेज, FCO बना आत्मनिर्भर भारत में बाधा
09 जून 2025, नई दिल्ली: ‘मेक इन इंडिया’ स्लोगन बनकर रह गया? देसी उर्वरक कंपनियों की हालत खराब – ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे बड़े-बड़े नारे सरकार की ओर से गूंज रहे हैं, लेकिन खाद नीति की पुरानी और जटिल व्यवस्था भारतीय उद्यमियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। इससे न सिर्फ देसी कारोबारियों का हौसला टूट रहा है, बल्कि विदेशी कंपनियां, खासकर चीनी आपूर्तिकर्ता, आसानी से भारतीय बाजार में अपनी पैठ बना रहे हैं। हाल ही में एक बड़े सरकारी उपक्रम ने घुलनशील उर्वरक (सॉल्यूबल फर्टिलाइजर) की खरीद के लिए कई टेंडर निकाले, लेकिन इनमें साफ-साफ “मेड इन इंडिया” उत्पादों को बाहर रखा गया। चाहे सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM) हो या सीधे टेंडर, कई सरकारी कंपनियां MSME और ‘मेक इन इंडिया’ नियमों को चकमा दे रही हैं।
इसके पीछे की वजह है नियमों का जाल। भारतीय स्टार्टअप्स को हर उस राज्य में दफ्तर, गोदाम और कई तरह के लाइसेंस लेने पड़ते हैं, जहां टेंडर के जरिए उर्वरक बेचा जाना है। दूसरी ओर, चीनी या विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। आयातक को बस एक स्कैन किया हुआ पत्र जमा करना होता है, जिसमें उर्वरक का स्रोत बताया जाए। इसके बाद वह बिना किसी अतिरिक्त झंझट के पूरे देश में माल बेच सकता है।
उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO) का बोझ
उर्वरक नियंत्रण आदेश (FCO) 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत बनाया गया था। उस वक्त इसका मकसद था उर्वरकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और सब्सिडी का सही वितरण करना। तब भारत में उर्वरक उत्पादन की क्षमता कम थी, और हम आयात पर बहुत निर्भर थे। उस दौर में FCO ने अहम भूमिका निभाई। मगर अब, केंद्र और राज्य सरकारों के मिले-जुले नियंत्रण के कारण इसमें कई बदलाव हुए, जो आज की जरूरतों के साथ कदम नहीं मिला पा रहे। यह व्यवस्था अब “लाइसेंस राज” और “इंस्पेक्टर राज” की तरह काम कर रही है, जो उर्वरक क्षेत्र की तरक्की में रोड़ा बन रही है।
घुलनशील उर्वरकों पर खास असर
गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों पर लागू ये सख्त नियम घुलनशील उर्वरकों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स, दवा या रक्षा जैसे क्षेत्रों में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आयात प्रतिस्थापन’ की पहल ने अच्छा काम किया है, लेकिन उर्वरक क्षेत्र, खासकर घुलनशील उर्वरक, पीछे रह गया। बागवानी के लिए ये उर्वरक बेहद जरूरी हैं, और इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बहुत जरूरी है। मगर FCO के पुराने नियमों की वजह से भारतीय निर्माताओं को बाजार में जगह बनाने में भारी दिक्कत हो रही है। हर राज्य में दफ्तर, गोदाम और लाइसेंस की लागत, साथ ही बाजार में भागीदारों को भी यही सब दोहराने की मजबूरी, भारतीय कारोबारियों का हौसला तोड़ रही है। दूसरी ओर, चीनी कंपनियां बिना किसी नियामक बोझ के भारतीय बाजार में माल बेच रही हैं। यह असमानता ‘मेक इन इंडिया’ के मकसद को कमजोर कर रही है।
आयात की मजबूरी और उद्यमियों पर दबाव
IIM नागपुर इन्क्यूबेशन सेल के मेंटर डॉ. सुहाश बुद्धे कहते हैं, “भारत में 11.26 करोड़ टन फल और सब्जियों का उत्पादन 5 लाख टन आयातित, गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों पर टिका है। इनकी कीमतें अक्सर बढ़ जाती हैं, और कमी भी हो जाती है। सरकार की ‘आयात प्रतिस्थापन’ पहल जमीनी स्तर पर भले कुछ काम कर रही हो, लेकिन पुराने नियम उद्यमियों का गला घोंट रहे हैं। एक छोटी-सी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर 32 FCO इंस्पेक्टरों की नजर रहती है। इतनी सख्ती और उत्पीड़न से स्टार्टअप्स का मनोबल टूटता है, और हम आयात पर और ज्यादा निर्भर हो रहे हैं।”
अहमदाबाद के चैंबर फॉर एग्री इनपुट प्रोटेक्शन (CAIP) के अध्यक्ष जयंतीभाई कुंभानी कहते हैं कि दवा उद्योग सहित कोई दूसरा क्षेत्र इतने सख्त इंस्पेक्शन का सामना नहीं करता। कई बार तो एक जिले में कई इंस्पेक्टर एक उर्वरक यूनिट की निगरानी करते हैं। इससे भारतीय उद्यमियों पर अनुचित दबाव पड़ता है। वे FCO में सुधार की जरूरत पर जोर देते हैं ताकि गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़े और सब्सिडी का बोझ कम हो। महाराष्ट्र के OAMA संगठन के अध्यक्ष विजय ठाकुर भी यही चिंता जताते हैं और जल्द से जल्द नीतिगत बदलाव की मांग करते हैं।
SFIA के राष्ट्रीय सचिव विनोद गोयल एक साफ और सीधा रास्ता सुझाते हैं। वे कहते हैं, “हमें ‘एक राष्ट्र, एक लाइसेंस’ की नीति चाहिए। भारतीय निर्माताओं को भी विदेशी कंपनियों की तरह सुविधा मिलनी चाहिए, जहां एक राज्य में स्रोत जोड़कर पूरे देश में बिक्री हो सके। प्रति यूनिट इंस्पेक्टरों की संख्या दो तक सीमित हो, और गैर-सब्सिडी वाले उर्वरकों के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर एक नया कानून बने। तभी ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना सच होगा।”
आखिरी बात
उर्वरक क्षेत्र में सुधार सिर्फ खेती की आत्मनिर्भरता के लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय उद्यमियों को वैश्विक बाजार में बराबरी का मौका देने के लिए भी जरूरी है। FCO के पुराने ढांचे को आधुनिक करना और अनावश्यक नियमों को हटाना समय की मांग है। इससे न सिर्फ देसी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत उर्वरक आयात की मजबूरी से भी बाहर निकलेगा। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
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