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एचएयू ने विकसित की उच्च उपज देने वाली गेहूं की नई किस्म, जानिए इसकी विशेषतांए तथा बिजाई का उचित समय

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लेखक: जग मोहन ठाकन

05 फरवरी 2024, चंडीगढ़: एचएयू ने विकसित की उच्च उपज देने वाली गेहूं की नई किस्म, जानिए इसकी विशेषतांए तथा बिजाई का उचित समय – हिसार के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (CCSHAU) के गेहूं और जौ अनुभाग ने गेहूं की एक नई किस्म WH 1402 विकसित की है। यह किस्म विशेष तौर पर भारत के उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों के लिए विकसित की गई है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के मैदानी इलाके शामिल हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि सिर्फ दो सिंचाई व मध्यम खाद देने से ही फसल की बढि़या पैदावार मिलेगी |

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी आर कंबोज ने कहा, “विश्वविद्यालय के गेहूं और जौ अनुभाग के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नई किस्म डब्ल्यूएच 1402 विकसित की है। इस किस्म की औसत उपज 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और अधिकतम उपज 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि किसान मात्र दो सिंचाई में ही अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि अत्यधिक दोहन के कारण भूजल दिन-ब-दिन नीचे जा रहा है। अंततः यह नई किस्म कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिए वरदान साबित होगी।

बिजाई का उचित समय तथा बीज मात्रा

कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. एसके पाहुजा ने बताया कि गेहूं की इस नई किस्म डब्ल्यूएच 1402 की बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक है। इसकी बुआई के लिए आवश्यक बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म को दो सिंचाई की आवश्यकता होती है, पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद शीर्ष जड़ें निकलने के समय और दूसरी सिंचाई बुआई के 80-85 दिन बाद बालियाँ निकलने के समय आवश्यक होती है।

नई किस्म की विशेषतांए

गेहूं एवं जौ अनुभाग के प्रभारी डॉ. पवन ने बताया कि गेहूं की नई किस्म डब्ल्यूएच-1402, सौ दिन में बालियां निकाल देती है और 147 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की बालियाँ लंबी (14 सेमी) और लाल रंग की होती हैं। इस किस्म की ऊंचाई 100 सेमी होती है, जिससे गिरने का खतरा नगण्य होता है। इस किस्म का दाना मोटा होता है और इसमें 11.3 प्रतिशत प्रोटीन हेक्टोलीटर वजन (77.7 किग्रा/एच.एल.) आयरन (37.6 पीपीएम) और जिंक (37.8 पीपीएम) होता है। अतः पोषण मूल्य की दृष्टि से यह किस्म अच्छी है।

इन वैज्ञानिकों की मेहनत लाई रंग

इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों की टीम में डॉ. एमएस दलाल, ओपी बिश्नोई, विक्रम सिंह, दिव्या फोगाट, योगेन्द्र कुमार, एसके पाहुजा, सोमवीर, आरएस बेनीवाल, भगत सिंह, रेनू मुंजाल, प्रियंका, पूजा गुप्ता और पवन कुमार का अहम योगदान रहा हैं।

उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय ने पिछले 3 वर्षों में विभिन्न फसलों की 44 किस्मों का विकास और पहचान की है।

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