National News (राष्ट्रीय कृषि समाचार)

सरकार के पीछे हटने से कमजोर होगा ‘हिट एंड रन’ कानून !

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04 जनवरी 2024, नई दिल्ली(राजेश जैन): सरकार के पीछे हटने से कमजोर होगा ‘हिट एंड रन’ कानून ! – हिट एंड रन यानी किसी को टक्कर मारकर भाग जाना। दुर्घटना के ऐसे मामलों में चालक न पुलिस को सूचित करता है और न अस्पताल को। पीड़ित को मरने के लिए छोड़कर भाग जाता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक हर साल देश में हिट एंड रन के 46 हजार मामलों में 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। यदि हादसे के बाद मौके पर ही घायल की मदद की जाती है तो ऐसे 80 फीसदी घायलों की जान बच सकती है।

केंद्र सरकार ने रोड एक्सीडेंट में होने वाली ऐसी मौतों को घटाने के लिए क़ानून बनाया। इसके तहत कोई भी अगर लापरवाही से वाहन चलाकर किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनता है, घटना के तुरंत बाद किसी पुलिस या मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना दिए बिना भाग जाता है, उसे भारतीय न्याय संंहिता की धारा 106 (2) के तहत 10 साल तक की सजा हो सकती है या  7 लाख रुपये जुर्माना देना पड़ सकता है। अगर एक्सीडेंट के बाद अपराध करने वाला पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचना देता है तो उसकी सजा कम हो जाएगी। धारा-106 (1) के तहत अधिकतम 5 साल की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। तीन साल से अधिक सजा होने के कारण दोनों ही धाराएं गैर-जमानती हैं, जिनमें थाने से ड्राइवर को जमानत नहीं मिलेगी।

इस मामले में पहले कानून काफी नरम था। पुराने हिट एंड रन कानून के मुताबिक, लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण किसी व्यक्ति की मौत हो जाने पर अधिकतम दो साल की सजा का प्रावधान है। यही नहीं, आरोपी ड्राइवर को तुरंत थाने से जमानत भी मिल जाती है। अभी तक रोड एक्सीडेंट होने पर चोट लगने के मामले में धारा-337 के तहत मामला दर्ज होता है जिसमें 6 महीने की सजा और 500 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। एक्सीडेंट होने पर चोट के साथ अगर फ्रैक्चर यानि हड्डी भी टूट जाए तो धारा-338 के तहत मामला दर्ज होता है। इस केस में दो साल तक की सजा और 1000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। लापरवाही से गाड़ी चलाने पर किसी की मौत हो जाए तो धारा 304-ए के तहत मामला दर्ज होता है, जिसमें 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। पुराने कानून के तहत थाने से जमानत मिल सकती थी। एक्सीडेंट से मौत के कुछ मामलों में पुलिस धारा-304 के तहत 10 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। ऐसे मामलों में भी कोर्ट से ही जमानत मिल सकती है।

नए कानून से लोगों के मन में भय होगा और अगर कोई अनहोनी होती है तो प्रभावित आदमी उस समय मदद करने की दिशा में सोचेगा। ऐसे में सरकार के द्वारा कानून में बदलाव की पहल का स्वागत करना चाहिए था लेकिन इसके खिलाफ देशभर में ट्रक और बस ड्राइवर्स ने सोमवार से हड़ताल शुरू कर दी।

कहा गया कि कानून बनाने से पहले स्टेक होल्डर्स यानि राज्य सरकारों और ड्राइवर और ट्रकों के संगठनों के साथ पर्याप्त परामर्श नहीं किया।

पैदल यात्री या छोटी गाड़ी से टक्कर होने पर लोग एक्सीडेंट के लिए बड़ी गाड़ी के ड्राइवर को ही जिम्मेदार मानते हैं। भीड़ कई बार वाहन में आग लगा देती है जिससे गाड़ी के साथ ड्राइवर भी जल जाते हैं। दुर्घटना के बाद अगर ड्राइवर मौके से नहीं भागे तो लोग उसे पकड़कर मार देते हैं। क्या टक्कर लगने के बाद भीड़ के हाथों मरने के लिए वहां रुके।

इस कानून में उन परिस्थितियों को भी नहीं लिखा गया है जिसमें एक्सीडेंट की साइट पर खड़े रहना और पुलिस को सूचित करना अपराधकर्ता के लिए संभव नहीं हो। उदाहरण के लिए अगर अपराधकर्ता के पास मोबाइल नहीं है या उसे उग्र भीड़ से पिटने का डर है तो वो क्या करेगा। ऐसे में अगर वो दुर्घटना के बाद रुकते हैं तो भीड़ उन्हें मार डालेगी और अगर नहीं भी रुकते हैं तो सरकार मार डालेगी। दोनों ही मामलों में उनके परिवार पर संकट है।

ट्रासपोर्टरों का कहना है कि जानबूझकर कोई भी एक्सीडेंट नहीं करता है। कई बार कोहरे या मौसम संबंधी अन्य कारणों की वजह से भी एक्सीडेंट होते हैं। कई बार खस्ताहाल सड़क, आवारा जानवर अतिक्रमण आदि की वजह से एक्सीडेंट होते हैं।

राज्य और केन्द्र सरकार की इस विफलता का खामियाजा के लिए ड्राइवरों को दण्ड नहीं मिलना चाहिए। 10-15 हजार प्रतिमाह रुपये कमाने वाले ड्राइवर के लिए सात लाख रुपये का जुर्माना बहुत अधिक है। ड्राइवर के साथ समाज और सरकार की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। 

ड्राइवर के भागने पर सजा को दोगुनी करना कानून सम्मत नहीं है। इसके लिए ड्राइवर अगर मौके से भागकर नजदीक के पुलिस स्टेशन जाकर सरेंडर कर दे तो उन मामलों में जेल की सजा 5 साल से ज्यादा नहीं हो।

इसलिए बैकफुट पर आई सरकार

देश में 95 लाख ट्रक-टैंकर हैं। हड़ताल के बाद इनमें से 30 लाख से ज्यादा ट्रक-टैंकर की सेवाएं ठप हो गई थीं जिससे सप्लाई चेन बाधित होने का खतरा हो गया था। हड़ताल की वजह से कई राज्यों में पेट्रोल-डीजल, फल-सब्जी, दूध जैसी बेहद जरूरी चीजों की सप्लाई प्रभावित हुई। सरकार को आम लोगों और बड़े कारोबारियों से भी दबाव का सामना करना पड़ा। 

हड़ताल ने सरकार की छवि को भी खराब किया। देश में कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं। ऐसे में सरकार बिल्कुल नहीं चाहेगी कि किसी भी तरह से उसके खिलाफ समाज में निगेटिविटी फैले। देश और दुनिया में इस वक्त राम मंदिर की जोरो-शोरो से चर्चा है। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम काफी अहम है। चुनाव को देखते हुए सरकार किसी भी तरह से राम मंदिर पर चर्चा कम नहीं करना चाहेगी।

सरकार को यह महसूस हुआ कि ट्रक ड्राइवरों की मांगें जायज हैं। ट्रक ड्राइवरों का कहना है कि नया कानून अत्यधिक कठोर है और उनके लिए अनुचित है।

अब आगे क्या होगा

मंगलवार शाम ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के प्रतिनिधियों के साथ बात करने के बाद गृह सचिव ने ट्रक ड्राइवर्स से काम पर लौटने की अपील करते हुए कहा कि हिट एंड रन का नया कानून अभी लागू नहींं हुआ है। इसे लागू करने से पहले हम संगठन के साथ दोबारा चर्चा करेंगे। अगर सरकार कानून में संशोधन को राजी हो जाती है,  केंद्र सरकार के पास इस कानून में बदलाव के तीन रास्ते हैं…1. सरकार बोल दे कि सभी राज्य सरकारें अपने मुताबिक इस कानून में बदलाव कर सकती हैं।  2. अभी ये कानून लागू नहीं हो रहे हैं और लागू होने से पहले इस कानून में बदलाव कर दिए जाएंगे। 3.  सरकार राष्ट्रपति के जरिए अभी अध्यादेश जारी कर इस कानून मेंं बदलाव कर सकती है। बाद में बजट सत्र में प्रस्ताव के जरिए संसद को दोनों सत्रों से संंशोधन पर मुहर लग सकती है। बहरहाल, सरकार के आश्वासन के बाद ‘हिट-एंड-रन’ के नए कानून के खिलाफ हड़ताल कर रहे ट्रक ड्राइवरों ने अपना देशव्यापी प्रदर्शन वापस ले लिया है लेकिन यह सवाल बाकी है कि क्या अच्छे मकसद के साथ बनाया यह क़ानून उसी रूप में लागू हो पाएगा।

परिचय-

राजथान पत्रिका के छह संस्करणों में 27 साल लगातार रिपोर्टर से लेकर ब्यूरोचीफ और संपादन तक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया। फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार हूं।

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