राष्ट्रीय कृषि समाचार (National Agriculture News)

कचरा कृषि से कचरे के पहाड़ों पर कमाई

लेखक: प्रवेश कुमार, डा.शेष नरायन सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश-272193, E-mail: praveshkumar6470@gmail.com

16 नवंबर 2024, नई दिल्ली: कचरा कृषि से कचरे के पहाड़ों पर कमाई –

परिचय

वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बनकर उभरा है, जो आकाश, पाताल एवं पृथ्वी तीनों लोकों में फ़ैला है. आकाश लोक यानि अंतरिक्ष अनुपयोगी उपग्रहों के मलबे के कचरे, पाताल लोक यानि समुंद्र प्लास्टिक के कचरे और प्रथ्वी लोक विविध प्रकार के कचरे से पटते जा रहे हैं. भारत की बात करें तो 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी रिर्पोट के अनुसार देश में प्रति दिन लगभग 1.5 करोड़ टन ठोस कचरा उत्पन्न हो रहा है, जिसमे से केवल एक तिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुले स्थानों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिंलिंग कहते हैं. हमारे देश में कचरे की लैंडफिलिंग कचरा निष्पादन का प्रमुख तरीका है, जो बिल्कुल अवैज्ञानिक है. देश में हज़ारों लैंडफिल स्थल हैं, जहां हज़ारों टन से अधिक ठोस कचरा इकठ्ठा है, जिसमें दिल्ली की गाजीपुर, ओखला, भलस्वा, मुंबई की मुलुंड, देवनार, नागपुर की भांडेवाड़ी, अहमदाबाद की पिराना और बेंगलुरु की मंदूर लैंडफिल साइट्स ऐसी डंपिंग साइट्स हैं, जहां कचरा के बड़े बड़े पहाड़ बन चुके हैं. एक अनुमान के अनुसार देश भर में मौजूद कचरा के पहाड़ों के नीचे लगभग 15000 एकड़ जमीन दबी हुई है, जिस पर लगभग 16 करोड़ टन कचरा जमा है. देश में बढ़ते कचरा के पहाड़ जल, वायु एवं मृदा को दूषित कर पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं. कचरे के पहाड़ों को समाप्त करने के लिए सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत दश वर्ष में सैंकड़ों करोड रुपए खर्च किए, लेकिन आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार केवल 15 प्रतिशत ही कचरे के पहाड़ों  को साफ एवं  केवल 35 प्रतिशत कचरे को निष्पादित किया जा सका है. अगर इस गति और इतने खर्चे से कचरा के पहाड़ों के निष्पादन का कार्य होगा, तो शायद ये कचरे के पहाड़ कभी भी खत्म नहीं हो पाएंगे और अगर कचरे के पहाड़ खत्म भी हो जाते हैं, तो उनको खत्म करने में जो खर्चा आएगा वह शायद कचरा के पहाड़ों से होने वाले नुकसान से भी ज्यादा होगा. इसलिए मौजूदा कचरा के पहाड़ों को साफ़ करने की व्यवस्था के साथ-साथ कचरे के पहाड़ों पर कचरा कृषि करने की कार्य योजना बनाई जाए, क्योंकि देश में मौजूद ज्यादातर कचरा के पहाड़ों में औसतन 50 प्रतिशत से अधिक जैवनिम्नीकरणीय कचरा है, इसलिए कचरे के पहाड़ों पर कचरा कृषि संभव हो सकती है.

कचरा कृषि:

कचरा कृषि तकनीक पर्यावरण हितैषी, आर्थिक रूप से सस्ती और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तकनीकी है. कचरा कृषि तकनीक में कचरे के पहाड़ों पर कृषि करते हैं, जिसमें सजावटी पौधों, फूलों, औषधीय पौधों और हरी खाद की खेती के साथ-साथ बड़े पेड़-पौधों और झाड़ियों को भी उगाते हैं. कचरा कृषि में अनाज, दलहन एवं तिलहन की फसलें, फल एवं सब्जियों की खेती नहीं करते हैं. क्योंकि कचरे के पहाड़ों में जहरीला कचरा भी मौजूद होता है, जैसे भारी धातुएं और जैव-रासायनिक प्रक्रिया से बहुत सारे जहरीले रसायन उत्पन्न होते हैं, जो उगाए गए पौधों में संचित हो जाते हैं. और यदि इन पौधों के किसी भी भाग का उपभोग पशुओं या मनुष्य द्वारा किया जाता है, तो ये जहरीले तत्व पौधों  के माध्यम से मनुष्य एवं पशुओं के शरीर में जाकर गंभीर स्वस्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं. कचरे के पहाड़ों पर कृषि करने के लिए सर्वप्रथम कचरे के पहाड़ों को सीढ़ी नुमा खेत में बदलते हैं, जिसमें सीढ़ी का ढाल अंदर की ओर रखते हैं, जिससे कचरे के पहाड़ से निकलने वाला जहरीला तरल पदार्थ लिचेट बहकर पहाड़ के बाहर न जाए. इसके बाद सीढ़ी नुमा कचरे के खेत में न सड़ने वाला कचरा जैसे पॉलिथीन, प्लास्टिक और धातु के कचरे को लगभग 30 सेमी गहराई की परत से छांटकर निकाल देते हैं. और बचे कचरे को महीन कर लेते हैं. इसके बाद खेत की उपजाऊ मिट्टी में अवश्यकता अनुसार गोबर या केचुए या कंपोस्ट खाद और उर्वरकों को मिलाकर सीढ़ी नुमा कचरे के खेत में अच्छी प्रकार से मिला देते हैं, यदि नमी न हो तो पानी का छिड़काव कर कचरे को नम कर देते हैं. इसके बाद सीढ़ी नुमा खेत में नर्सरी में तैयार पौधों का रोपण करते हैं. ध्यान रहे कचरा कृषि में बीजों को सीधे कचरे के खेत में बुवाई नहीं करते, क्योंकि कचरे में बीजों का जमाव ठीक से नहीं हो पाता है, इसलिए पौधों को नर्सरी में तैयार कर रोपण करते हैं. लेकिन जिन पौधों या फसलों की नर्सरी तैयार करना कठिन होता है, ऐसे फसलों के बीजों की बुवाई करते हैं, जैसे हरी खाद की फसलें; ढैंचा, सनई आदि. कचरे के सीढ़ी नुमा खेतों में बड़े पेड़-पौधों  को लगाने के लिए चिन्हित स्थानों पर एक मीटर लंबाई, चैड़ाई और गहराई के गढ्ढे खोदकर उनका कचरा बाहर निकाल देते हैं, और फिर उनमें मिट्टी और सड़ी गोबर की खाद के तैयार मिश्रण को गड्ढे में भर कर पौधों का रोपण कर देते हैं. पौधों का रोपण वर्षा ऋतु में करते हैं, जिससे पौधों को पानी देने की आवश्यकता ना पड़े और पौधों की वृद्धि भी अच्छी हो सके. पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए अवश्यकता अनुसार ड्रोन, स्प्रिंकलर या ड्रिप विधि से सिंचाई करते हैं, और साथ ही साथ कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबंधन का भी कार्य करते रहते हैं.

कचरा कृषि के लाभ:

  • कचरा के पहाड़ों पर कचरा कृषि करने से कचरे के दुर्गंध युक्त पहाड़ों को बिना खत्म किए हरित क्षेत्र में परिवर्तित किया जा सकता है.
  • गर्मियों के दिनों में कचरे के पहाड़ों में आग लगने की समस्या का भी समाधान हो जाएगा.
  • कचरा के पहाड़ों से निकलने वाली बदबूदार दुर्गंध फूलों की सुगंध में परिवर्तित होकर आसपास के वातावरण को शुद्ध करेगी.
  • कचरे के पहाड़ों से उड़ने वाली धूल धक्कड़ पर भी नियंत्रण होगा.
  • पहाड़ों पर कचरा कृषि करने से आसपास का वातावरण स्वच्छ रहेगा, तो पहाड़ों के आस-पास की बस्तियों के लोगों में बिमारियों का खतरा भी कम होगा.
  • कचरा कृषि से कचरा के पहाड़ों के आस पास के लोगों को रोजगार और आय सृजन के अवसर भी उपलब्ध होंगे.
  • लंबे समय तक कचरा के पहाड़ों पर कृषि करते रहने पर कचरे के पहाड़ धीरे-धीरे अपघटित होकर समतल खेत में बदल जाएंगे। क्योंकि कचरे के पहाड़ों पर कचरा कृषि करने से पेड़-पौधों की जड़ों के माध्यम से वर्षा एवं सिंचाई का पानी पहाड़ के अन्दर तक कचरे को गीला रखेगा, जिससे कचरे का अपघटन तेज होगा और साथ ही साथ पेड़-पौधों की जड़ों में उपस्थित असंख्य सूक्ष्म जीव कचरे को सड़ाने में सहायक होगें और पेड़-पौधों की जड़ों से निकलने वाले विभिन्न प्रकार के अम्ल कचरे को गलाने एवं सड़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, इसलिए कचरे के पहाड़ धीरे-धीरे विघटित एवं अपघाटित होकर जमीदोज़ हो जाएंगे.

मौजूद कचरे के पहाड़ों को ख़त्म करने के कार्य के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर ही कचरे के निष्पादन की कार्ययोजन पर कार्य किया जाए, जिससे भविष्य में नए कचरे के पहाड़ अस्तित्व में न आ सकें.    

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