दूसरी हरित क्रांति के लिए कृषि प्रशिक्षित छात्रों को आगे आना होगा : श्री सिंह
नई दिल्ली। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि देश में दूसरी हरित क्रांति लाने के लिए कृषि में प्रशिक्षित छात्र-छात्राओं को आगे आना होगा और उन्हें अपना अर्जित ज्ञान और कौशल कृषि एवं किसान कल्याण को समर्पित करना होगा। श्री सिंह ने यह बात गत दिनों भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के 55वें दीक्षांत समारोह में कही।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि दिल्ली में पूसा संस्थान की उपस्थिति के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे पड़ोसी राज्यों में कृषि का निरंतर विकास हुआ है और यही कारण है कि देश में पूसा के अलावा दो और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, झारखण्ड और असम में खोले जा चुके हैं, जिससे पूरे देश में कृषि का समग्र विकास हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस संस्थान द्वारा विकसित प्रजातियों के प्रचलन में आने से देश की कृषि व्यवस्था में सार्थक एवं गुणात्मक परिवर्तन देखने को मिला है। जहाँ पहले खाद्यान्न के लिए दूसरे देशों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था वहीं आज हम खाद्यान्न आपूर्ति कर दूसरे देशों की मदद कर रहे हैं। कृषि मंत्री ने इस उपलब्धि के लिए देश के कृषि वैज्ञानिकों, विशेषकर इस संस्थान के वैज्ञानिकों की सराहना की।
श्री सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित गेहंू की किस्मों को 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाकर, 50 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया जा रहा है। लगभग 1 लाख करोड़ रुपयों के कृषि निर्यात में बासमती चावल का योगदान लगभग 22 हजार करोड़ का है जिसमें पूसा संस्थान द्वारा विकसित किस्मों का योगदान लगभग 90 प्रतिशत है। वर्ष 2016 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने चावल, गेहूँ, सरसों एवं दलहनी फसलों की कुल 11 प्रजातियों को विकसित किया है। संस्थान द्वारा विकसित कनोला गुणवत्ता वाली सरसों की प्रजाति पूसा डबल जीरो सरसों 31, देश की पहली उच्च गुणवत्ता वाली किस्म है जिसमें तेल में पाये जाने वाले ईरुसिक अम्ल की मात्रा 2 प्रतिशत से कम तथा खली में पाये जाने वाली ग्लूकोसिनोलेट्रस की मात्रा 30 पी.पी.एम. से कम है जो कि मानव एवं पशु स्वास्थ्य के अनुकूल है। श्री सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने एक ऐसी नवीन, पर्यावरण अनुकूल और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी अपशिष्ट जल उपचार प्रौद्योगिकी विकसित की है जिससे 1 प्रतिशत से भी कम ऊर्जा व 50-60 प्रतिशत कम पूंजी और परिचालन लागत से मल-जल को आसानी से प्रदूषणहीन कर उसे कृषि उपयोगी बनाया जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले समय में जल की कमी व अपशिष्ट जल से हमारी मृदा, भूजल एवं खाद्य में होने वाले प्रदूषण को रोकने में यह कारगर साबित होगा। इस अवसर पर भा.कृ.अ.प. के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र सहित कई वैज्ञानिक उपस्थित थे।
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