आत्मनिर्भर भारत कृषि क्रांति का नया सोपान
आत्मनिर्भर भारत कृषि क्रांति का नया सोपान
सब कुछ थम गया कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों में शहर थम गए, रेल रुक गई, हवाई जहाज नहीं उड़े, पर जो नहीं ठहरा, वह भारत का किसान था। देश का मेरुदंड बनकर तना हुआ खड़ा था। कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में रबी की फसल पककर कटने को तैयार थी। किसी विद्वान ने कहा है कि ‘दुनिया में सारी चीजें प्रतीक्षा कर सकती है, पर कृषि नहीं’। ये काम नियत समय पर ही होना था। भारत सरकार ने भी इसकी अनिवार्यता जानते हुए लॉक डाउन में सबसे पहले खेती से जुड़े कामों को करने की रियायत दी। पर केवल बंधनों में छूट देने पर ही नहीं रुकी सरकार।
कृषक और कृषि की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार राहत का पैकेज लाई। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी केवल 15 प्रतिशत है पर भारत की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। यह असंख्य भारतीयों की आजीविका ही नहीं, जीवन जीने की शैली है, जिंदगी जीने का तरीका है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने इस कठिन वक्त का डटकर मुकाबला करने वाले कृषकों के लिए राहतों की पोटली में डेढ़ लाख करोड रुपए की योजनाएं प्रस्तुत की। आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में तीसरी कड़ी के इस ग्यारह सूत्रीय पैकेज में समग्र रूप से किसान की आमदनी बढ़े, कृषि क्षेत्र में निवेश आए, एकीकृत खेती का विस्तार हो और सबसे महत्वपूर्ण कारक मुक्त कृषि व्यापार, मुक्त कृषि बाजार के साथ प्रसंस्करण विपणन पर जोर दिया गया।
भारतीय कृषि में जो नीतिगत सुधारों की मांग दीर्घकाल से की जा रही थी, वह उपाय आत्मनिर्भर भारत के इस पैकेज में शामिल होने से कृषि से जुड़े विभिन्न हित धारकों में सकारात्मक उम्मीद जगी है। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के जरिए खेती में बुनियादी सुविधाओं, संरचनाओं को मजबूत करने के लिए एक लाख करोड़ का फंड रखा गया है। हालांकि 20 लाख करोड रुपए के कुल पैकेज की तुलना में यह केवल 5 प्रतिशत ही है। परंतु उम्मीद है इससे फसलों के भंडारण के लिए वेयरहाउस- साइलो निर्माण, कोल्ड स्टोरेज, परिवहन सुविधाओं की स्थापना में तेजी आएगी। कृषि से जुड़ी संस्थाओं ,पैक्स,एफपीओ को बढ़ावा मिलेगा। अभी भंडारण क्षमता में कमी, परिवहन सुविधाओं के अभाव में किसानों के विकल्प सीमित हो जाते हैं और उन्हें अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता है।
पैकेज की दूसरी पायदान फूड प्रोसेसिंग इकाइयों को कलस्टर अप्रोच के माध्यम से मजबूत करने के लिए 10 हजार करोड रुपए का प्रावधान इस असंगठित उद्योग को स्थानीय स्तर पर अपनी क्षमता बढ़ाने और किसानों की आय में बढ़ोतरी कर सकता है। वित्त मंत्री के मुताबिक देश की लगभग दो लाख छोटी फूड प्रोसेसिंग इकाइयों को अपना सिस्टम अपग्रेड करने, ब्रांड निर्माण में मदद करेगा। उम्मीद है इस कड़ी में मध्य प्रदेश के आगर मालवा -छिंदवाड़ा के संतरे, निमाड़ की मिर्च ,मंदसौर के लहसुन क्षेत्र को भी तवज्जो मिलेगी। प्रसंस्करण इकाइयों के अभाव में किसानों को शीघ्र नष्ट होने वाली फसलों को औने-पौने दामों पर बेचना पड़ता था।
भारत में पशुपालन खेती का महत्वपूर्ण अंग है, चोली दामन का साथ है। पशुधन को कृषक जन अपने परिवार का विस्तार ही मानते हैं। खेती के इस महत्वपूर्ण खंड के लिए केंद्र सरकार ने इस पैकेज में 13343 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है और 53 करोड पशुओं के टीकाकरण, रोग नियंत्रण का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम बनाया है। इस योजना में पशुओं के मुंहपका- खुरपका घातक रोगों का भी नियंत्रण होगा। मध्यप्रदेश के संदर्भ में राज्य के 4 करोड़ पशुओ की भी दशा सुधरेगी। इसी प्रकार चौथे पायदान पर पशु पालन अधोसंरचना विकास निधि के 15 हजार करोड़ रुपए से इस क्षेत्र में डेयरी विकास, दुग्ध प्रसंस्करण, दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी, मूल्य संवर्धन जैसी गतिविधियां बढ़ेंगी और निजी क्षेत्र का निवेश भी आकर्षित होगा। ग्रामीण भारत की दो तिहाई आबादी को पशुपालन से रोजगार मिलता है। छोटे किसानों की अतिरिक्त आय का यह एक महत्वपूर्ण अंग है। देश प्रदेश में टुकड़ों टुकड़ों में हो रहे इस व्यापार को अमूल जैसी दुग्ध क्रांति सरीखी एक नई दिशा मिल सकती है। बशर्ते सरकार का समर्थन और उद्यमियों का प्रयास इस दिशा में गंभीर और सतत हो।
औषधि खेती को बढ़ावा देना समय की मांग है। कोविड-19 में जिस प्रकार देशवासियों का रुझान देशी नुस्खों जड़ी बूटियों की ओर बढ़ा है, औषधीय फसलों की मांग बढऩे वाली है। अश्वगंधा, सफेद मूसली, हरड़, सनाय, सर्पगंधा जैसी फसलों को बाजार में अच्छे दाम मिलेंगे तो इनका रकबा स्वत: बढऩे लगेगा। पैकेज के 4 हजार करोड़ रुपए के साथ 10 लाख हेक्टेयर तक क्षेत्रफल को विस्तार मिलेगा ,जो स्वस्थ उम्मीद जगाता है।
मछली पालन करने वालों की बेहतरी और मछली व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना में 20 हजार करोड़ रुपए रखे गए हैं। इसमें बुनियादी सुविधाओं का आधुनिकीकरण, निर्माण, बाजार, परिवहन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। नीली क्रांति की दिशा में यह महत्वपूर्ण है।
सरकार की पूर्व योजना ऑपरेशन ग्रीन्स का विस्तार करते हुए ञ्जह्रक्क से ञ्जह्रञ्ज्ररु कर दिया गया है।इसके लिए 500 करोड़ रुपए रखे गए हैं परंतु प्रथम दृष्टया यह नाकाफी लगते हैं। इसमें टमाटर से टिंडे तक, आलू से आम तक सभी फल सब्जियों को शामिल किया गया है। इस योजना में परिवहन, कोल्ड स्टोरेज पर 50 प्रतिशत सब्सिडी है। भारतीय किसान की विडंबना है कि भरपूर उपज आने पर दाम कम मिलते हैं, मंडी में माल पहुंचाना दुश्वार होता है ,खेतों में ही सब्जियां सड़ जाती हैं इस ऑपरेशन ग्रीन्स से किसान की यह पीड़ा कम होने के आसार दिख रहे हैं।
बीस लाख मधुमक्खी पालकों की आमदनी में बढ़ोतरी के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान भी पैकेज में है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2016 में शुरू की गई ‘मीठी क्रांति को इससे अधिक गति मिलेगी ,और किसानों की आय भी बढ़ेगी। शहद निर्यात की भी असीम संभावनाएं हैं और प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की दर से इसके बाजार का विस्तार हो रहा है।
1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। परंतु इंस्पेक्टर राज के चलते यहां व्यापारियों में आतंक का पर्याय बन गया था, जिसका प्रतिफल उपभोक्ताओं को भी भुगतना पड़ता था। नीति आयोग ने भी विभिन्न कृषि उत्पादों को इस अधिनियम से बाहर करने की पैरवी की थी। केंद्र सरकार के पैकेज की नवीं पायदान पर ईसीए में बदलाव का प्रस्ताव कृषि उपज का व्यापार करने वालों में नया उत्साह भर सकता है।
अनाज, खाद्य तेल, दलहन के भंडारण ,विपणन पर प्रतिबंध हटेंगे। परिणाम स्वरूप प्रसंस्करण, भंडारण के क्षेत्र में निजी निवेश भी बढ़ेगा कृषि उत्पादों की संचालन लागत में कमी आएगी। किसान बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच अपनी फसल को समय आने पर लाभकारी कीमतों पर बेच सकता है। अभी भंडारण की समस्याओं को लेकर किसान हमेशा आशंकित रहता है। अब माल के परिवहन में भी आसानी होगी।
कृषि जिंसों की बिक्री के लिए किसानों को मंडी परिसर में लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने पड़ती थी जो किसानों के हित में नहीं थी। बाजार के चक्रव्यूह और आढ़तियों के चंगुल से किसानों को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने मंडी नियमों में संशोधन की बात कही है। देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर यह स्वागत योग्य है। पिछले 20 वर्षों से यह सुधार जमीन पर उतर आएंगे तो किसान की मुस्कुराहट समय बढ़ जाएगी। आपदा किन परिस्थितियों में किसानों के हित में मंडी एक्ट में संशोधन एक बड़ा किसान हितेषी कदम है इसके अनुरूप सभी राज्यों में मंडी टैक्स में भी समानता हो तो कृषि आधारित प्रोसेसिंग उद्योग को राहत मिलेगी। वैसे मध्यप्रदेश में यह प्रस्तावित संशोधन हाल ही में राज्य शासन ने लागू कर दिए हैं।
किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए अनेक विकल्प देने के लिए पैकेज का अंतिम और 11 वें सूत्र एक केंद्रीय कानून बनाया जाएगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में किसानों को अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता होगी। ई-ट्रेडिंग को बढ़ावा मिलेगा। किसान को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि के साथ जोडऩे के लिए इस कानूनी फ्रेमवर्क की सार्थकता से किसान मजबूत होगा और उम्मीद है कि प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप आत्मनिर्भर होगा, गांव समृद्ध होंगे।
किसानों के सरोकार और उनकी संवेदनाओं से जुड़े इस राहत पैकेज ने कृषि क्षेत्र में भावी विकास की गुलाबी तस्वीर रची है। किसान के सपनों को साकार करने उनकी मुश्किलों को कम करने राहत के ये श्वेत अश्व अपना लक्ष्य कब हासिल करते हैं यह भविष्य के गर्भ में है। इस पैकेज का विस्तृत रोड मैप भी सरकार शीघ्र जारी कर दे तो विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को अपनी भविष्य की रणनीति बनाने में मदद मिलेगी किसानों के लिए दिए गए 11 सूत्री पैकेज के अंतिम तीन बिंदु महत्वपूर्ण है जो देश की कृषि विपणन नीति को दीर्घकाल तक प्रभावित करेंगे।
किसान की समस्या उत्पादन नहीं विपणन है। ईसीए, मंडी नियमों में संशोधन, किसानों के लिए केंद्रीय कानून ,यदि यह प्रस्ताव परिवर्तन की मूल भावना के साथ दिल्ली से चलकर दलौदा तक लागू हो गए तो देश के कृषि परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव होगा और यह कदम सरकार के गेम चेंजर होंगे।
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