बजट-2020-21 पर प्रतिक्रिया
16 सूत्रीय प्लान से बढ़ेगी आयकेन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने केंद्र सरकार के बजट 2020-21 की सराहना करते हुए कहा है कि इस बजट में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने आम जनता के साथ ही किसानों सहित देश के ग्रामीणों की भलाई को प्राथमिकता पर रखा है। नए दशक के पहले बजट से देश में इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल बिछेगा व चहुंमुखी विकास होगा तथा 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डालर की भारतीय अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने की प्रतिबद्धता दोहराते हुए 16 सूत्रीय प्लान बनाया गया है। 1.60 लाख करोड़ रू. कृषि एवं किसान कल्याण के लिए तथा 1.23 लाख करोड़ रू. ग्रामीण विकास मंत्रालय हेतु बजट प्रावधान किया गया है। श्री तोमर ने कहा कि हमारी सरकार गांव, गरीब व किसानों पर पहले से ही विशेष ध्यान दे रही है एवं इस बजट में इन सबके लिए और अधिक सुविधाएं जुटाने के प्रावधान करने से पुन: यह सिद्ध हो गया है कि मोदी सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के ध्येय पर तन्मयता से काम कर रही है। बजट प्रावधानों से एक भारत- श्रेष्ठ भारत की झलक साफतौर से मिलती है। महिलाओं व मध्यम वर्ग सहित समाज के सभी वर्गों के लिए राहत भरा बजट है। स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास,स्वच्छ जल जैसे अहम क्षेत्रों के लिए भी पूरा ध्यान सरकार ने रखा है। हार्टीकल्चर को बढ़ावा देगी सरकार 21वीं शताब्दी के तीसरे दशक का पहला केन्द्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने दूर-दराज तक पहुंचने वाले अनेक सुधारों की शुरुआत की, जिनका उद्देश्य लघु अवधि, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक उपायों से भारतीय अर्थव्यवस्था को ऊर्जावान बनाना है। श्री तोमर ने बताया कि देश के करोड़ों किसानों के हितों के लिए भारत सरकार द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही है और वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में भी ज्यादा प्रावधान कर धनराशि रखी गई है। कुल 2.83 लाख करोड़ रू. कृषि से जुड़ी गतिविधियों, सिंचाई और ग्रामीण विकास पर खर्च किए जाएंगे। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम- किसान) से किसानों को काफी लाभ हुआ है। अन्नदाता किसानों को ऊर्जादाता बनाने की दिशा में बंजर जमीनों पर सौर ऊर्जा के प्लांट लगाने के साथ ही पंप सेट को सौर ऊर्जा से जोडऩे पर और भी काम केंद्र सरकार करेगी। इसके लिए 20 लाख किसानों को सोलर पंप लगाने में सरकार मदद करेगी। सरकार 15 लाख अन्य किसानों को ग्रिड कनेक्टेड पंप देगी। सौर ऊर्जा जनरेशन भी बढ़ाया जाएगा। किसानों के पास खाली या बंजर जमीन है तो वे सौर ऊर्जा जनरेशन यूनिट्स लगा सकेंगे ताकि वे वहां से पैदा होने वाली सौर ऊर्जा को बेच सकें। कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु केंद्र सरकार द्वारा तैयार किए गए मॉडल कानूनों को लागू करने हेतु राज्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा। सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि पर भी सरकार का फोकस है। बजट में यह बात खासतौर से ध्यान में रखी गई कि किसानों के जीवन को आसान बनाया जाएं। कृषि उत्पाद जल्द बाजार पहुंचे, इसका खास इंतजाम किया गया है। रेलवे द्वारा दूध, मांस, मछली के परिवहन के लिए किसान रेल चलाई जाएगी। वहीं, एविएशन मिनिस्ट्री के जरिए कृषि उड़ान की शुरुआत होगी। इससे नॉर्थ-ईस्ट और आदिवासी इलाकों से कृषि उपज को बढ़ावा दिया जाएगा। हॉर्टीकल्चर क्षेत्र को सरकार क्लस्टर में बांटकर हर जिले में एक उत्पाद को बढ़ावा देगी। इसकी नई स्कीम लाई गई है। दूध उत्पादन क्षमता 2025 तक दोगुना से ज्यादा बढ़ाने हेतु प्रावधान किया है। दीनदयाल अंत्योदय योजना के अंतर्गत 58 लाख स्वयं सहायता समूह बन चुके हैं, जिनकी संख्या बढ़ाते हुए इनसे ज्यादा महिलाओं को जोड़ेंगे जो कि बीज संग्रहण भी करेगी। इस तरह धनलक्ष्मी धान्य लक्ष्मी बन सकती है। वर्तमान भण्डार गृहों की मैपिंग एवं जियो टैगिंग की जाएगी तथा भंडारण आवश्यकताओं का आकलन कर नए भंडार गृहों का निर्माण किया जाएगा। |
खेती पर खर्च बढ़ाने की जरूरतकृषि क्षेत्र के लिए सरकार ने 16 सूत्रीय विकास मॉडल पेश किया है। शब्दों के स्तर पर देखें तो कृषि पर पर्याप्त शब्द खर्च हुए हैं। लेकिन जहां तक कृषि संबंधी बजट के आंकड़ों का सवाल है, तो स्थिति संतोषजनक नहीं लगती है। इस बार किसानों को बहुत उम्मीदे थीं, सरकार ने भी बार -बार यह कहा था कि किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, लेकिन अब सरकार ने कहा है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। ज्यादातर आवंटनों को देखें तो संकेत अच्छे नजर नहीं आते। कुल मिलाकर कृषि के विभिन्न मदों में पिछली बार जो धन आवंटित हुए थे, उतने खर्च नहीं हो पाए हैं। मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के लिए 3,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे लेकिन 2010 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं। फसल बीमा योजना के लिए किया गया आवंटन भी कम हुआ है। बीमा पर खर्च बढऩा चाहिए था क्योंकि ऐसी शिकायत आती रही है कि किसानों को वाजिब क्षतिपूर्ति भी नहीं मिल पा रही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना में पिछले साल 75 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान था लेकिन 54,370 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं। इस मद में इस बार भी उतनी ही राशि का प्रावधान रखा गया है। फसल विज्ञान अनुसंधान के लिए भी राशि नहीं बढ़ाई है। पिछली बार 702 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे और खर्च केवल 535 करोड़ रुपये हुए हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में 2, 682 करोड़ रुपये का प्रावधान था। इस बार 1,127 करोड़ का प्रावधान किया गया है। पिछला आवंटन खर्च नहीं हो पाया है। हरित, श्वेत और नीली क्रांति की चर्चा बजट में की गई है। हरित क्रांति आसान नहीं होगी। किसानों को उनके उत्पाद के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं। लागत बढ़ी, फसल के दाम घटे सरकार ने वादा किया था कि सी-2 लागत में पचास प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करेगी। ऐसा नहीं हुआ, सरकार ने लागत का लेवल घटा दिया, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य का उसका वादा पूरा नहीं हो सका। जहां तक नीली क्रांति (मत्स्य और जल-जीव पालन) की बात है, पिछली बार कुल आवंटन 560 करोड़ रुपये था, लेकिन खर्च 455 करोड़ रुपये ही हुए। एक और बात पिछले तीन साल से लगातार आर्थिक प्रगति दर कम होती जा रही है। जिसका एक मुख्य कारक यह है कि औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के उत्पादों की मांग बाजार में नहीं है। मांग इसलिए नहीं है क्योंकि उनकी 46 प्रतिशत मांग ग्रामीण क्षेत्र से आती है और ग्रामीण क्षेत्र की क्रय शक्ति लगातार घटती जा रही है। किसानों के उनके उत्पादों से होने वाला लाभ लगातार कम हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में कृषि से इतर जो व्यवसाय है, वे भी बैठ रहे हैं। मैं खुद किसानी करता हूं। साल 2013 में 1121 बासमती के लिए मुझे 4,800 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला था। 2014 में यह भाव 3,500 रुपये हो गया। 2015 में 2,700 रुपये, 2016 में 2,400 रुपये, 2017 में 2,400 रुपये, 2018 में 3,300 रुपये हुआ और इस वर्ष मंैने अपना वही धान 2,650 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बेचा है। अगर आप तुलना करें तो महंगाई बढऩे के बावजूद किसानों की कमाई घटी है। दाल, मोटे अनाज हों या नकदी फसलें इनके दाम पिछले वर्षों में बढ़ नहीं रहे हैं, जबकि लागत बढ़ती जा रही है। बिजली की दर बढ़ी है, खाद के दाम बढ़े हैं। हर बजट से किसान की दो अपेक्षाएं रहती हैं। एक, ऐसी योजना वा घोषणा जो सारे भारत को आच्छादित करती। समयबद्ध, लक्ष्यबद्ध योजना बननी चाहिए। मगर इस दिशा में कदम बढ़ाने की बात बजट में दिखाई नहीं देती। समर्थन मूल्य के अनुरूप किसानों को लाभ नहीं हो रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में धान समर्थन मूल्य से 600 से 800 रुपये कम में बिक रहा है। श्वेत क्रांंति की बात करें, तो तीन साल से दूध का दाम घटता जा रहा है। महाराष्ट्र में आंदोलन हुए उत्पादकों ने दूध सड़कों पर फेंक दिया। आज गाय के दूध के लिए किसानों को प्रति लीटर 18 से 26 रुपये का भुगतान हो रहा है, जबकि गाय के भोजन-पानी पर ही 26 रुपये खर्च हो जाते हैं। बाजार में दूध भले ही पचास रुपये या उसके पार बिक रहा है, लेकिन इसक लाभ दुग्ध उत्पादकों को नहीं मिल रहा है। सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया है। बजट ने किसानों को ज्यादा खुशी नहीं दी है। |