चावल-गेंहू फसल प्रणाली का विपरीत प्रभाव
05 जून 2023, नई दिल्ली: चावल-गेंहू फसल प्रणाली का विपरीत प्रभाव – भारत में चावल-गेहूं फसल प्रणाली को बढ़ावा देने के माध्यम से 1960 के दशक की हरित क्रांति द्वारा खाद्य सुरक्षा को संभव बनाया गया था। इस उल्लेखनीय क्रांति ने भारत को जहाजों के माध्यम से होने वाले आयात निर्यात की स्थिति से बाहर निकालकर आत्मनिर्भर बनाया हैं और यहां तक कि अधिशेष उत्पादन के निर्यात परिवर्तन में जबरदस्त मदद की हैं। सरकारी और निजी क्षेत्रों के समर्थन से एमएसपी पर सुनिश्चित सार्वजनिक खरीद के साथ-साथ सिंचाई, गुणवत्तापूर्ण बीज, उर्वरक और कीटनाशकों सहित उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी आदानों का निर्माण किया गया। परिणामस्वरूप, खाद्य उत्पादन 1960-61 में 82.02 मिलियन टन से लगभग 4 गुना बढ़कर 2022-23 में 330.5 मिलियन टन हो गया।
चावल-गेंहू फसल प्रणाली के प्रभाव
⦁ गेहूं और चावल के क्षेत्र में वर्ष 2018 तक 84 प्रतिशत का विस्तार हुआ हैं।
⦁ अत्यधिक जल निकासी के कारण भूजल की कमी हुई हैं।
⦁ बिजली की खपत में वृद्धि हुई हैं।
⦁ बिजली आपूर्ति के लिए सरकार द्वारा सब्सिडी में वृद्धि की गई हैं।
⦁ चावल-गेंहू फसल प्रणाली के प्रभाव से मृदा का स्वास्थ्य का बिगड़ रहा है।
⦁ भूजल प्रदूषण के स्तर में वृध्दि हुई हैं।
⦁जीएच उत्सर्जन और पराली जलाने के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण हो रहा हैं।
⦁अतिरिक्त खाद्य उत्पादन ने भंडारण की समस्या पैदा की और सरकारी धन को अवरुद्ध कर दिया।
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