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देश में प्रति टन फसल उत्पादन में 2-3 गुना अधिक पानी का होता हैं उपयोगः प्रो रमेश चन्द

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23 मार्च 2024, नई दिल्ली: देश में प्रति टन फसल उत्पादन में 2-3 गुना अधिक पानी का होता हैं उपयोगः प्रो रमेश चन्द – नीति आयोग के प्रोफेसर रमेश चंद का कहना है कि कई विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में प्रति टन फसल के उत्पादन में  2-3 गुना अधिक पानी का उपयोग होता है।

प्रो. चंद ने कहा कि कृषि क्षेत्र सिंचाई परियोजनाओं में संसाधनों की बर्बादी, फसल के गलत तौर-तरीकों, खेती-बाड़ी की गलत तकनीकें और चावल जैसी ज्यादा पानी इस्तेमाल करने वाली एवं बिना मौसम वाली फसलों पर जोर से समस्या विकराल होती जा रही है। समस्या का तुरंत समाधान करने की आवश्यकता है, जिसके लिए सटीक खेती और आधुनिक तकनीकों को अपनाने की जरूरत है. खासतौर पर कम पानी वाली फसलों पर जोर देना होगा।

भौगोलिक स्थितियों के अनुसार खेतीबाड़ी को बढ़ावा देने की जरूरत

“भारत कई विकसित और विकासशील देशों की तुलना में 1 टन फसल पैदा करने के लिए 2-3 गुना अधिक पानी का उपयोग करता है। खेती का रकबा बढ़ा है, लेकिन ज्यादातर रबी फसलों का, जब बारिश न के बराबर होती है। इसे बदलने की जरूरत है और राज्य सरकारों को विशेष रूप से स्थानीय पर्यावरण और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने की जरूरत है।” यह बात नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद, धानुका समूह द्वारा विश्व जल दिवस 2024 के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में मुख्य भाषण देते हुए कही।

देश में सिंचाई परियोजनाओं पर अरबो रुपये खर्च

वर्ष 2015 से पहले देश के सिंचाई बुनियादी ढांचे की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए, प्रोफेसर रमेश चंद ने आगे कहा, “1995 और 2015 के बीच, छोटे-बड़े सभी तरीके के सिंचाई परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च हुए, लेकिन सिंचित जमीन उतनी ही रही। इसमें बड़े बदलाव की आवश्यकता थी और 2015 से केंद्र सरकार ने स्थिति के आंकलन कर तंत्र को बदला दिया। परिणामस्वरूप, पिछले कुछ वर्षों से से सिंचित भूमि हर वर्ष 1% बढ़ते हुए 47% से 55% हो गई है।”

अधिक क्षेत्र में कैसे होगी सिंचाई

उतना ही पानी इस्तेमाल कर कम निवेश में सिंचित भूमि में वृद्धि करने पर जोर देते हुए भारत सरकार में कृषि आयुक्त डॉ पी के सिंह ने कहा,“जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से हम जमीन के ऊपर के पानी के बेहतर उपयोग के तरीकों पर काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक नहर का पानी वर्तमान में 100 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित कर रहा है, तो हम विभिन्न साधनों का उपयोग करके समान मात्रा में पानी का उपयोग करके इसे 150 हेक्टेयर तक कैसे ले जा सकते हैं।

आईसीएआर के उप महानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ. आर सी अग्रवाल ने कृषि क्षेत्र में पानी के सही उपयोग के बारे में किसानों और युवाओं को शिक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हम एक पाठ्यक्रम डिजाइन कर रहे हैं जो उन्हें कृषि क्षेत्र में पानी के उपयोग के बारे में जागरूक करेगा और समाधान प्रदान करेगा।”

आधुनिक तकनीकों के उपयोग से बचेगा पानी

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए धानुका समूह के चेयरमैन आरजी अग्रवाल ने कृषि कार्यों में आधुनिक तकनीकों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि “लगभग 70% पानी का उपयोग कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है। ड्रोन, स्प्रिंकलर, ड्रिप सिंचाई और जल सेंसर जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता को काफी कम करने में मदद मिलेगी। इससे पानी की बर्बादी को काफी हद तक कम करने में भी मदद मिलेगी।”

पंचायत स्तर पर मौसम स्टेशन स्थापित होने से भी बचेगा पानी

ड्रोन एप्लिकेशन का उदाहरण देते हुए श्री आर.जी. अग्रवाल ने आगे कहा, “ड्रोन के माध्यम से 1 एकड़ भूमि पर कीटनाशक स्प्रे के लिए पारंपरिक विधि में 200 लीटर के मुकाबले लगभग 10 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पानी की बचत आधुनिक तकनीकों का बड़ा सौजन्य है। पंचायत स्तर पर मौसम स्टेशन स्थापित करने से भी पानी की आवश्यकताओं को काफी हद तक कम करने में मदद मिलेगी।

इज़राइल जैसे देश पहले ही आधुनिक सिंचाई प्रणाली सहित सटीक कृषि के लाभों का प्रदर्शन कर चुके हैं। एक देश के रूप में हमें भी बड़े पैमाने पर सटीक खेती को अपनाने की जरूरत है, जिसके परिणामस्वरूप न केवल पानी की बचत होगी, बल्कि किसानों की फसल की गुणवत्ता, उत्पादन और लाभप्रदता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

पानी को संघर्षों का समाधान बताते हुए, आईआईपीए के दिल्ली क्षेत्रीय चैप्टर के अध्यक्ष डॉ. राजवीर शर्मा ने कहा, ”हम विभिन्न प्रकार के संघर्षों से घिरे हुए हैं, जैसे कि खाद्य सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा, अंतर-सरकारी संघर्ष और राष्ट्रों या राज्यों के बीच संघर्ष। जिसके लिए पानी का उपयोग संघर्षों की रोकथाम के एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है।”

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