बोनी के बाद का समय महत्वपूर्ण
खरीफ फसलों की बुआई जोरों पर चालू है, वर्षा की लुका-छिपी के साथ-साथ बुआई करना ‘तू डाल-डाल मैं पात-पात के समान ही होती है। बुआई करने के बाद कृषि कार्य बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। परंतु देखा यही गया है कि बोने के बाद सुस्त होने की आदत से छोटी-छोटी कृषि की महत्वपूर्ण तकनीकी अपनाने की बात हवा हवाई ही हो जाती है। परंतु यदि कृषक सजगता से काम करें तो इन छोटी-छोटी तकनीकी अधिक से अधिक लाभ देने में सक्षम रहती है। अब पछताये क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत, शायद कृषक के लिये ही बना है इस कारण बुआई में किये गये श्रम बहाये गये पसीने की कुल कीमत वसूलने के लिये कृषकों के लिये कुछ महत्वपूर्ण कार्य होते हैं जो करके मुख्यमंत्री का सपना कि खेती को लाभ का धंधा बनाना है साकार किया जा सकता है क्योंकि यह बात अकाट्य सत्य है सपना केवल एक व्यक्ति से जुड़ा हुआ नहीं इसके लिये संगठित प्रयास जरूर होता है। इसलिए बुआई उपरांत खेत का निरीक्षण आवश्यक होता है कैसा अंकुरण हुआ यदि चांस खाली रह गया हो तो साथ में बीज की पोटली तथा खुरपी जरूर हो ताकि जगह-जगह खाली चांस भर कर प्रति ईकाई पौध संख्या का औसत पूरा किया जा सके ताकि भविष्य में पूरा-पूरा उत्पादन मिल सके कहना ना होगा पंरतु यह बात बिल्कुल अनुसंधान आधारित है जितना अच्छा अंकुरण उतनी अच्छी पौध संख्या और यह कार्य लक्षित उत्पादन की दिशा में यह एक सशक्त कदम कहलायेगा। यही खेत में यदि अतिरिक्त जल भरा हो तो उसका निकास किया जा सके ताकि पौध गलन/सडऩ की समस्या पर विराम लग सके खरीफ फसलों में सबसे अधिक रकबा सोयाबीन का होता है और सोयाबीन अंकुरण उपरांत दो कोपल जिसमें भरा अमृत प्रकृति द्वारा पौधों की बढ़वार के लिये उपलब्ध कराया गया होता है, को पक्षियों द्वारा चट किया जाने से रोक लग सके। एक श्रमिक आवाज करके पक्षियों को भगाता रहे तो इस एक कार्य से अनेकों लाभ सरलता से प्राप्त किये जा सकते हैं। दो कोपल ठीक वही है जैसे शिशु को जन्म के बाद शहद का चुग्गा लगाया जाता है उसी प्रकार पौधों की जड़ों के विकास भूमि से पोषक तत्वों के खिंचाव में परिपक्वता आने तक दो कोपल का अमृत उनके पालन-पोषण के लिये पर्याप्त होता है। ऐसा करने से पौधे स्वस्थ तथा मजबूत हो जाते हैं। कृषक बंधुओं से निवेदन है कि इस और ध्यान दें। सोयाबीन में अफलन की समस्या लम्बे समय तक गुमनाम रही कीट-रोग अथवा कुछ और कारण ही समझ से परे रहा आया परंतु आज तस्वीर सामने है अनुसंधान द्वारा कृषि वैज्ञानिकों ने खोज लिया और बता दिया कि यह गंभीर समस्या एक प्रकार की इल्ली द्वारा होती है। यदि समय रहते ऐसे क्षेत्रों में जहां पर यह इल्ली हर वर्ष आती है पूर्व उपचार कर दिया जाये तो कारण ही समाप्त हो जाता है बुआई के 18-20 दिनों बाद क्लोरोपाईरीफास 20 ई.सी. की 1.5 लीटर मात्रा या ट्राईजोफास 40 ई.सी. की 1 लीटर मात्रा 750 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर यदि एक छिड़काव हो जाये तो इल्ली के बुने ताने-बाने को नष्टï किया जाकर नुकसान से बचा जा सकता है। इसी तरह सोयाबीन के गेरूआ रोग के लिये भी बचाव छिड़काव मेन्कोजेब 2 ग्राम/लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव बुआई के 40-50 दिन बाद किये जाने के बाद का पछतावा रोका जा सकता है। यह छिड़काव बैतूल, छिंदवाड़ा,मंडला, बालाघाट, सिवनी, डिंडोरी, शहडोल तथा ऐसे ही ऊंचे स्थानों में विशेषकर तथा मावला क्षेत्र में भी किया जाये तो उत्तम होगा कृषि में अब बचाव का महत्व उपचार से अधिक है यह समझने का वक्त आ गया ऐसा करके कृषि को लाभकारी धंधा बनाया जा सकता है।
मालवा में सोयाबीन की बोवनी जोरों पर