किसानों की जीवन रेखा है जैविक खेती
खरगोन। जैविक खेती मोठापुरा के किसानों की जीवन रेखा है। रसायन छोड़ जैविक खेती अपनाने से जहां कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई, वहीं आर्थिक सम्पन्नता आने से किसान खुशहाल बने। खरगोन से 25 किमी दूर कृषि बाहुल्य मोठापुरा में रसायनिक उर्वरक व कीटनाशक की बढ़ती कीमतों के कारण 60 किसानों ने 90 एकड़ कृषि भूमि में जैविक खाद को आजमाने का फैसला लिया। 2009 में इन किसानों ने कामधेनू किसान स्वसहायता समूह बनाकर जैव उर्वरक का उत्पादन शुरू किया। उन्हें कृषि विभाग से तकनीकी मार्गदर्शन और बिना ब्याज 10 हजार रु. लोन मिला। समूह वर्ष 2011 में कामधेनू किसान संघ में तब्दील हो गया, जिससे आज 40 गांवों के 4 हजार किसान जुड़े हैं। किसानों ने सीपीपी, विसरा खाद एवं वर्मी खाद का उत्पादन कर उसका इस्तेमाल किया तो असिंचित क्षेत्र में भी उत्पादन तीन गुना तक बढ़ गया। धीरे-धीरे जैविक खाद उनकी जरूरत बन गया। वे तीन फसलें लेने लगे, जिनमें से एक सब्जी भी शामिल हैं। जैविक खेती के बलबूते 22 किसानों ने शानदार मकान बना लिए तो 4 ने ट्रैक्टर खरीद लिए हैं। विभिन्न सुविधाएं जुटाने के अलावा बच्चे शहर में पढ़ रहे हैं। सिंचाई के तालाब एवं कुए खुदवाए तथा बोर करा लिए हैं। शासन ने भी बलराम तालाब खुदवाए हैं। चालीस एकड़ जमीन पर जैविक खेती करने वाले श्री दिनेश पाटीदार कहते हैं रसायनिक खाद एवं कीटनाशकों पर खर्च होने वाले हजारों रूपए बचे और उत्पादन कई गुना बढ़ा है। श्री ओमप्रकाश कहते हैं रसायनों से होने वाली बीमारियों और अनावश्यक खर्च से मुक्ति मिल गई है। डोंगरगांव के श्री दिलीप पाटीदार के अनुसार जैविक खेती से पुराना कर्ज पटा दिया और एक बोर तथा दो कुएं खुदवा लिए।