गेंदा फूल की खेती कैसे करें तथा अच्छा मुनाफा कैसे कमायें
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गेंदा एक खास व लोकप्रिय फूल है जो सालभर आसानी से मिल सकता है। यदि इसके फूल दशहरा व दीपावली के अवसर पर उपलब्ध हों तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसकी लोकप्रियता की खास वजहों में हर तरह की आबोहवा, मिट्टी व हालातों में आसानी से इसका उगना, फूलों का ज़्यादा देर तक फूलना, कई तरह से काम में आना और आसानी से बीज बनाना वगैरह खास हैं, गेंदा का पौधा काफी प्रतिरोधक होता है। फूलों से जैविक रंगों का भी उत्पादन किया जाता है जो खाने और कपड़ों की रंगाई में इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
भूमि चयन व तैयारी:
गेंदा को विभिन्न प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है परंतु गहरी, उपजाऊ व भुरभुरी भूमि जिसमें जल धारण के साथ ही जल निकास की क्षमता हो अच्छी मानी जाती है। भूमि का पीएच मान 7 से 7.5 के मध्य हो।
प्रजातियाँ:
गेंदा मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं उसी आधार पर अलग-अलग प्रजातियाँ होती हैं।
अफ्रीकन गेंदा या हज़ारिया गेंदा:
इसके पौधे अधिक ऊँचे (औसतन 75 से.मी.) व विभिन्न रंगों जैसे पीले, नारंगी, पीले रंगों में बहुत ही आकर्षक व व्यावसायिक महत्व वाले होते हैं, लेकिन हाईब्रिड किस्मों की ऊँचाई 30 से.मी. से लेकर 3 मीटर तक होती है ।
प्रमुख जातियाँ:
जाइंट डबल अफ्रीकन नारंगी, जाइंट डबल अफ्रीकन पीली, क्रेकर जैक, गोल्डन एज, क्राउन ऑफ गोल्ड, क्राइसें थियम चार्म, गोल्डन एज, गोल्डन येलो, स्पून गोल्ड, पूसा नारंगी, पूसा बसंती, आरेन्ज जुबली आदि ।
फ्रेंच गेंदा या गेंदी (जाफरी गेंदा) : इसके पौधे अधिकतम बौने व छोटे पुष्प पीले, नारंगी सुनहरी लाल एवं मिले-जुले रंग के होते हैं। इसकी पत्तियाँ गहरी हरी एवं तना लाल होता है ।
प्रमुख प्रजातियाँ:
रेड ब्रोकार्ड, रस्टीरेड, बटर स्काच, बेलेन्सिया, सुसाना, जिप्सी, लेमनड्राप, फ्लेमिंग फायर डबल, फायल ग्लो, स्टार ऑफ इंडिया, पिटाइस, सनराइज, सूसाना, रायल बंगाल, लेमनड्राप, पीटी गोल्ड, स्पून गोल्ड, पीटी स्प्रे और पिगमी आदि ।
प्रजनन विधियाँ:
गेंदा की दो सामान्य प्रजनन विधियाँ हैं प्रथम बीज द्वारा तथा दूसरी कटिंग द्वारा, बीज द्वारा सामान्यत: गेंदा की खेती की जाती है । बीज द्वारा उगाई जाने वाली फसल में पौधे अधिक ऊँंचे होने के साथ ही अधिक पुष्प देते हैं जबकि कटिंग को प्रजाति की शुद्धता बनाये रखने हेतु ही अधिकांशत: उपयोग में लाते हैं ।
बोने का समय, तरीका व बीज की मात्रा: बरसात की फसल के लिये बीज को मध्य जून से जुलाई आंरभ तक, सर्दियों की फसल के लिये बोआई का काम अगस्त अंत से मध्य सितम्बर एवं गर्मी के लिये दिसम्बर के अंतिम सप्ताह से जनवरी के पहले हफ्ते में बोना चाहिये। नर्सरी की क्यारियों की अच्छी गुड़ाई कर करीब 10 किलो पकी गोबर की खाद अच्छी तरह मिलायें। क्यारियों का आकार 331 मीटर रखें ताकि, पानी व अन्य कार्य आसानीपूर्वक सम्पन्न किये जा सकें। बीज को लाइन में 5 से.मी. गहराई पर बोयें साथ ही कतार से कतार की दूरी 5 से.मी. रखें। बीज बोने के बाद इसे मिट्टी से ढंक कर सूखी घास से ढंके, उसके बाद सिंचाई करें। लगभग 1 किलो बीज प्रति हेक्टेयर एवं संकर किस्मों में 200-250 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होगा ।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा व देने की विधि:
गोबर की खाद 250 क्विंटल/हेक्टेयर, नत्रजन 60 किलो, स्फुर 75 किलो, पोटाश 50 किलो ग्राम/हेक्टेयर भूमि की अंतिम जुताई के समय गोबर की पकी खाद, स्फुर तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा आधार रूप में मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें। नत्रजन को दो भागों में बांट कर प्रथम मात्रा पौध रोपाई के 20-25 दिन बाद तथा शेष बची नत्रजन की आधी मात्रा 45 दिन बाद पौधों के आसपास कतारों के बीच में डालें ।
पौधे लगाने का समय: नर्सरी में बीज बोने के बाद करीब 4 सप्ताह (25-30 दिन) मेंं पौधे मुख्य खेत में रोपण हेतु तैयार हो जाते हैं। इन्हें सांयकाल रोपण करें व नर्सरी में पौधे उखाडऩे के पहले हल्की सिंचाई करेंं ताकि उखाड़ते समय पौधों की जड़ों को क्षति न पहुुँचे।
सिंचाई: गेंदे की फसल को अपेक्षाकृत पानी की कम आवश्यकता होती है । सामान्यत: 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करें ।
निंदाई -गुड़ाई: निंदाई-गुड़ाई का पौधों की आरंभिक अवस्था में विशेष महत्व है। कम से कम 2 बार निंदाई-गुड़ाई आवश्यक है।
फूलों की तुड़ाई: गेंदे में 3-4 महीने बाद फूल आने लगते हैं जिन्हें खिलने पर नीचे से डंठल के साथ तोड़कर बाजार में बेचा जाता है।
उपज: अधिकतम उपज लगभग 400 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो सकती है।
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